पंचायत और लोकसभा चुनावों में यदि चुनाव आयोग भ्रष्ट या विवादों से घिरे संभावित प्रत्याशियों को टिकट देने पर रोक लगाने का फैसला करता है, तो निस्संदेह स्वच्छ छविवाले जनप्रतिनिधि बन कर देश और समाज की सेवा करके धरातल पर विकास उतारेंगे. क्योंकि स्वच्छ छवि वाला इनसान भूखा रह कर भी नाम के लिए काम करता है, जबकि भ्रष्ट व्यक्ति सत्ता में आने के बाद पैसा कमाने के लिए गरीबों का पेट काटता है और विकास के बजाय गलत तरीके से धन कमा कर ऐशो-आराम चाहता है.
प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे का कहना बिल्कुल सही है कि जब तक संसद में स्वच्छ छविवाले लोग नहीं पहुंचेंगे, तब तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना मुश्किल सा लगता है. स्वच्छ छविवाला प्रतिनिधि वह है, जो अपने कार्यो से क्षेत्र का विकास करे और जनता को संतुष्ट करे. पर ऐसे कितने हैं देश में?
सूरजभान सिंह, गोमिया, बोकारो