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बीसीसीआइ को फटकार

दशकों से ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया’ यानी बीसीसीआइ की शोहरत दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड के रूप में रही है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस धन के उपयोग को लेकर सवालों की झड़ी लगा दी है. सच उजागर कर जवाबदेही तय करनेवाले सवाल अक्सर तीखे होते हैं. जाहिर है, बीसीसीआइ […]

दशकों से ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया’ यानी बीसीसीआइ की शोहरत दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड के रूप में रही है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस धन के उपयोग को लेकर सवालों की झड़ी लगा दी है. सच उजागर कर जवाबदेही तय करनेवाले सवाल अक्सर तीखे होते हैं. जाहिर है, बीसीसीआइ को भी सुप्रीम कोर्ट के सवाल तीखे लगे होंगे.
लेकिन जवाबदेही तय करनेवाले इन सवालों से कन्नी काटना इस बार बीसीसीआइ के लिए शायद आसान नहीं होगा, क्योंकि इस बार उसका कोई ‘मीडिया ट्रायल’ नहीं, बल्कि सचमुच का ट्रायल हो रहा है और वह भी देश की सर्वोच्च अदालत में. माना कि बीसीसीआइ ने अपना धन खुद कमाया है, धन के लिए वह सरकार पर निर्भर नहीं है, लेकिन क्या मात्र इसी आधार पर यह संस्था अपने धन के साथ मनमाना व्यवहार करते हुए देश में समान भाव से क्रिकेट का विकास-विस्तार करने की अपनी जिम्मेवारियों से मुंह मोड़ सकती है?
बीसीसीआइ को उसकी जिम्मेवारी याद दिलाने का ही भाव रहा होगा, जो सुप्रीम कोर्ट ने उससे पूछा है कि गोवा को आपने क्रिकेट के विस्तार-विकास के नाम पर 60 करोड़ दिये, लेकिन बिहार को कुछ भी क्यों नहीं? क्या वजह रही, जो देश के 11 राज्य पांच साल से पैसा मांग रहे हैं, जिनमें से मेघालय, मणिपुर, बिहार जैसे राज्यों को एक पाई नहीं मिली है, जबकि महाराष्ट्र और गुजरात के क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआइ के दुलरुआ बने हुए हैं?
यह किसी से छिपा नहीं है कि बीसीसीआइ को अपने पैसे के खर्च का हिसाब देने में कोई रुचि नहीं है और ठीक इसी कारण वह अपने भीतर होनेवाले हर ऐसे बदलाव को नकारना चाहती है, जो उसे वित्तीय-प्रबंधन के मामले में पारदर्शी बनाये. मिसाल के लिए, लोढ़ा समिति की सिफारिशों में कहा गया है कि बीसीसीआइ को सीएजी के दायरे में लाया जाये, लेकिन इस सिफारिश को नकारने के लिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया. वित्तीय गड़बड़ियों के लिए मीडिया में अक्सर चर्चा में रहनेवाले बोर्ड को सूचना का अधिकार के दायरे में आने से भी परहेज है.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने पांच सालों के भीतर खर्च पैसे का हिसाब मांग कर बोर्ड को अपनी वित्तीय जिम्मेवारी के निर्वाह की याद तो दिलायी ही है, भारतीय जनता के मन में बोर्ड के प्रति मौजूद शिकायतों को भी मुखर किया है. आखिर क्रिकेट ने पूरे देश के लोगों के मन में लोकधर्म का रूप जो धारण कर लिया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार से बीसीसीआइ के भीतर पारदर्शिता आयेगी.

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