।। मो जुनैद।।
(प्रभात खबर, पटना)
आदरणीय बाबू जी, सादर प्रणाम. आपको जान कर बेहद खुशी होगी कि राजनीतिक प्रदूषण में अब मेरा मन रमने लगा है. धमाके के बाद मैंने कहा था कि बंद कमरों में सांस घुटी जाती है और खिड़कियां खोलता हूं, तो जहरीली हवा आती है. लेकिन अब जुबां पर नमक कुरसी का लग गया है. नतीजतन इतनी बड़ी खुशी मिली कि पचा नहीं पा रहा हूं और बार-बार बाथरूम जा रहा हूं. बाबू जी, ज्यों-ज्यों ये जुबान फिसलत जात है, त्यों-त्यों राजनीतिक गलियारों से नित नये ऑफर आत हैं.
वैसे भी किसी पार्टी में कुछ बोलने के लिए या प्रवक्ता पद के लिए समझदारी व परिपक्वता की जरूरत तो है नहीं. बस शब्द-बाण ही सफल कैरियर का रामबाण है. आप टेंशन नहीं लीजिएगा. हम कोई ‘झूठ की खेती’ नहीं कर रहे हैं. न ही कागज पर कमाल दिखा कर और अधिक मेंटल हास्पिटल खोलने की नसीहत किसी को दे रहे हैं या फिर किसी के दिमागी हालात पर सवालिया निशान लगा रहे हैं. मुझे इतना पता है कि मेरा मानसिक संतुलन ठीक है, इसलिए तो दिल बार-बार कह रहा है कि जुबां पर लागा, लागा रे नमक कुरसी का.. नमक कुरसी का लगने से आंख-कान काम नहीं करते.
इसलिए एहसास ही नहीं होता कि हम किसको क्या कह दिये. दूसरी बात इसमें रिवर्स ब्रेक नहीं होता. इसलिए मामला घटने की बजाय बढ़ता ही जाता है. ताजा उदाहरण कभी एक —-दूसरे के सहयोगी रहे भाजपा-जदयू का है. रोज जुबान फिसल रही है. वैसे याद होगा कि 2010 में नितिन गडकरी को नमक कुरसी का लगा तो खूब जुबान चली. चंडीगढ़ की एक सभा में लालू प्रसाद, मुलायम सिंह, सीबीआइ और कांग्रेस का लिंक जोड़ते हुए राजद व सपा सुप्रीमो की तुलना कुत्ता से कर दी. बाद में माफी भी मांग ली कि मुहावरे का इस्तेमाल किया था.
इसके बाद फिर जुबान चली और अफजल गुरु को फांसी देने में देरी पर देहरादून की रैली में कह दिया कि अफजल कांग्रेस का दामाद लगता है क्या? इसके बाद मनीष तिवारी ने उन्हें मानसिक विक्षिप्त तक कहा. खैर,ज्यादा जुबान चलने के कारण वे राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से खुद चले गये. हाल के दिनों में जिस तरह हमारे व आपके प्रिय नेताओं की जुबान फिसल रही है, उससे लगता है कि नमक कुरसी का ज्यादा करामात दिखा रहा है. इसलिए किसी को कुछ भी कह कर निकल जाना उनका मौलिक अधिकार लगने लगा है, जबकि यही मामला गांवत्नघर में होने पर लातम-जूता से लेकर हवालात तक की नौबत आन पड़ती है. खैर, बाबू जी पर्दा न उठाओ, पर्दे में रहने दो, पर्दा जो उठ गया, तो भेद खुल जायेगा. आप खुद का और जुबान का ख्याल रखियेगा. साथ ही ‘सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यं अप्रियं’, यानी ऐसा सत्य बोलो जो प्रिय लगे. लेकिन ऐसा सत्य नहीं बोलो जो अप्रिय लगे, का श्लोक हमेशा सिरहाने में रखियेगा.
-आपका चिलमन.