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झूठ के पांव नहीं, पंख होते हैं

।। कमलेश सिंह।। (इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक) तत्व होने का महत्व नहीं है. सोडियम या क्लोरिन तत्व हैं, लेकिन सोडियम क्लोराइड का महत्व है. लवण से ही लावण्य आता है चेहरे पर. जवान बाजुओं में फड़कती मछलियां जब मैदान को स्वेद अर्पित करती हैं, तो जवान मैदान मार लेते हैं. गर्मी में […]

।। कमलेश सिंह।।

(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)

तत्व होने का महत्व नहीं है. सोडियम या क्लोरिन तत्व हैं, लेकिन सोडियम क्लोराइड का महत्व है. लवण से ही लावण्य आता है चेहरे पर. जवान बाजुओं में फड़कती मछलियां जब मैदान को स्वेद अर्पित करती हैं, तो जवान मैदान मार लेते हैं. गर्मी में किसान तांबा हो जाता है, उसके चेहरे से टपकती पसीने की बूंदें मिट्टी में जाती हैं. उसी से धरती लहलहाती है. नमक आजादी है. गांधीजी की लाठी है. राजीव गांधी ने यह लाठी नेपाल को दिखायी थी, जब रिश्तों में खटास आयी थी. नमक के बिना जीना असंभव नहीं है, पर जीने का रस संभव नहीं है. रसायन का रस है. नमक इश्क का. नमकीन बातें. देश का नमक खाते हैं, तभी तो गोली भी खाते हैं. कभी-कभी जख्म पर नमक भी लगाते हैं.

मंदी, महंगाई के जालिम जख्मों पर नमक का छिड़काव कैसा लगता है, यह पूरब में रहनेवालों को हाल में पता चला. एक अफवाह ने नमक को सोना बना दिया और लोगों की नींद उड़ गयी. कालाबाजारी शुरू हो गयी. सरकारी अमला चिल्लाता रह गया और चुटकी भर नमक खानेवाले बोरियां खरीदने लगे 100 रुपये किलो. हीनभावना से प्याज और पेट्रोल तक का ह्रास हो गया और नमक खास हो गया. दुनिया के तीसरे सबसे बड़े नमक उत्पादक देश में नमक पर उत्पात. अफवाह के घोड़े पर, हकीकत को रौंदता हुआ. जब तक सच की जीत हुई, झूठ ने काफी कमाई कर ली थी. हम भारत के लोग अपने सेंस ऑफ ह्यूमर की कमी को अपने सेंस ऑफ यूमर से पूरी कर लेते हैं.

गणोशजी दूध पीने लगे, तो दूध की नालियां बहने लगीं. एक बंदर शहर के अंदर आया, तो दिल्ली ने उसे मंकीमैन नाम दिया. देश की राजधानी के पढ़े-लिखे लोग रातभर लाठियां बजाने लगे. निर्दोषोंलोगों को मंकीमैन बता पीट-पीट कर लंगूर बना दिया. देवघर में इसी साल एक युवा नेता जान से हाथ धो बैठे, क्योंकि इलाके में अफवाह थी कि पीटनेवाले गुंडे बोलेरो में घूमते हैं. आज तक किसी ने डायन नाम के जंतु को नहीं देखा, पर आज भी घरों के आगे उसे रोकने के लिए पंजे का छाप मिल जायेगा. भगदड़ में होनेवाली मौतों में दुनिया में हमारा कोई सानी नहीं. एक के पीछे दूसरे, दूसरे के पीछे तीसरे हम दौड़ पड़ते हैं सरपट, मानो जंगल में जानवरों की रेस लग गयी हो. लगभग हर भगदड़ के पीछे अफवाह. दतिया में पुल पर खड़े लोग नदी में कूद गये, क्योंकि अफवाह फैली कि पुल टूट रहा है. दंगे-फसाद की जड़ में भी अफवाह दुबकी होती है. पर अगले दंगे में, अगली भगदड़ में, पिछली अफवाह का जिक्र नहीं आता है. अगली भगदड़, अगला दंगा हो जाता है.

झूठ के पांव नहीं होते, वह खड़ा नहीं रहता. झूठ के पंख होते हैं, वह उड़ता है. अफवाह एक बीमारी है, तेजी से फैलती है. सच की दवा रामबाण है, पर धीरे-धीरे काम करती है. संचार क्रांति आ गयी, तो सच को मोटरकार हुई, पर खाली सीट मिली, तो उस पर झूठ का कब्जा हुआ. एसएमएस से अफवाह फैलती है, सच भी फैल सकता है. संचार पर रोक लगाया, तो सत्य का संचार कैसे होगा, और खुली छूट दे दी, तो झूठ तेजी से फैलेगा.

इस असमंजस का फायदा भी झूठ बांचनेवालों को ही मिलता है, क्योंकि सांच को आंच नहीं और जल्दी तो बिलकुल ही नहीं. सत्य जब तक देहरी से निकलता है, झूठ देहरादून में होता है. सच के साथ समस्या यही है. अंत में जीत उसी की होती है, पर तब तक इतनी दुर्गत हो जाती है कि जीत का फल मीठा नहीं रहता. राम अयोध्या वापस आये, पर चौदह साल वनवास, पत्नी के अपहरण और रावण से युद्ध के बाद. आये भी तो सीता मैया को सुख नहीं मिला. पांडवों को कौरवों पर जीत तो मिल गयी, पर जो महाभारत मचा, तो उसके बाद क्या मिला और क्या बच गया! सम्राट अशोक को सत्य का मार्ग दिखा, पर तब तक कलिंग खून से काला पड़ गया था. हमको आजादी मिली, पर कितनी कुर्बानी के बाद.

नमक हो, दूध हो, आशिक हुसैन हो या मंकीमैन हो, हम जागते जरूर हैं, पर देर हो जाती है. सवाल नहीं करते कि ऐसा क्या हुआ कि नमक ऐसे दमकने लगा? कच्छ के रन में चमकती सफेदी चीनी कब से हो गयी? आदमी पहले बंदर था, कैसे फिर से बंदर हो गया? आशिक हुसैन की आशिकी दोस्ती भी हो सकती है. सारी दुनिया को चार कदमों में नापनेवाले गणोशजी को दूध का टोटा क्यों होगा कि आप लोटा लिये मंदिर के सामने खड़े हैं? ये सब तब समझते हैं, जब खेल हो चुका होता है. हम खुद तमाशा होते हैं और अफसोस करते हैं कि तमाशा न हुआ, इतने तमाशों के बाद.

थी खबर गर्म कि गालिब के उड़ेंगे पुर्जे,

देखने हम भी गये थे पर तमाशा न हुआ!

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