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यूनान को आयी छींक से जुकाम का खतरा

पुष्परंजन दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज ग्लोबल व्यापार की वजह से दुनिया इतनी छोटी हो चुकी है कि यूनान को आयी छींक से भारत को भी जुकाम का खतरा बना रहता है, क्योंकि 2013 में हम यूनान को 29.65 करोड़ डॉलर का भारतीय माल निर्यात कर रहे थे, आयात मात्र 43 लाख डॉलर का था. इस […]

पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज
ग्लोबल व्यापार की वजह से दुनिया इतनी छोटी हो चुकी है कि यूनान को आयी छींक से भारत को भी जुकाम का खतरा बना रहता है, क्योंकि 2013 में हम यूनान को 29.65 करोड़ डॉलर का भारतीय माल निर्यात कर रहे थे, आयात मात्र 43 लाख डॉलर का था.
इस समय ग्रीस जिस बीमारी से ग्रस्त है, उसका इलाज किसी यूनानी दवा में नहीं है. बीमारी आर्थिक है, और उसे ठीक करने के वास्ते विश्व के बड़े से बड़े ‘डॉक्टर’ लगे हुए हैं. विश्वास नहीं होता कि यूरोप, अफ्रीका और एशिया के मुहाने पर बसा ग्रीस, कंगाली की कगार पर है.
वही ग्रीस, जिसके शासक सिकंदर महान ने सिर्फ तीस साल की उम्र में ईसा पूर्व 375 ईस्वी तक प्राचीन विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था. सिकंदर महान के साम्राज्य की हदें ईरान तक ही नहीं, उत्तर भारत तक थीं. आज हम उसी ग्रीस की चर्चा कर रहे हैं, जो कल तक पूरे बाल्कन का सबसे बड़ा निवेशक देश था.
2008 के आर्थिक भूचाल से पहले इसी यूनान (ग्रीस) में जहाजरानी, कृषि, और पर्यटन उद्योग से पैसे बरसते थे. आज वही यूनान यूरोप का सबसे बड़ा कजर्दार देश है. ग्रीस पर 294 अरब यूरो का कर्ज है.
‘कर्ज लो, और घी पीयो’ के सनातन सिद्धांत को स्वीकार करनेवाला ग्रीस एक बार फिर 7.2 अरब यूरो का लोन यूरोपीय देशों से मांग रहा है. उसी पैसे से ग्रीस 30 जून, 2015 तक ‘आइएमएफ’ को 1.6 अरब यूरो चुकता करना चाहता था. शेष रकम से उसे अपनी अर्थव्यवस्था चलानी थी. ग्रीस को सबसे अधिक 56 अरब डॉलर का कर्ज जर्मनी दे चुका है.
उसी क्रम में फ्रांस से 42 अरब यूरो, इटली से 37 अरब यूरो, स्पेन से 25 अरब यूरो, ‘यूरोपियन फाइनेंशियल स्टैबिलिटी फैसिलिटी’ से 130 अरब यूरो, आइएमएफ से 47 अरब यूरो, और यूरोपीय संघ से 67 अरब यूरो ग्रीस ने ले रखा है. इन मुल्कों और संस्थाओं को डर है कि ग्रीस ने खुद को दिवालिया घोषित किया, तो इनके पैसे मिलने से रहे, साथ ही इन मुल्कों के निवेशक बरबाद हो जायेंगे. यूरोपीय आयोग, आइएमएफ, यूरोपियन सेंट्रल बैंक जैसी संस्थाएं यूनान को और कर्ज देने से पहले कुछ शर्ते आयद करना चाहती हैं. इनमें पेंशन में सुधार करने, कोई बारह सौ द्वीपों और पर्यटन को वैट के घेरे में लाने, तथा खर्च में कटौती प्रमुख हैं.
यूनान इन शर्तो को मानता है या नहीं, यह 5 जुलाई, रविवार के मतसंग्रह में साफ हो जायेगा. प्रधानमंत्री सिप्रास ने देश को भरोसे में लेने के वास्ते जनमतसंग्रह का कार्ड खेला है. यूरोपीय आयोग के प्रमुख जॉ क्लोद युंकर ने ग्रीक मतदाताओं को रविवार को होनेवाले मतसंग्रह से पहले चेतावनी देते हुए कहा कि नहीं कहने का मतलब, यूरोप को नहीं कहना होगा.
लेकिन जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल अब भी बीच का रास्ता ढूंढ रही हैं. मैर्केल ने कहा, ‘यदि एथेंस जनमत संग्रह के बाद बातचीत का आग्रह करता है, तो उसके लिए दरवाजे बंद नहीं किये जायेंगे.’ फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने भी मैर्केल से इत्तेफाक रखते हुए कहा कि वार्ता जारी रहनी चाहिए. यूरोपीय नेता ग्रीस के प्रति धमकी और प्यार, दोनों ही हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं.
