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जनपक्षधर ही देश का कर्णधार है
आज ग्लोबल दुनिया तेजी से नयी मान्यताओं को परिभाषित और स्थापित कर रही है. अपराजेय भाव से पांव पसारती यह दुनिया जिन मूल्यों और विचारों को सामने ला रही है, इससे कोई अछूता नहीं है. आज देश में संवैधानिक मूल्यों का हनन, सामाजिक और लैंगिक असमानता, जातीय भेदभाव, सत्ता और काॅरपोरेट की खुली लूट मची […]
आज ग्लोबल दुनिया तेजी से नयी मान्यताओं को परिभाषित और स्थापित कर रही है. अपराजेय भाव से पांव पसारती यह दुनिया जिन मूल्यों और विचारों को सामने ला रही है, इससे कोई अछूता नहीं है. आज देश में संवैधानिक मूल्यों का हनन, सामाजिक और लैंगिक असमानता, जातीय भेदभाव, सत्ता और काॅरपोरेट की खुली लूट मची है़ यह हमारे समाज की वास्तविकता है.
और ग्लोबल दुनिया में अगर कोई इन मुद्दों को लेकर सवाल खड़े करता है तो हमारे समाज के लिए शुभ संकेत है. सत्ता के गलत निर्णय के विरोध को देश का विरोध मान कर प्रचार करना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. सरकार को ऐसी आवाजें सुननी चाहिए क्योंकि ये सत्ता के भ्रम को तोड़ते हैं. लोकतांत्रिक देशों में नीति निर्धारण की प्रक्रिया में छात्रों को शामिल किया जाना चाहिए.
पिछले दशकों में छात्र राजनीति के नाम पर गुंडागर्दी और अराजकता का डर पैदा हुआ है, लेकिन यह छात्र राजनीति का वास्तविक रास्ता नहीं है. छात्रों को जनहित और सामाजिक मुद्दों को अपने आंदोलन में वैचारिक आधार बनाना होगा. समाज के संघर्षों के साथ गंभीरता से जुड़ना होगा, क्योंकि जन पक्षधर होना ही सही मायनों में देश का कर्णधार होना है.
सुमित कुमार बड़ाईक, सिसई
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