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हिमालय में हाहाकार, सरकार लाचार

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक शोध के वास्ते यह एक अच्छा विषय है- ‘नेपाल के नाकेबंदी आंदोलन में पेट्रोलियम माफिया का उदय’. 168 भ्रष्टतम देशों में नेपाल का स्थान 130वां है. संस्था ‘ट्रंासपेरेंसी इंटरनेशनल’ हर साल बेईमान देशों की सूची बनाती है. पांच माह के नाकेबंदी आंदोलन ने नये-नये नेता पैदा किये, तो […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
शोध के वास्ते यह एक अच्छा विषय है- ‘नेपाल के नाकेबंदी आंदोलन में पेट्रोलियम माफिया का उदय’. 168 भ्रष्टतम देशों में नेपाल का स्थान 130वां है. संस्था ‘ट्रंासपेरेंसी इंटरनेशनल’ हर साल बेईमान देशों की सूची बनाती है. पांच माह के नाकेबंदी आंदोलन ने नये-नये नेता पैदा किये, तो सैकड़ों की संख्या में तेल तस्करों और कालाबाजारियों की उत्पत्ति हुई है.
नेपाल के पंपों पर ‘पेट्रोल छैन, धन्यवाद!’ के बड़े-बड़े बोर्ड दिख जायेंगे, लेकिन जेब में कई गुना अधिक कीमत देने के लिए पैसा है, तो पेट्रोल, गैस सिलेंडर की होम डिलीवरी हो जाती है. काठमांडो से लेकर सुदूर नेपाल तक ऐसे सैकड़ों सप्लायर्स के नंबर सोशल मीडिया, मुहल्लों में बंटनेवाली पर्चियों पर हैं, जिनसे संपर्क के बाद पेट्रोल, डीजल और गैस के लिए आपको निराश नहीं होना पड़ेगा. उन्हीं में से एक ‘बड़े डीलर’ से फोन पर जानकारी मिली कि आधे दिन में वह तीन हजार लीटर पेट्रोल बेच लेता है, जिससे उसे रोज दो लाख 10 हजार रुपये की कमाई हो जाती है.
अब गुणा-भाग कर लीजिए कि पिछले पांच माह में काठमांडो के इस कालेबाजारिये ने कितने सौ करोड़ की कमाई की होगी. नेपाल के काले बाजार में पेट्रोल इस समय 230 से 250 रुपये लीटर के भाव से उपलब्ध है. करीब 200 लीटर तेल बेचनेवाला भारत-नेपाल सीमा पर सक्रिय सबसे छोटा तस्कर भी रोज 20-25 हजार रुपये कमा रहा है.
नेपाल सरकार सफाई देती है कि तेल माफिया को संरक्षण देने में उसका हाथ नहीं है. नेपाली गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव यादव प्रसाद कोइराला जानकारी देते हैं कि ‘अब तक ऐसे 140 कालेबाजारियों को प्रशासन ने गिरफ्तार किया है. और सरकार ऐसे धंधेबाजों की धर-पकड़ करती रहेगी.’ सवाल यह है कि क्या इन गिरफ्तारियों से तेल तस्करी की गति में कोई कमी आयी है?
नेपाल सरकार ने गिरफ्तारी दिखा दी, जिम्मेवारी खत्म! वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने चंद दिन पहले रिपोर्ट दी है कि नेपाल में रसोई गैस की कीमत तस्करों ने 630 प्रतिशत बढ़ा दी है. इसके साथ चावल, दाल, सब्जियों की कीमत इतनी तेजी से बढ़ी है कि गरीब नेपाली परिवार एक शाम भोजन कर ले, तो बहुत है. विश्व खाद्य कार्यक्रम की रिपोर्ट में भूख और अभाव से बेकस, बेजार नेपाल की तस्वीर बहुत भयानक है.
इस देश में इतनी विवशता तब भी नहीं थी, जब अप्रैल 2015 के भूकंप में नौ हजार लोग मारे गये थे. दिसंबर 2015 के आखिर में संयुक्त राष्ट्र समेत जर्मनी, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन की नौ सहायता एजेंसियों ने चेतावनी जारी की कि इस हिमालयी देश मेें खाद्य संकट और बीमारी से हाहाकार मचनेवाला है.
मगर, क्या इस चेतावनी का असर राजनीति के गलियारों में है? पूर्वी नेपाल में दो-एक जगहों पर तेल तस्करों को जनता ने पेट्रोल के साथ जिंदा फूंक देने का प्रयास किया. ऐसी घटनाएं इस बात का प्रतीक हैं कि आम नेपाली का सरकार पर विश्वास नहीं रहा. वह हाथ के हाथ, हिसाब कर लेना चाहती है. ऐसी ही स्थितियां देश को गृह युद्ध की ओर धकेलती हैं. नेपाल में स्थानीय चुनाव होना है. लेकिन लगता नहीं कि उसके लिए अनुकूल परिस्थिति है.
