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चिंताजनक घटनाएं
कुछेक गैरजिम्मेवार राजनेताओं के सांप्रदायिक विष-वमन से किसी शांतिप्रिय देश का मिजाज अचानक इतना कैसे बदल सकता है! चंद हफ्ते पहले तक जो देश ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्मार्ट सिटी’ पर बात कर रहा था, प्याज और दाल जैसी जरूरी चीजों की महंगाई को लेकर चिंतित था, अचानक गोमांस को लेकर […]
कुछेक गैरजिम्मेवार राजनेताओं के सांप्रदायिक विष-वमन से किसी शांतिप्रिय देश का मिजाज अचानक इतना कैसे बदल सकता है! चंद हफ्ते पहले तक जो देश ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्मार्ट सिटी’ पर बात कर रहा था, प्याज और दाल जैसी जरूरी चीजों की महंगाई को लेकर चिंतित था, अचानक गोमांस को लेकर मरने-मारने की बात करने लगा है!
दोनों समुदायों के कुछ नेताओं द्वारा जहर उगल कर इसे देश का सबसे जरूरी विवाद बनाने की कोशिशों के चलते स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि राष्ट्रपति तक को नसीहत देनी पड़ी- ‘विविधता, सहिष्णुता, सहनशीलता और अनेकता में एकता भारत के बुनियादी मूल्य हैं, जिन्हें सदैव ध्यान में रखा जाना चाहिए.’ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चुप्पी तोड़ते हुए, बिहार की चुनावी सभा में गुरुवार को अपील करनी पड़ी कि ‘लोगों को राष्ट्रपति की बात सुननी चाहिए तथा उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिए.’
गोमांस के नाम पर दादरी में हुई दुर्भाग्यपूर्ण हिंसा के जख्म अभी भरे नहीं हैं. उधर, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में गोमांस के मुद्दे पर जारी बवाल के बीच बीते दो दिनों में जो कुछ हुआ, उसे लोकतंत्र के लिए शर्मनाक ही कहा जायेगा. अपने देश-विरोधी भाषणों के लिए चर्चा में रहनेवाले निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद ने बुधवार शाम जिस तरह से एमएलए हॉस्टल परिसर में प्रचार और पोस्टर के साथ गोमांस पार्टी का आयोजन किया, उसका मकसद दूसरे समुदाय की भावनाओं को भड़काने के सिवा और क्या हो सकता है!
हुआ भी यही, बीजेपी विधायकों के एक दल ने पहले तो बुधवार को बीफ पार्टी रोकने की कोशिश की, लेकिन इसमें नाकाम रहने पर गुरुवार को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही बीजेपी विधायक रविंद्र रैना ने विधायक इंजीनियर रशीद को सदन में सबके सामने थप्पड़ जड़ दिया. क्या इस तरह खुलेआम सांप्रदायिक भावना भड़काने या फिर सदन की गरिमा को तार-तार करते हुए मार-पीट करनेवालों की जगह जेल में नहीं होनी चाहिए?
जरूरी सवाल यह भी है कि जिस देश में करोड़ों लोगों को दोनों शाम ठीक से भोजन नहीं मिल रहा है, युवाओं के लिए रोजगार सृजन में मुश्किलें आ रही हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं का टोटा है, वहां बहस के केंद्र में विकास और बेहतर जीवन की चिंता होनी चाहिए, या यह कि मुल्क में कौन क्या खायेगा? जरूरी हो गया है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तरह देश का शांतिप्रिय समाज भी अपनी चुप्पी तोड़े और बुनियादी मूल्यों की रक्षा तथा अमन-चैन कायम रखने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से सक्रिय एवं मुखर हो.
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