28 सदस्यीय यूरोपीय संघ के 19 देश इस समय यूरोजोन में हैं, जिनकी मुद्रा यूरो है. 1 जनवरी, 1999 को यूरोजोन की बुनियाद रखी गयी थी, और उसके दो साल बाद 1 जनवरी, 2001 को ग्रीस यूरो जोन में शामिल हुआ था. पहली जनवरी, 2002 को यूरो को करेंसी के रूप में सदस्य देशों ने स्वीकार किया था.
ब्रिटेन जैसा यूरोपीय संघ का ताकतवर देश इस समय यूरोजोन में नहीं है.बल्कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ छोड़ दे, यह पिछले चुनाव का मुद्दा था. ग्रीस संकट से पूरे यूरो जोन के हौसले पस्त हैं. उन्हें डर है कि यदि यूनान, यानी ग्रीस यूरो जोन से बाहर हुआ, तो स्पेन और पुर्तगाल से निवेशक बाहर निकलने लगेंगे. यूरो का अवमूल्यन आरंभ हो जायेगा, यूरोपियन सेंट्रल बैंक ब्याज दर बढ़ायेगा. अमेरिकी निर्यात को नुकसान पहुंचेगा. अमेरिका, यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साङोदार है, जिसका सालाना 470 अरब डॉलर का आयात-निर्यात है. यूरोजोन से ग्रीस दो बार बेलआउट ले चुका है.
ग्रीस को 2 मई, 2010 को यूरोपीय आयोग, यूरोपियन सेंट्रल बैंक और आइएमएफ ने 110 अरब यूरो का पहला बेलआउट दिया था. उसके साल भर बाद ग्रीस 130 अरब यूरो का दूसरा बेलआउट मांगने लगा, जिसे ध्यान में रख कर 2012 में अगले दो वर्षो के लिए 240 अरब यूरो उसे दिये गये. ग्रीस को आखिरी बार जनवरी, 2015 से मार्च, 2016 तक के लिए यूरोपीय आयोग, यूरोपियन सेंट्रल बैंक और आइएमएफ ने कई शर्तो के साथ 8़2 अरब यूरो देने का वादा किया था. ग्रीस के मुंह में ‘बेलआउट’ का खून लग चुका है, वह चाह रहा है कि उसे 240 अरब यूरो की राहत, बेलआउट के रूप में एक बार फिर मिल जाये.
इस पूरे खेल में पुतिन का ग्रीस में प्रवेश करना इस इलाके की भू-राजनीतिक परिस्थितियों को बदल रहा है. जनवरी, 2015 में हुए संसदीय चुनाव में वामपंथी सिरिजा पार्टी विजयी हुई थीं. प्रधानमंत्री अलेक्सीस सिप्रास, ग्रीस की जनता को मुफ्त में बिजली और स्कूलों में ‘फ्री फूड कूपन’ बांटने के वायदे के कारण बुरे फंसे हैं. उन्हें लगता है कि यूरोपीय संघ पर दबाव बनाने के लिए मास्को एक ऐसा मार्ग है, जिसके लिए पुतिन भी मौका तलाश रहे थे.
पुतिन को ‘यूक्रेन का स्कोर’ भी ‘सेटल’ करना था. यह दिलचस्प है कि वामपंथी सिरिजा पार्टी को इस काम के लिए रूढ़िवादी चर्च की मदद मिल रही है. सिप्रास ने 31 मार्च, 2015 को यूक्रेन मामले में रूस पर प्रतिबंध लगाने की आलोचना की थी. सिप्रास ने रूसी समाचार एजेंसी ‘तास’ को दिये इंटरव्यू में कहा था कि यह एक ऐसा मार्ग है, जिसका कोई निकास नहीं है. चालीस वर्षीय युवा प्रधानमंत्री सिप्रास ने ऐसा बयान जारी कर पुतिन का दिल जीत लिया था, दूसरी ओर अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्रों की भृकुटियां तन गयी थीं.
सिप्रास 8 अप्रैल, 2015 को मास्को में थे. नये समझौते में यूनान से रूस को फल और कृषि उत्पाद भेजना है, बदले में उसे तुर्की के रास्ते रूस से तेल और दूसरे सहयोग का आश्वासन मिल चुका है. इस खेल में तुर्की, मैसेडोनिया, सर्बिया, अल्बानिया प्रधानमंत्री सिप्रास की मदद का अहद कर चुके हैं. इस नयी धुरी से यूरोपीय संघ के बंटने का खतरा साफ-साफ नजर आ रहा है. इसलिए यूरोपीय नेता सिप्रास को समझाने में लगे हुए हैं.
ग्लोबल व्यापार की वजह से आज दुनिया इतनी छोटी हो चुकी है कि यूनान को आयी छींक से भारत को भी जुकाम होने का खतरा बना रहता है, क्योंकि 2013 में हम यूनान को 29 करोड़ 65 लाख डॉलर का भारतीय माल निर्यात कर रहे थे और आयात मात्र तैंतालीस लाख डॉलर का था.

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