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‘कॉल ड्रॉप’ बेलगाम!

देश में रोज करोड़ों लोगों को चूना लगा रही ‘कॉल ड्रॉप’ की समस्या बढ़ती ही जा रही है. पिछले साल सरकार बदली, वादे और इरादे भी बदले. विकास के पथ पर तेजी से दौड़ने को आतुर भारत को आधुनिक बनाने के लिए ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे कार्यक्रम की घोषणा हुई. कहा गया कि इससे डिजिटल सेवाएं […]

देश में रोज करोड़ों लोगों को चूना लगा रही ‘कॉल ड्रॉप’ की समस्या बढ़ती ही जा रही है. पिछले साल सरकार बदली, वादे और इरादे भी बदले. विकास के पथ पर तेजी से दौड़ने को आतुर भारत को आधुनिक बनाने के लिए ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे कार्यक्रम की घोषणा हुई.

कहा गया कि इससे डिजिटल सेवाएं सभी देशवासियों तक पहुंचेंगी और उनके सपनों को पूरा करने का जरिया बनेंगी. हाल में ऐसी खबरें भी आयीं कि सरकार ने ‘कॉल ड्रॉप’ से सख्ती से निपटने का मन बना लिया है, टेलीकॉम कंपनियों को गुणवत्ता सुधारने का आदेश दिया गया है और नहीं सुधरने पर एक जनवरी, 2016 से जुर्माना भरने को कहा गया है. पर, दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि इस कवायद का फिलहाल धरातल पर असर नहीं हुआ है. ट्राइ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में कॉल ड्राॅप की दर इससे पिछली तिमाही की तुलना में दोगुनी हो गयी है. सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में अप्रैल-जून में 2जी सेवाओं के लिए कॉल ड्रॉप दर 12.5 से बढ़ कर 24.59 फीसदी, जबकि 3जी सेवाओं के मामले में 15.96 से बढ़ कर 16.13 फीसदी तक पहुंच गयी है. फिलहाल रिपोर्ट में संतोष की बात बस इतनी है कि अप्रैल-जून के दौरान देश के स्तर पर कुल कॉल ड्रॉप दर 1.64 फीसदी रही, जो ट्राइ के तय मानक 2 फीसदी से कम है. दूरसंचार मंत्रालय एवं ट्राइ ने अपनी-अपनी समीक्षाओं में पाया है कि दूरसंचार कंपनियां नेटवर्क की समस्या दूर करने के लिए जरूरी धन खर्च नहीं कर रही हैं. दूसरी ओर कुछ सेकेंड में ही कॉल कट जाने पर भी पूरे मिनट की वसूली निर्बाध जारी है.

जिन कंपनियों की सेवाओं में कॉल ड्रॉप की शिकायत ज्यादा है, उनमें कुछ निजी कंपनियों के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल भी है. लेकिन, इसमें सुधार की राह तलाशने में विफल सरकार दोष यूपीए सरकार पर मढ़ने का प्रयास कर रही है, यह कहते हुए कि जब 2004 में एनडीए ने सत्ता छोड़ी थी, तब बीएसएनएल और एमटीएनएल काफी मुनाफे में थी, दस साल बाद 2014 में बड़े घाटे में पहुंच गयी.

देश के टेलीकॉम सेक्टर पर गौर करें, तो दस साल पहले देश में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का दबदबा था, पर हाल के वर्षों में निजी कंपनियों ने तेजी से पैर पसारे हैं, जिसमें सरकारी नीतियां मददगार रही हैं. जाहिर है, यह वक्त ऐसे नीतिगत उपाय तलाशने का है, जिससे स्थिति में जल्द सुधार हो. जब तक देश में, गांव-कस्बों में, मोबाइल नेटवर्क की गुणवत्ता नहीं सुधरेगी, इंडिया ‘कॉल ड्रॉप’ से ही जूझता रहेगा और ‘डिजिटल इंडिया’ एक ख्वाब ही रहेगा.

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