ईश्वर, जिसने इस धरती को बनाया, स्वर्ग को बनाया, सब कुछ है उसी का है. क्या उसे कुछ कमी है? हम भारतीयों में ईश्वर के प्रति आस्था बहुत है, भक्ति है, कट्टरपंथ भी है, तभी तो धर्म के नाम पर लोग मरने-मारने को उतारू हो जाते हैं. हम बहुत भोले भी हैं, जो सांप्रदायिकता के नाम पर राजनेता अपना स्वार्थ भुनाने लगते हैं. हम अंधविश्वासी भी हैं और थोड़े नासमझ भी, क्योंकि हमें जो भी करने को कहा जाये, हम बिना कुछ सोचे-समङो करने को तैयार रहते हैं. इससे फायदा किसी को नहीं होता, बल्कि नुकसान ही होता है. यह धर्म है या अज्ञानता?
धर्म के नाम पर मार-काट किसी भी सूरत में सही नहीं. क्योंकि कोई मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. दूसरी बात यह कि धर्म के नाम पर हम लोग कितनी आसानी से ठग लिये जाते हैं. हमारी आस्था के नाम पर बहुत से लोग अपना व्यवसाय चला रहे हैं. हममें से अधिकतर लोग पाप और पुण्य के प्रति बहुत चिंतित रहते हैं. इसलिए बहुत-सा धन, सोना-चांदी मंदिरों में चढ़ा देते हैं. यही नहीं, हम अपने फायदे और दिखावे के लिए भी दान करते हैं. लेकिन ऐसे दान का कोई फायदा नहीं है. दान करना अच्छी बात है और करना भी चाहिए, पर किसे और कहां, यह समझना जरूरी है. आज हमारे देश का बहुत-सा सोना मंदिरों में जमा है. क्या भगवान को धन की जरूरत है? सच्ची पूजा है, कर्म और सेवा. हम ईश्वर की सेवा कैसे कर सकते हैं, वो तो दिखाई नहीं देते. लेकिन उनके बनाये हुए लोगों की, दीन-दुखी लोगों की सेवा कर हम ईश्वर की सेवा कर सकते हैं. आज देश में गरीबी है, लोग भूखों मर रहे हैं, ऐसे में कितना अच्छा होगा कि जिस धन को हम ईश्वर को अर्पित करना चाहते हैं, उसे दीन-दुखियों की सेवा में लगायें.
सानू राय, धनबाद