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क्रिकेट की दागी दुनिया
ललित मोदी प्रकरण हनुमान की पूंछ की तरह लंबा हो रहा है और लंबी होती यह पूंछ क्रिकेट की उस स्वर्णिम लंका की तरफ इशारा कर रही है, जिसमें सत्तापक्ष एवं विपक्ष के कई नेता रह चुके हैं. आइपीएल के पूर्व कमिश्नर और प्रणोता ललित मोदी प्रकरण में सबसे पहले सुषमा स्वराज का नाम आया. […]
ललित मोदी प्रकरण हनुमान की पूंछ की तरह लंबा हो रहा है और लंबी होती यह पूंछ क्रिकेट की उस स्वर्णिम लंका की तरफ इशारा कर रही है, जिसमें सत्तापक्ष एवं विपक्ष के कई नेता रह चुके हैं. आइपीएल के पूर्व कमिश्नर और प्रणोता ललित मोदी प्रकरण में सबसे पहले सुषमा स्वराज का नाम आया. बहस उठी कि धनशोधन और फेमा उल्लंघन के आरोपी मानवीय आधार पर मदद दी जा सकती है या नहीं.
बहस ने तूल पकड़ा ही था कि बात ललित मोदी और सुषमा के वकील पति के बीसियों साल पुराने रिश्ते पर चली आयी. सोचा-पूछा जाने लगा कि क्या जिस व्यक्ति के ऊपर ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी हो, उसके साथ रिश्ते रखना किसी मंत्री के लिए कर्तव्य में कोताही माना जायेगा? बहस परवान चढ़ती, तभी वसुंधरा राजे और उनके बेटे का नाम उछला. ललित मोदी का क्रिकेट से व्यापारिक-प्रशासनिक याराना राजस्थान क्रिकेट बोर्ड के जरिये ही शुरू हुआ था.
वसुंधरा के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने भी आव्रजन मामले में ललित मोदी की मदद की और उनके बेटे की कंपनी में ललित मोदी ने करोड़ों रुपये लगाये. विपक्ष हमलावर हो रहा था, तभी कुछ नाम और आ जुड़े. ललित मोदी ने खुद कहा कि आव्रजन मामले में उन्हें रांकपा नेता शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल से भी मदद मिली है और कांग्रेस के राजीव शुक्ला से भी. पवार और शुक्ला भी भारतीय क्रिकेट बोर्ड के प्रशासक रह चुके हैं. बचाव के तर्क सबके पास हैं. ललित मोदी कह रहे हैं कि वे न भगोड़ा हैं, न ही इंटरपोल ने उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है.
सुषमा के पास मानवीय आधार का कवच है, तो वसुंधरा के पास जानकारी न होने की ढाल. पवार कह रहे हैं कि वे लंदन गये ही थे मोदी को यह बताने कि भारत आकर अदालत का सामना करो, जबकि राजीव शुक्ला कह रहे हैं तीन सालों से मोदी से संपर्क नहीं है. आरोप और बचाव की इस लुकाछिपी में बस एक बात नहीं पूछी जा रही है, कि धन की गंगोत्री जहां से फूटती है, वहां बाघ और बकरी अपना स्वभावगत वैर भूल कर साथ पानी पीने के लिए बैठे क्यों नजर आते हैं?
बीसीसीआइ दुनिया की सबसे धनी खेल संस्था में शुमार है और ललित मोदी प्रकरण ने साबित किया है कि बात धन की ऐसी सदानीरा नदी की हो तो नेता, अभिनेता, व्यापारी, नौकरशाह सब अपनी स्वभावगत दूरी को परे कर, पारस्परिक लाभ की ऐसी पारिवारिकता विकसित कर लेते हैं, जिसे भेद पाना सवा अरब लोगों के लोकतंत्र के लिए अकसर बहुत मुश्किल साबित होता है!
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