23 नवंबर के अखबार में प्रकाशित आरबीआइ की नियमावली से जुड़ी खबर, ‘नोट पर कुछ लिखा तो रुपये गये काम से’, पढ़ी. आरबीआइ ने लिखावट वाले करेंसी नोटों को बदलने के लिए 31 दिसंबर तक का समय दिया है, जो बहुत कम है. साथ ही 1 जनवरी, 2014 के बाद लिखी हुई करेंसी नहीं लेने का निर्देश दिया गया है.
इससे तो यही पता चलता है कि काले धन वालों को हतोत्साहित करने की यह कोई सरकारी परिकल्पना (योजना) मात्र है. यदि वाकई ऐसा है तो यह निश्चय ही प्रशंसनीय कदम है. लेकिन इसमें गेहूं के साथ घुन के भी पिसे जाने का खतरा है.
काले धनवालों को तो सबक मिलेगा ही, साथ ही बेचारी निरीह जनता भी बच नहीं पायेगी. क्योंकि इतने कम समय में पूरे देश से लिखावट वाले करेंसी नोटों की बदली पूर्णत: संभव नहीं प्रतीत होती.
यह तो हुआ एक पहलू. अब दूसरे पहलू पर भी गौर किया जाए. आरबीआइ के इस कदम से करेंसी नोटों को साफ -सुथरा रखने पर बल मिलेगा. इसके अलावा बैंक भी अपने करोड़ों के नुकसान से बचेंगे.
इसके पूर्व भी करेंसी नोटों को स्टेपल नहीं किये जाने की मुहिम भी कामयाब रही थी. जिससे नोट कटे-फटे और छिद्रयुक्त नोट जल्दी नहीं देखने को मिलते हैं. अब इसके बाद साफ-सुथरी करेंसी लोगों को मिलेगी. करेंसी नोटों पर फिजूल बातें लिखना बंद हो जायेगा. भारतीय करेंसी स्वस्थ, साफ-सुथरी व दीर्घकालिक हो पायेगी, जो राष्ट्र की शान बढ़ाने में मददगार साबित होगा.
फिर भी प्रभात खबर के माध्यम से सरकार और आरबीआइ का ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा कि यह पहल सराहनीय है, लेकिन इतने बड़े देश में इतने कम समय में लिखावट वाली करेंसी को हटाना मुश्किल होगा, अत: इसकी समय सीमा बढ़ायी जाये.
जितेंद्र भंडारी, पतरातू