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भारत-अफ्रीका मैत्री

नयी दिल्ली में अगले महीने की 26 से 30 तारीख तक होनेवाला तीसरा भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन, 1983 में हुई गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की बैठक के बाद सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय आयोजन होगा. 54 अफ्रीकी देशों में से ज्यादातर के प्रतिनिधियों के इसमें शामिल होने की उम्मीद है. रिपोर्टों के मुताबिक अब तक 35 से अधिक शासन-प्रमुखों […]

नयी दिल्ली में अगले महीने की 26 से 30 तारीख तक होनेवाला तीसरा भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन, 1983 में हुई गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की बैठक के बाद सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय आयोजन होगा. 54 अफ्रीकी देशों में से ज्यादातर के प्रतिनिधियों के इसमें शामिल होने की उम्मीद है.
रिपोर्टों के मुताबिक अब तक 35 से अधिक शासन-प्रमुखों की भागीदारी तय हो चुकी है. नरेंद्र मोदी सरकार के लिए यह एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक अवसर होगा, जिसमें अफ्रीका में भारत की आर्थिक एवं राजनीतिक उपस्थिति को मजबूत करने की दिशा में उल्लेखनीय पहलों की संभावना है. भारत और अफ्रीका के संबंध दो सदी पुराने हैं, लेकिन द्विपक्षीय कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग की क्षमताओं का अपेक्षानुरूप दोहन अब तक नहीं हो सका है.
वर्ष 1999 तक अफ्रीका के साथ भारत का व्यापार चीन से कहीं अधिक था, लेकिन 21वीं सदी की शुरुआत के साथ चीन ने अफ्रीका में अपने आर्थिक और वाणिज्यिक हितों का काफी तेजी से प्रसार किया है. दुनिया के इस दूसरे सबसे बडेÞ महादेश के साथ इस समय चीन का द्विपक्षीय व्यापार 200 बिलियन डॉलर से अधिक है, जबकि भारत के साथ अफ्रीकी वाणिज्य 65 बिलियन डॉलर के करीब ही है. ऐसे में इस शिखर सम्मेलन से बड़ी उम्मीदें अपेक्षित हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-अफ्रीका संबंधों के महत्व को इन शब्दों में निरूपित किया है- ‘भारत और अफ्रीका ऐतिहासिक रूप से, समान चुनौतियों और प्रगति की राह पर साझा यात्रा के आधार पर मित्रता के गहरे बंधन में बंधे हैं.’
महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास, पंडित नेहरू के गुट निरपेक्ष आंदोलन, उपनिवेशवाद के विरुद्ध अफ्रीकी संघर्ष में भारत के निरंतर समर्थन से लेकर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के महत्वपूर्ण मंच में दक्षिण अफ्रीका के साथ सहभागिता तक, भारत और अफ्रीका के बीच परस्पर सहयोग की परंपरा चली आ रही है.
पहले हुए दो भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन अपनी प्रकृति में सीमित थे और उनमें कुछ देशों का ही प्रतिनिधित्व हो सका था, लेकिन इस बार के आयोजन में हर देश को समुचित स्थान दिये जाने की कोशिशें की जा रही हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में करीब सात फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है, जो प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की दर से अधिक है. इस दर में कुछ और वृद्धि के साथ स्थायित्व की भी उम्मीदें हैं. ऐसे में मानव और प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न अफ्रीका भारतीय निवेश तथा वाणिज्यिक साझेदारी से विकास की अपनी आकांक्षाओं को उड़ान देने के साथ-साथ भारत की सुदृढ़ होती विकास यात्रा को भी सहयोग दे सकता है.
मौजूदा समय में अफ्रीकी महादेश की विकास दर चार फीसदी है, जो 4.4 के ऐतिहासिक औसत से कम है. लेकिन, यह दर विश्व बैंक द्वारा आकलित 2.9 के वैश्विक दर से कहीं अधिक है. इस महादेश में जनसंख्या बढ़ने की दर 2.55 है, जो अफ्रीका के विकास संभावनाओं में आगामी वर्षों में मानव-संसाधन की आपूर्ति कर सकता है.
अफ्रीका की 1.1 अरब जनसंख्या का एक-तिहाई मध्य वर्ग है, जिसकी संख्या का विस्तार हो रहा है. ऐसे में भारत तकनीक, इंफ्रास्ट्रक्चर, कृषि, शिक्षा, पर्यटन और उद्योग में समुचित निवेश की अपनी क्षमता से अफ्रीका की विकास-यात्रा का महत्वपूर्ण सहयोगी बन सकता है. निश्चित रूप में चीन इस महादेश में भारत का प्रमुख व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी है, पर अफ्रीका में अमेरिकी निवेश में कमी एक बड़ा मौका है.
पिछले तीन-चार वर्षों में अमेरिका के साथ अफ्रीका का द्विपक्षीय व्यापार 100 बिलियन डॉलर के स्तर से नीचे आया है. यूरोपीय अर्थव्यवस्था में अस्थिरता से उसके निवेश में वृद्धि की आशा कम ही है. पिछले कुछ महीनों से चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट भी भारतीय संभावनाओं के लिए उत्साहजनक खबर है. यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि अफ्रीका में भारतीय उद्यमों व उद्योगों की अधिकतर गतिविधियां उनकी अपनी कोशिशों और पहलों का नतीजा हैं.
इस स्थिति में पिछले कुछ वर्षों से बेहतरी आयी है और भारत सरकार विभिन्न अफ्रीकी देशों के साथ मिल कर भारतीय निवेश को बढ़ाने की प्रक्रिया में लगी है. लेकिन, इस प्रयास को अधिक त्वरित और योजनाबद्ध तरीके से आगे ले जाने की आवश्यकता है. इस संदर्भ में भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन को व्यावहारिक रूप से कामयाब बनाने की सरकार की कोशिशें उत्साहवर्द्धक हैं. वर्तमान विश्व में कूटनीतिक एवं राजनीतिक संबंधों का आधार वाणिज्य-व्यापार हैं.
इनके विस्तार से ही एक समृद्ध विश्व संभव है. भारत और अफ्रीका संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद ऐतिहासिक रूप से पिछडेÞ रहे हैं तथा विकसित राष्ट्रों की शोषणकारी नीतियों का खामियाजा भी भुगतते रहे हैं. ऐसे में दो अरब से अधिक लोगों का साथ एक नये दौर का सूत्रपात कर सकता है.

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