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आज भी गांवों की स्थिति यथावत है
योजना आयोग से लेकर नीति आयोग तक तथा पंचवर्षीय योजनाओं से लेकर हालिया प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना तक सरकार की लगभग सारी योजनाएं गांव और ग्रामीणों को केंद्र में रख कर ही बनायी गयीं. फिर भी हमारे गांव व ग्रामीण विकास की दौड़ में पीछे क्यों छूट गये? आजादी के बाद पहली बार करायी गयी सामाजिक, […]
योजना आयोग से लेकर नीति आयोग तक तथा पंचवर्षीय योजनाओं से लेकर हालिया प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना तक सरकार की लगभग सारी योजनाएं गांव और ग्रामीणों को केंद्र में रख कर ही बनायी गयीं. फिर भी हमारे गांव व ग्रामीण विकास की दौड़ में पीछे क्यों छूट गये?
आजादी के बाद पहली बार करायी गयी सामाजिक, आर्थिक व जाति आधारित जनगणना के माध्यम से ग्रामीण भारत की असली तसवीर उभर कर सामने आयी है. ये आंकड़े बीते छह दशक में विकास के नाम पर राजनीति करनेवाले सियासतदारों और नीति-निर्माताओं की कार्यप्रणाली की असलियत को बखूबी बयान करते हैं. आंकडे चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं कि अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी सत्तासीन तथाकथित राजनेताओं ने देश के लिए कुछ नहीं किया. आज भी अधिकांश गांवों की स्थिति यथावत है.
सुधीर कुमार, गोड्डा
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