प्रधानमंत्री केपी (खड़ग प्रसाद) शर्मा ‘ओली’ ने नयी शर्त रखी है कि नाकेबंदी हटने के बाद ही नयी दिल्ली आयेंगे. अब दिल्ली का नेपाल की नाकेबंदी से क्या सचमुच लेना-देना है?
नेपाली कांग्रेस के नेता सुशील कोइराला, सुजाता कोइराला किसी जमाने में भारत के मित्र माने जाते थे. ऐसे नेता भी मानने लगे कि मोदी जी की सरकार ने आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है. इस छवि को दुरुस्त करने की जिम्मेवारी भारतीय विदेश मंत्रालय की है. 26 जनवरी को भारत की ओर से 40 एंबुलेंस और आठ बसों का उपहार दे देने से सब कुछ बदल नहीं जायेगा. इस समय इस देश की जनता को पेट्रोल चाहिए, और रसोई में राशन और गैस चाहिए.
नेपाल-भारत के बीच ‘कांफिडेंस बिल्डिंग’ कैसे हो, इस पर दोनों देशों के बुद्धिजीवी, थिंक टैंक के लोग और राजनेता गंभीरता से चर्चा कम ही कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने ओलांद पर बहुत ध्यान दे दिया, अब उन्हें ओली से मुखातिब होना चाहिए. संवादहीनता के कारण नेपाल के उप प्रधानमंत्री कमल थापा ‘अनगाइडेड मिसाइल’ बन चुके हैं. थापा जिस दिन भारत की सराहना करते हैं, उसके अगले दिन भारत की आलोचना में लग जाते हैं. अभी चीन-नेपाल संबंध की साठवीं सालगिरह पर भारतीय राजदूत रंजीत रे के समक्ष भारत की आलोचना कमल थापा करने लगे. क्या इसे कूटनीतिक शालीनता की श्रेणी में लें?
बालुआटार स्थित प्रधानमंत्री निवास पर पत्रकारों से बातचीत में पीएम ओली ने कहा कि हमारी सरकार की नजर तराई में चल रहे ‘अलगाववादी आंदोलन’ पर है. ऐसा संभवतः पहली बार हुआ, जब नेपाल के प्रधानमंत्री आन द रिकाॅर्ड तराईवासियों की मांगों को ‘अलगाववादी आंदोलन’ कह रहे हैं. इस बयान के नुक्ते-नजर से देखा जाये, तो संयुक्त मधेस लोकतांत्रिक मोर्चा के नेता ‘अलगाववादी’ हुए. प्रधानमंत्री ओली वह भाषा बोल रहे हैं, जो वहां के प्रतिक्रियावादी बोलते हैं. यह देश के लिए सचमुच खतरनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है.
प्रधानमंत्री ओली से पूछना चाहिए कि छह में से बाकी चार संशोधन करने की जिम्मेवारी किसकी है? संसद में जो दो संशोधन पास हुए, उसके प्रारूप पर संयुक्त मधेस लोकतांत्रिक मोर्चा के नेताओं से सहमति लेने में सरकार को क्या दिक्कत थी? एक तरफ संशोधन पर भारत के अलावा संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की भी बधाइयां नेपाल को मिल रही हैं, दूसरी ओर मधेसी नेता इससे असहमत होकर फिर आंदोलन पर उतरने की धमकी दे रहे हैं. यह स्थिति सचमुच हास्यास्पद है.
संयुक्त मधेस लोकतांत्रिक मोर्चा के नेता तराई को दो प्रांतों, ‘पूर्वी’ और ‘पश्चिमी मधेस’ में विभाजित होते देखना चाहते हैं.
‘मोर्चा’ चाहता है कि नवल परासी, रूपन्देही, कपिलवस्तु, दांग, बांके, बर्दिया, कैलाली और कंचनपुर पश्चिमी प्रांत का हिस्सा बने. लेकिन, नये संविधान संशोधन में तराई के 20 जिले, चार प्रांतों (एक, दो, पांच और सात) में बांट दिये गये हैं. मधेस मोर्चा के नेता मोरंग, झापा और सुनसरी जिले को ‘प्रांत संख्या-दो’ में डालना चाहते हैं. इन तीनों जिलों में बवाल अधिक मचता है.
22 जनवरी, 2016 को मोरंग के रंगेली में पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें तीन लोग मारे गये थे. ओली सरकार को चार संशोधन और करने हंै, जिसमें ऊपरी सदन की सदस्य संख्या आबादी के अनुपात के अनुसार कितना हो, नागरिकता और राज्यों का सीमांकन जैसे विवादास्पद मुद्दे हैं. बजाय इसे सुलझाने के, भारत पर ठीकरा फोड़ने की आदत अभी जा नहीं रही है!

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