।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
अर्थशास्त्री
जितनी मात्रा में आप बैंक में राशि जमा करायेंगे, उतनी मात्रा में सरकार के लिए फिजूलखर्च करना आसान हो जायेगा. इसलिए सरकार चाहती है कि आप अपनी कमाई को बैंक में रख घाटा खायें और सोना न खरीदें. इस समय हमारे निर्यात कम और आयात ज्यादा हैं. हमें निर्यातों से डॉलर कम मिल रहे हैं, जबकि आयातों के लिए डॉलर की मांग अधिक है. डॉलर की सप्लाई कम और मांग ज्यादा होने के कारण इसका दाम बढ़ रहा है और तुलना में रुपये का गिर रहा है. सरकार की सोच है कि आयात कम हो जायें, तो समस्या का समाधान हो जायेगा. इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गत समय में सोने-चांदी पर भारी मात्रा में आयात कर आरोपित कर दिये थे. इस कारण सितंबर में सोने के आयात में 80 प्रतिशत की भारी गिरावट आयी थी.
परंतु सितंबर में 62 प्रतिशत की वृद्घि के साथ आयात फिर पुराने स्तर के नजदीक पहुंच गये. देश में सोने के दाम 3100 रुपये प्रति 10 ग्राम के अधिकतम स्तर के नजदीक है, लेकिन आयात कम नहीं हो रहे हैं.
सोने के आयात को रोकने के इस व्यर्थ प्रयास के पीछे मान्यता है कि देश का व्यापार घाटा सोने के भारी आयातों के कारण है. यह मान्यता सही नहीं है. सही यह है कि सोने के आयातों के लिए हमें डॉलर की भारी मात्रा में जरूरत होती है. डॉलर की मांग ज्यादा होने से डॉलर का दाम चढ़ता है और रुपये का टूटता है. यदि निर्यातों से बढ़ी हुई मात्रा में डॉलर अजिर्त कर लिये जायें, तो रुपया नहीं टूटेगा.
अत: सोने के आयातों को दोष देने के स्थान पर निर्यातों की कमी को दोष दिया जा सकता है. रुपये का टूटना दूसरे आयातों की अधिकता के कारण भी है. हमारे आयातों में सबसे बड़ा हिस्सा ईंधन तेल का है- लगभग 38 प्रतिशत. सोने का हिस्सा मात्रा 11 प्रतिशत है. अत: व्यापार घाटा नियंत्रित करने के लिए तेल की खपत पर रोक लगानी चाहिए. क्योंकि यह उत्पादन के लिए भी होती है और विलासिता के लिए भी. सोने की खरीद में हुआ खर्च एक तरह का निवेश है. तुलना में एसयूवी के ईंधन पर किया गया खर्च पूर्णत: बर्बादी है.
सरकार को चाहिए कि आयातों को तीन श्रेणी में बांटे. पहली श्रेणी में उत्पादक आयात करने चाहिए जैसे मशीनरी, उत्पादन के लिए तेल एवं फर्टिलाइजर. दूसरी श्रेणी में सोना और तीसरी श्रेणी में एसयूवी के लिए तेल एवं चॉकलेट को रखना चाहिए. जरूरत है तीसरी श्रेणी पर प्रतिबंध लगाने की, सोने पर नहीं. भारत का विश्व व्यापार में हिस्सा दो प्रतिशत, विश्व की आय में हिस्सा छह प्रतिशत एवं सोने की खरीद में हिस्सा 25 प्रतिशत है. हमारे नागरिकों ने तमाम मुद्राओं को उजड़ते देखा है.
उन्हें कागज के नोट पर भरोसा नहीं है. वे जानते हैं कि सरकार की फिजूलखर्ची से बैंक में रखी उनकी गाढ़ी कमाई दो दिन में ही चौपट हो जायेगी. बैंक में फिक्स डिपॉजिट का मूल्य गिरा है, जबकि सोने का बढ़ा है. फिक्स डिपॉजिट में ब्याज 8 प्रतिशत मिलता है. महंगाई 10 प्रतिशत हो, तो आपकी जमा रकम क्षय होती जाती है. कारण यह कि सरकार फिजूलखर्ची करती है.
रिजर्व बैंक सरकार की फिजूलखर्ची को पोषित करने के लिए अधिक मात्रा में नोट छापता है. इससे महंगाई बढ़ती है. जितनी मात्रा में आप बैंक में राशि जमा करायेंगे, उतनी मात्रा में सरकार के लिए फिजूलखर्च करना आसान हो जायेगा. इसलिए सरकार चाहती है कि आप अपनी कमाई को बैंक में रख घाटा खायें और सोना न खरीदें.
वर्तमान समय में डॉलर चढ़ रहा है. तमाम विश्लेषकों को आशा बंध रही है कि विश्व अर्थव्यवस्था के कठिन दिन चले गये. लेकिन ऐसा नहीं लगता. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आ रहा उछाल मुख्य रूप से ऋण लेकर कृत्रिम रूप से उत्पन्न किया गया है.
जिस प्रकार कमजोर धावक स्टेरॉयड के बल पर एक-दो दौड़ जीत सकता है, उसी प्रकार अमेरिकी अर्थव्यवस्था स्टिमुलस के बल पर दौड़ रही है. लगभग एक-दो वर्ष के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था पुन: संकटग्रस्त होगी. ऐसे में किसी मुद्रा का भरोसा नहीं रहेगा. अत: सुरक्षा के लिए सोने का भंडारण करना चाहिए.
सोने के आयात कम हो जायें, तो भी हमारा व्यापार घाटा समाप्त नहीं होगा. क्योंकि जितनी मात्रा में विदेशी निवेश आता है, उतना व्यापार घाटा होना अनिवार्य है. हमें निर्यात तथा विदेशी निवेश से डॉलर मिलते हैं. इन डॉलर को आयातक खरीद कर माल मंगवाते हैं. समीकरण बनता है: आयात=निर्यात+विदेशी निवेश. इससे स्पष्ट है कि जिस मात्रा में विदेशी निवेश आयेंगे, उसी मात्रा में व्यापार घाटा बना रहेगा.
यदि सरकार को व्यापार घाटा नियंत्रण में लाना है, तो विदेशी निवेश को घटाना चाहिए. डॉलर कम आयेंगे तो डॉलर का दाम बढ़ेगा, रुपये का टूटेगा और शीघ्र ही निर्यात बढ़ जायेंगे. वर्तमान में रुपये के टूटने का मुख्य कारण विदेशी निवेश का पलायन है. इससे डॉलर की सप्लाई कम हुई है और रुपया टूट रहा है.
तीन चार माह में निर्यात बढ़ जायेंगे और बाजार स्थिर हो जायेगा. इसलिए हमारी सरकार को चाहिए कि वह ईंधन तेल के उपयोग को श्रेणीबद्घ करके उसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाये.