मेरे मन में एक सवाल हमेशा उठता रहता है कि क्या आजाद होते हुए भी हम आजाद हैं? आजादी के पहले हम सिर्फ अंगरेजों की हिंसा झेलते थे, लेकिन आज स्थिति और बदतर हो गयी है. हिंसा में इतनी वृद्धि हो गयी है कि अब इसका खात्मा करना कठिन हो गया है.
अगर हमें शराब और सिगरेट पीने की छूट मिली हुई है, तो क्या इसका मतलब है कि आप शराब की दुकानें मंदिर और स्कूल के समीप खोलने लगेंगे? सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त इन दुकानों को रोकने–टोकनेवाला भी कोई नहीं है, क्योंकि ये भारी मात्र में सरकारी खजाना जो भरते हैं.
मुझे तो लगता है कि अभी के राज से अच्छा अंगरेजों का राज था, जिसमें कम से कम इस बात की तसल्ली तो थी कि वे पराये हैं. लेकिन अब तो घर के रखवाले ही घर लूट रहे हैं. हमारा देश अपने ही राजनेताओं के हाथों गुलाम हो रहा है.
(भास्कर पांडेय, मुजफ्फरपुर)