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जरूरी है इन्नोवेशन का रोडमैप

डॉ भरत झुनझुनवाला वरिष्ठ अर्थशास्त्री नये उद्यमियों की मदद का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प स्वागतयोग्य है. देश के युवाओं के पास नये उद्योग लगाने के आइडिया हैं, परंतु कार्यान्वित करने के लिए पूंजी नहीं है. सरकार द्वारा इन्हें समर्थन देने से इनकी छिपी हुई ऊर्जा बाहर आ सकती है और देश को आगे बढ़ा […]

डॉ भरत झुनझुनवाला
वरिष्ठ अर्थशास्त्री
नये उद्यमियों की मदद का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प स्वागतयोग्य है. देश के युवाओं के पास नये उद्योग लगाने के आइडिया हैं, परंतु कार्यान्वित करने के लिए पूंजी नहीं है. सरकार द्वारा इन्हें समर्थन देने से इनकी छिपी हुई ऊर्जा बाहर आ सकती है और देश को आगे बढ़ा सकती है. लेकिन, केवल आर्थिक मदद से काम नहीं बनेगा, सही वातावरण भी बनाना होगा. तमाम ऐसे आइडिया हैं, जिन्हें कार्यान्वित करने के लिए पूंजी की जरूरत नहीं है.
जैसे किसी सरकारी कर्मचारी ने फाइलों को ट्रैक करने का फॉर्म बनाया. इसे लागू करने के लिए पैसा नहीं चाहिए. इस प्रकार के तमाम इन्नोवेशन हैं, जिन्हें लागू किया जा सकता है. जरूरत है कि देश के नागरिकों में नये आइडिया के प्रति सकारात्मक रुख बनाया जाये.
इन्नोवेशन की राह में बड़ी बाधा सरकारी यूनिवर्सिटी और लैबोरेटरी की निष्फलता है. यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों की रुचि नये आइडिया को ग्रहण करने में नहीं है. छात्रों के दिमाग को विकसित करने के स्थान पर वे उन्हें रटा कर परीक्षा पास कराना चाहते हैं. 95 फीसदी प्रोफेसर स्वयं इन्नोवेशन नहीं करते, तो छात्रों को इन्नोवेशन कैसे सिखाएंगे? जो छात्र कक्षा में प्रश्न पूछता है, उसे प्रोफेसर हतोत्साहित करते हैं. जबकि प्रश्न पूछने से छात्रों में सोचने की मनोवृत्ति बनती है.
इन्नोवेशन के लिए छात्रों को नये तरह से सोचने की छूट होनी चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि प्रोफेसरों को इन्नोवेशन के प्रति जिम्मेवार बनाया जाये. सरकार को चाहिए कि प्रोफेसरों को पांच वर्ष के ठेकों पर नियुक्त करे और हर वर्ष छात्रों द्वारा उनका मूल्यांकन कराया जाये. साथ ही चार वर्ष बाद किसी बाहरी संस्था द्वारा उनके इन्नोवेशन का आकलन किया जाये. ऐसा करने से हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था में इन्नोवेशन का प्रवेश होगा और खर्च बढ़ाये बिना इन्नोवेशन में तेजी आयेगी. यही फॉर्मूला तमाम सरकारी लैबोरेटरी पर लागू किया जाना चाहिए.
इन्नोवेशन को गति देने के लिए पेटेंट कानून पर भी सरकार को पुनर्विचार करना होगा. पेटेंट कानून में व्यवस्था है कि किसी तकनीक की नकल नहीं की जा सकती है. जैसे किसी कंपनी ने बीटी कॉटन के बीज का पेटेंट करा लिया, तो इसके बाद इस बीज को बनाने या इसमें सुधार करने का दूसरों का अधिकार समाप्त हो जाता है. इससे इन्नोवेशन रुक जाता है. मान लीजिए कि किसी किसान ने बीटी कॉटन बीज बनाने का सस्ता तरीका ढूढ़ लिया. लेकिन, पेटेंट कानून के अंतर्गत किसान को अधिकार नहीं है कि इस सस्ते बीज को बना कर बेच सके.
हालांकि पेटेंट कानून से बड़ी कंपनियों द्वारा इन्नोवेशन को बढ़ावा मिलता है. पेटेंटीकृत माल को महंगा बेच कर ये कंपनियां भारी लाभ कमाती हैं. कमाई गयी रकम का निवेश नयी तकनीकों के इन्नोवेशन में करती है. जैसे माइक्रोसॉफ्ट ने विन्डोज सॉफ्टवेयर बना कर लाभ कमाया. फिर इस कमाई से नया सर्च इंजन बनाया. इस प्रकार पेटेंट कानून से इन्नोवेशन बाधित होता है, तो प्रोत्साहित भी होता है.
