यूं तो हमारे देश की पहचान ‘कल्याणकारी योजनाओं के देश’ के रूप में होती है, लेकिन वास्तविकता और परिणामों की परवाह किये बगैर अपने यहां की सरकारें सिर्फ योजनाओं पर पैसा खर्चा करना और राजनीति करना जानती हैं.
आज नेताओं के बेसिर-पैर के फालतू बयानों के साथ राजनीति की जो स्थिति है, उस पर बात करने से समाज की ही बेइज्जती हो जायेगी, क्योंकि इन्हें पसंद कर गद्दी पर भी तो वही समाज बिठाता है. अपने देश में योजनाएं बनती हैं सिर्फ लूट-खसोट मचाने के लिए, घटिया राजनीति के लिए, विपक्षियों को उलझाये रखने के लिए़ योजनाओं की विफल कार्यप्रणाली और घोर उपेक्षा के कारण ही योजनाओं का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है.
जरूरत है एक केंद्रीय कठोर तंत्र विकसित करने की, जिसमें योजनाओं की समुचित मॉनीटरिंग जाये, ताकि लूटखसोट की गुंजाइश ना हो.
निखिल मिश्र, ई-मेल से