11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राज्यों की उचित मांगें

शनिवार को दिल्ली में हुई इंटर – स्टेट काउंसिल की बैठक में गैर – भाजपा मुख्यमंत्रियों ने राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने तथा केंद्र की बेजा दखलंदाजी कम करने की मांग की है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संघीय शासन – व्यवस्था में राज्यपाल पद को बेमानी बताते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति और […]

शनिवार को दिल्ली में हुई इंटर – स्टेट काउंसिल की बैठक में गैर – भाजपा मुख्यमंत्रियों ने राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने तथा केंद्र की बेजा दखलंदाजी कम करने की मांग की है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संघीय शासन – व्यवस्था में राज्यपाल पद को बेमानी बताते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति और पद से हटाने में राज्य सरकार से भी राय ली जानी चाहिए तथा पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए. दिल्ली, कर्नाटक और त्रिपुरा समेत कई राज्यों ने स्वायत्तता की जरूरत पर बल दिया. पिछले दिनों उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में राज्यपालों के सलाह पर सरकारों को पद से हटा कर राष्ट्रपति शासन लगाये जाने के फैसलों को सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर चुका है.
इन प्रकरणों से राज्यपालों की भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है. यदि राज्यपालों को हटाया नहीं जा सकता है, तो कम – से – कम यह तो सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि वे केंद्र के एजेंट के रूप में काम न करें. राज्यपालों की भूमिका का विवादास्पद होना हमारे राजनीतिक इतिहास में कोई नयी बात नहीं है. अब समय आ गया है कि इस संबंध में कोई ठोस पहल हो.
इंटर – स्टेट काउंसिल में जो चिंताएं व्यक्त की गयी हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. इस बैठक में भाजपा के सहयोग से पंजाब में सत्तारूढ़ अकाली दल के नेता और उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने साफ शब्दों में केंद्र पर राज्यों के अधिकारों के हनन और संवैधानिक नियमों के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी विकास योजनाओं में राज्यों की राय नहीं लेने की शिकायत की.
सत्ता संभालने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार यह कह चुके हैं कि उनकी सरकार संघीय सहयोगवाद की पक्षधर है और उसका सिद्धांत ‘सबका साथ – सबका विकास’ है, लेकिन दो वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी राज्यों की ओर से ऐसी शिकायतों का आना निःसंदेह चिंताजनक है. देश के चहुंमुखी विकास की आकांक्षा तभी पूरी हो सकती है, जब केंद्र और राज्य सरकारें अपने राजनीतिक पूर्वाग्रहों और स्वार्थों को परे रखते हुए मिल – जुल कर काम करें.
राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर तथा वित्तीय आवंटन के सवाल पर टकराव की जगह संवैधानिक मर्यादाओं के अनुरूप परस्पर संवाद और विचार – विमर्श का होना बेहद जरूरी है. इस बैठक से उभरे मसलों पर सरकारों को पूरी गंभीरता से सोच – समझ कर आगे की राह तैयार करनी चाहिए, तभी ऐसी व्यवस्थाओं का औचित्य बरकरार रह सकेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें