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किसान कहां बेचेंगे धान की उपज ?

बिहार-झारखंड के किसान परेशान हैं. पहले सूखे और बाद में भारी बारिश के कारण धान की फसल खराब हो गयी. किसी तरह जितना भी धान उपजा है, उसे बेचने में भी किसानों को परेशानी हो रही है. बिहार व झारखंड दोनों ही राज्यों के कृषि मंत्री और मुख्यमंत्री धान खरीद की पूरी तैयारी का एलान […]

बिहार-झारखंड के किसान परेशान हैं. पहले सूखे और बाद में भारी बारिश के कारण धान की फसल खराब हो गयी. किसी तरह जितना भी धान उपजा है, उसे बेचने में भी किसानों को परेशानी हो रही है. बिहार व झारखंड दोनों ही राज्यों के कृषि मंत्री और मुख्यमंत्री धान खरीद की पूरी तैयारी का एलान कर चुके हैं. जबकि सच्चई यह है कि पैक्सों की हालत खुद खराब है.

जिला स्तर पर धान खरीद के लिए कोई कार्ययोजना नहीं है. अब तक यह तय ही नहीं हुआ है कि धान की खरीद कब से शुरू होगी और कितनी खरीद की जानी है. यूं तो नियम यह है कि पैक्स के माध्यम से धान बेचनेवाले किसानों को अधिक राशि का भुगतान होता है. साथ ही भुगतान हाथो-हाथ करना है. लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है. पैक्सों के पास अपना गोदाम नहीं है. इस कारण ज्यादातर पैक्स धान खरीद में कोई रुचि ही नहीं दिखाते हैं. पैक्सों को धान खरीद की राशि का आवंटन भी समय पर नहीं होता है. इस कारण किसानों को भुगतान के लिए महीने भर से अधिक का इंतजार करना पड़ता है.

त्रासद स्थिति यह है कि इन बातों से दोनों ही राज्यों के बड़े अधिकारी बखूबी परिचित है. इसके बावजूद पैक्सों की हालत में सुधार की कोई पहल नहीं की जाती है. करीब दस दिनों से धनकटनी जोरों पर है. लेकिन सरकारी खरीद की तैयारी नहीं होने से किसान औने-पौने दाम पर व्यापारियों को धान बेचने को मजबूर हैं. धान खरीद को लेकर सबसे पहले पश्चिम बंगाल ने एक मॉडल तैयार किया था. यह सफल भी रहा.

फिर इसी मॉडल को आंध्र प्रदेश और बाद में छत्तीसगढ़ ने अपनाया. बिहार व झारखंड में नीयत सही नहीं होने के कारण यह मॉडल ध्वस्त हो रहा है. पैक्स में समय पर चुनाव नहीं होते हैं. ज्यादातर पैक्सों में दंबगों का कब्जा है. वे अपने मनमाफिक काम करने के चक्कर में किसानों का भला होने ही नहीं देते हैं. पैक्सों के कामकाज की निगरानी के लिए जिला स्तर पर समिति बनीं हैं. लेकिन इन समितियों के पास पैक्स के खिलाफ कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है. दोनों राज्यों के कृषि मंत्री और मुख्यमंत्री अगर किसानों की भलाई चाहते हैं, तो पैक्सों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की पहल करनी चाहिए. वरना हर बार किसान इसी तरह बाजार के हाथों छले जायेंगे.

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