अंतर यह है कि पेटेंट कानून में ढील देने से जनसमान्य के द्वारा इन्नोवेशन को बढ़ावा मिलता है, जबकि पेटेंट कानून के सख्त होने पर बड़ी कंपनियों द्वारा इन्नोवेशन को बढ़ावा मिलता है. यदि प्रधानमंत्री देश के युवाओं द्वारा इन्नोवेशन को बढ़ावा देना चाहते हैं, तो उन्हें पेटेंट कानून में ढील देने पर विचार करना चाहिए.
इन्नोवेशन को बढ़ावा देने का तीसरा क्षेत्र छोटे उद्योग है. देश में यदि 10 बड़े उद्योग हैं, तो करीब एक हजार छोटे. जाहिर है, छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने से एक हजार लोग इन्नोवेशन करेंगे. हालांकि छोटे उद्योगों द्वारा माल बनाने में लागत ज्यादा आती है. आज भारतीय उद्योग चीनी उद्योगों द्वारा पीटे जा रहे हैं, क्योंकि ये तुलना में छोटे हैं और इनकी लागत ज्यादा आ रही है.
इसी प्रकार देश के छोटे उद्योग देश के बड़े उद्योगों द्वारा पीटे जा रहे हैं. हजारों छोटे उद्योगों द्वारा इन्नोवेशन को बढ़ावा देने के लिए इन्हें बड़े उद्योगों से संरक्षण देना होगा, उसी तरह जैसे चीन में बने सस्ते माल पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगा कर भारतीय उद्योगों को संरक्षण दिया जा रहा है.
लेकिन, भारत सरकार अपने महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम के द्वारा देश-दुिनया की बड़ी कंपनियों को आकर्षित करना चाहती है. इससे छोटे उद्योग दबाव में हैं. हजारों छोटे उद्योगों द्वारा इन्नोवेशन नहीं किया जा रहा है और मुट्ठी भर बड़े उद्योगों तक इन्नोवेशन सिमट गया है. जिस प्रकार परिवार द्वारा बच्चे को कॉलेज में पढ़ाने का खर्च उठाया जाता है, उसी प्रकार सरकार द्वारा देश के छोटे उद्योगों द्वारा इन्नोवेशन करने का खर्च उठाना चाहिए, तभी देश में चौतरफा इन्नोवेशन होगा.
छोटे उद्योगों को संरक्षण देने से उद्यमिता का विकास होगा और रोजगार भी उत्पन्न होंगे. अतः सरकार को तय करना होगा कि वह छोटे उद्योगों द्वारा महंगा माल बनवा कर हजारों लोगों से इन्नोवेशन कराना चाहती है, या बड़े उद्योगों द्वारा सस्ता माल बनवा कर मुट्ठी भर उद्योगों द्वारा इन्नोवेशन कराना चाहती है.
आज छोटे उद्योगों द्वारा महंगा माल बनाने से इन्नोवेशन ज्यादा होगा और आनेवाले समय में माल सस्ता होता जायेगा, लेकिन आज बड़े उद्योगों द्वारा सस्ता माल बनाने से इन्नोवेशन कम होगा और आनेवाले समय में माल महंगा होता जायेगा. विषय देश के अल्पकालीन अथवा दीर्धकालीन हित के बीच चयन करने का है. छोटे उद्योगों को संरक्षण देने से दीर्धकालीन हित हासिल होगा, जबकि बड़े उद्योगों को बढ़ावा देने से अल्पकालीन हित हासिल होगा.
प्रधानमंत्री ने इन्नोवेशन को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप्स यानी नये उद्योगों को वित्तीय सहायता देने का मन बनाया है. यह सही दिशा में कदम है, लेकिन सरकार की वित्तीय हालत खस्ता है. इसलिए उन कदमों पर भी ध्यान देना चाहिए, जिनके द्वारा बिना खर्च के इन्नोवेशन को बढ़ावा मिले. इसके लिए यूनिवर्सिटी में ठेकों पर नियुक्ति, पेटेंट कानून में ढील देना और छोटे उद्योगों को संरक्षण देना कारगर कदम साबित होंगे.

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