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खेतों में बढ़ता रसायनों का प्रयोग
देश में रासायनिक खादों का प्रयोग लगातार बढ़ता ही जा रहा है. अच्छी फसल की उम्मीद में किसान खेतों में खाद का प्रयोग करते हैं. इससे फसल की पैदावार तो बेहतर होती है, लेकिन मिट्टी की उत्पादकता और अनाज खानेवालों की सेहत पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यूरिया, डीएपी जैसे खाद और कीटनाशक दवाओं […]
देश में रासायनिक खादों का प्रयोग लगातार बढ़ता ही जा रहा है. अच्छी फसल की उम्मीद में किसान खेतों में खाद का प्रयोग करते हैं. इससे फसल की पैदावार तो बेहतर होती है, लेकिन मिट्टी की उत्पादकता और अनाज खानेवालों की सेहत पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यूरिया, डीएपी जैसे खाद और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से मिट्टी अपनी प्राकृतिक ताकत खोती जा रही है.
मिट्टी के प्राकृतिक तत्व खोने का अहम कारण खादों के प्रयोग से धरती के अंदर के जीव-जंतुओं का मर जाना भी है. अक्सर, बरसात के दिनों में धरती के अंदर से केंचुआ नामक एक जीव निकलता है.
एक शोध में पाया गया है कि केंचुआ एक प्रकार से खेतों की मिट्टी को जोतने का काम करता है. यदि एक केंचुआ साल भर जीवित रहता है, तो हजारों टन मिट्टी को ऊपर-नीचे करता है. इसके विपरीत जब हम खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं, तो केंचुआ जैसे जीव-जंतुओं की मौत हो जाती है. इससे खेत की ऊपरी परत कठोर हो जाती है. यही वजह है कि खेतों में मिट्टी के अंदर नमी बरकरार नहीं रहती.
वहीं, खेतों में खादों के प्रयोग से मिट्टी के जरिये रासायनिक तत्व पौधों तक आ जाते हैं. उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर दिखाई पड़ता है. आजादी के बाद देश में किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते थे, जो अब बढ़ कर 240 लाख टन हो गया है. इस आंकड़े से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमने कितनी तेजी से रासायनिक खाद का इस्तेमाल बढ़ाया है.
आज खेतों में रासायनिक खादों के प्रयोग का ही नतीजा है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसलों का उत्पादन गिरा है. अब वक्त जैविक खादों के प्रयोग का आ गया है.
– विवेकानंद विमल, माधोपुर, देवघर
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