झारखंड में शिक्षक नियुक्ति में भाषा विवाद तूल पकड़ता जा रहा है. शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव ने भोजपुरी और मगही को बाहरी भाषा बताया है और उनका कहना है कि वे अपने बयान पर अब भी कायम हैं.
शिक्षा मंत्री का इस बारे में तर्क है कि झारखंड के अलग हो जाने के बाद जब बिहार ने मुंडारी, हो, संताली व कुड़ुख भाषा को हटा दिया, तब झारखंड बिहार की भाषाओं को क्यों मान्यता दे, वह भी तब जब इन भाषाओं की खुद बिहार में मान्यता नहीं है? शिक्षा मंत्री का कहना है कि भोजपुरी और मगही में जिन अभ्यर्थियों ने टेट (शिक्षक योग्यता परीक्षा) उत्तीर्ण की है, उनका रिजल्ट रद्द किया जायेगा. इसके लिए शिक्षक नियमावली बदली जायेगी. इस बयान के बाद झारखंड में राजनीति गरमा गयी है.
सरकार में शामिल घटक दलों के नेता, चाहे वे मंत्री ही क्यों न हों, शिक्षा मंत्री के बयान का विरोध कर रहे हैं. खुद कांग्रेस इस मुद्दे पर संशय की स्थिति है. पार्टी यह सोच नहीं पा रही है कि वह अपने मंत्री के बयान के पक्ष में खड़ी हो या भोजपुरी, मगही-भाषियों के. राजनीति अपनी जगह, असल मुद्दा यह है कि उन अभ्यर्थियों का क्या होगा जिन्होंने भोजपुरी या मगही में टेट परीक्षा पास की है? इसके अलावा यह भी आशंका है कि कहीं मुकदमेबाजी के चक्कर में बरसों से लटकी पड़ी शिक्षक नियुक्ति फिर न लटक जाये.
कुछ लोग व संगठन शिक्षा मंत्री के समर्थन-विरोध के नाम पर भाषायी विवाद खड़ा करना चाह रहे हैं, बाहरी-भीतरी का टकराव शुरू करना चाह रहे हैं, उन्हें ऐसी हरकतों से बाज आना चाहिए. झारखंड में शिक्षक नियुक्ति मजाक बन कर रह गयी है. अब तक आठ बार शिक्षक नियुक्ति नियमावली में बदलाव हो चुके हैं, पर नियुक्ति आज तक नहीं हो पायी है. ताजा विवाद को देखते हुए फिर से नियुक्ति लटकती दिख रही है. ऐसी अदूरदर्शिता शायद ही किसी किसी राज्य के शासन-प्रशासन में देखने को मिले. राज्य की महत्वपूर्ण नीतियों में एक स्थायित्व होना चाहिए. यहां आये दिन सरकार बदलती है और उसी हिसाब से आये दिन नीतियां बदलती रहीं, तो संकट हो जायेगा. अभी शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकार जो भी कदम उठाये, उसके कानूनी पहलुओं का ख्याल रखे, ताकि नियुक्ति में कोई अड़चन न हो.