।। अखिलेश्वर पांडेय ।।
प्रभात खबर, जमशेदपुर
दूर–सुदूर से खबर आ रही है कि प्याज की कीमत को लेकर आप चाहे जितना भी आंसू बहा लें, यह कम नहीं होने वाली. वजह मैं बताता हूं. आगामी लोकसभा चुनाव की धमक पाकर इस बार का त्योहारी मौसम जरा ‘कड़क’ होने वाला है.
ऐसी सूचना है कि उपहार देने–लेनेवालों की नजर इस बार मिठाई और सूखे मेवे के बजाय प्याज पर अधिक है. इतनी महंगाई के बावजूद लोग मिठाई या ड्राई फ्रूट तो यदा–कदा खा भी लेते हैं, मगर कई परिवारों को महीनों से प्याज के दर्शन तक नहीं हुए. कई लोग तो प्याज का स्वाद तक भूलने लगे हैं.
अब ऐसे में अगर कोई इन्हें दो किलो प्याज गिफ्ट कर दे, तो वे तो यही कहेंगे न ‘आपने समझा प्याज के काबिल मुझे, दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गयी मंजिल मुझे..’ यही वजह है कि प्याज को स्टॉक किया जा रहा है, ताकि ऐन वक्त पर इसे गिफ्ट के भाव बेचा जा सके. तो आप तैयार रहिए, क्या पता कोई आपके यहां भी प्याज का उपहार लेकर पहुंचने वाला हो. इसकी चर्चा जब मैंने एक सज्जन से की तो वे उत्साहित हो गये– ‘‘यार! वैसे यह आइडिया बुरा नहीं है, क्योंकि इसमें कुछ नयापन है.’’ अब क्या पता, आनेवाले समय में कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को ‘प्यार’ के बदले ‘प्याज’ का तोहफा देने पर उतर आये. बोले– ‘‘इस एक प्याज की कीमत तुम क्या जानो जानू.. आज के समय में यह गुलाब से भी महंगा बिकता है.’’
अरे..रे..रे.., आप तो मुस्कराने लगे. दरअसल, हम आजकल प्याजमय समय में रह रहे हैं. जिधर–जहां देखो, जिसे–जहां सुनो बस प्याज की ही चर्चा है. राजनीति से लेकर फेसबुक तक पर प्याज ही प्याज बिखरा पड़ा है. इन दिनों प्याज की महत्ता पेट्रोल से कहीं अधिक बढ़ गयी है. तरह–तरह से लोग प्याज को गरिया रहे हैं.
यह तक कह रहे हैं कि प्याज खाना व खरीदना बंद कर देना चाहिए. मगर भाई क्यों? क्या प्याज को महंगा होने का हक नहीं? जब पेट्रोल–डीजल, फल–दाल, सीमेंट महंगे हो सकते हैं, तो प्याज क्यों नहीं? आखिर प्याज ने ही ऐसा क्या गुनाह कर दिया, जो वह महंगा नहीं हो सकता? वह क्यों नहीं पत्रिकाओं की कवर स्टोरी बन सकता? कमाल है, प्याज का महंगा होना लोगों को चुभ रहा है?
एक दिन एक प्रोफेसर साहेब कहने लगे. मैं तो आजकल पीएचडी करने के इच्छुक लोगों को ‘प्याज’ पर ही शोध करने की सलाह दे रहा हूं. हालांकि यह आसान नहीं है, लेकिन प्याज पर शोध करके मुझे ऐसा लगता है कि आखिर संकट में फंसे देश के लिए कुछ तो किया.
मैंने कहा– ‘‘प्याज पर शोध?’’ प्रोफेसर साहेब बोले– ‘‘हां भई, हां, आखिर इसमें बुराई क्या है? तमाम तरह के कवि, व्यंग्यकार, लेखक आदि जब इस महान ‘प्याज’ पर कलम चला रहे हैं, तो शिक्षाविद् भला क्यों पीछे रहें?’’