झारखंड सरकार ने ई-गवर्नेस की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है. प्रशासन को तकनीक से जोड़ कर जन-जन तक राहत पहुंचाना आज की जरूरत बन चुकी है. राज्य के नागरिकों के लिए ई-राहत सेवा आरंभ की गयी है. किसी भी दुर्घटना, चोरी या आपात स्थिति में नागरिक इस सेवा से फायदा उठा सकते हैं.
इसके तहत लोग हत्या, डकैती, छेड़खानी, बलात्कार, चोरी, ठगी, अगलगी, दुर्घटना, अपहरण, मेडिकल इमरजेंसी, बम विस्फोट, दंगा, आतंकवादी हमला, जंगल में आग, खनन दुर्घटना, केमिकल और औद्योगिक दुर्घटना, बर्ड फ्लू जैसी महामारी फैलने आदि के बारे में सरकारी अमले को सूचना देकर त्वरित प्रशासनिक सहायता पा सकते हैं.
आपात स्थिति में राज्य भर में एक ही नंबर 1967 डायल कर फौरी सहायता हासिल की जा सकती है. शिकायत करने के बाद की जा रही कार्रवाई के बारे में भी उन्हें एसएमएस कर सूचित किया जायेगा. अब देखना है लोग किस तरह इस सेवा का लाभ उठा पाते हैं और सरकार की यह व्यवस्था किस तरह सुचारु रूप से नागरिकों की मदद कर पाती है.
आजकल तकनीक से लैस लोगों और मोबाइलधारकों की तादाद जिस हद तक बढ़ी है, ऐसे में तकनीकी सर्किट के माध्यम से लोगों तक त्वरित मदद पहुंचाने की संजीदा कोशिश की जाती है तो निश्चित तौर पर ऐसी आपात घटनाओं का असर काफी हद तक कम किया जा सकता है.
पर सवाल है कि इसके लिए झारखंड कितना तैयार है. क्या राज्य के सभी जिले व प्रखंड मुख्यालय के सभी कार्यालय कंप्यूटरीकृत हो गये हैं? अभी देवघर जैसे जिले की अपनी वेबसाइट तक तैयार नहीं है. सरकार को सबसे पहले राज्य के पूरे प्रशासनिक अमले को तकनीकी प्रक्रियाओं से जोड़ने की जरूरत है. यहां साइबर क्राइम जैसे मामले प्रशासन के लिए चुनौती बने हुए हैं.
फेसबुक, ई-मेल, एमएमएस, एसएमएस आदि के जरिये ब्लैकमेलिंग, जालसाजी और धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. कारण यह है कि अभी राज्य पुलिस प्रणाली को तकनीकी तौर पर सुदृढ़ करना शेष है. शासन-प्रशासन को तकनीक से लैस करना समय की मांग है. इसके लिए सरकार को एक संपूर्ण रणनीति के साथ कदम बढ़ाना होगा, तभी अभीष्ट को हासिल किया जा सकता है.