भारत निस्संदेह एक शांति प्रिय देश रहा है, जिसने हमेशा ही दुनियाभर में शांति स्थापना के लिए सकारात्मक रवैया अपनाया है. लेकिन दुर्भाग्य है कि खुद अपनी सुरक्षा और शांति भंग करने के लिए की जानेवाली कोशिशों के विरुद्ध विशेष संजीदा नहीं हो पाया है.
भारत को पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन सर्वाधिक परेशान करते हैं, जिसके हम भुक्तभोगी हुए पड़े हैं. हाल ही में एक बार फिर से जम्मू–कश्मीर में पुलिस और सेना पर हमला कर पाकिस्तान ने अपनी गंदी नीति उजागर की.
भारत हमेशा से ही बातचीत का पक्षधर रहा है, लेकिन वह यह बात कब समझेगा कि बातचीत सफल तब होती है जब दोनों पक्ष साझेदारी और समझदारी निभायें. एक तरफ पाकिस्तान बातचीत को तैयार रहता है और दूसरी तरफ आतंकवाद का सहारा लेता है. इसे दोहरेपन को भारत नजरअंदाज करता चला आया है. यह अब एक संकट का रूप ले चुका है और भारत को पाकिस्तान के संदर्भ में विशेष नीति निर्धारण करना चाहिए. भारत कम से कम फुफकार तो सकता ही है.
भारत के ढुलमुल रवैये के कारण पाकिस्तान की सरकार और सेना दो गुटों से वार करते आये हैं और हमारे नेता अपने संसद में अपनों के ही बीच में जवाब देकर और टेबल थपथपा कर संतोष कर लेते हैं. हमारे नेता हमेशा ठोस कदम उठाने से बचते रहे हैं. अपनी सुरक्षा को लेकर भारत गंभीर है, यह संदेश साफ–साफ शब्दों से भेजा जाना चाहिए. जरूरत पड़ने पर कड़े सैन्य संदेश भी भेजे जा सकते हैं और यह विदेश कूटनीति का एक महत्वपूर्ण अंश है.
भारत निश्चित रूप से इन कदमों में असफल रहा है, जिसका खामियाजा बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान और आस–पास के वाशिंदे भुगत रहे हैं. हम अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर कब संजीदा होंगे?
मनोज आजिज, आदित्यपुर, जमशेदपुर