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हिंदी का अंगरेजीकरण न हो

भारतीय संविधान के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली हिंदी बतौर राजभाषा मान्य है. मूल देवनागरी लिपि में नुक्ता का अस्तित्व नहीं है, पर वर्तमान में इसमें नुक्ता का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. संस्कृत, हिंदी और झारखंडी भाषाओं में ‘ड़’, ‘ढ़’ का प्रयोग काफी पहले से होता आ रहा है, जबकि बांग्ला जैसी […]

भारतीय संविधान के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली हिंदी बतौर राजभाषा मान्य है. मूल देवनागरी लिपि में नुक्ता का अस्तित्व नहीं है, पर वर्तमान में इसमें नुक्ता का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. संस्कृत, हिंदी और झारखंडी भाषाओं में ‘ड़’, ‘ढ़’ का प्रयोग काफी पहले से होता आ रहा है, जबकि बांग्ला जैसी समृद्ध मानी जानेवाली भाषा ‘ड़’, ‘ढ़’, ‘य’, ‘व’ नहीं होते.

अत: अंगरेजों ने, जिनका प्रभुत्व बंगाल से प्रारंभ हुआ, बांग्ला उच्चरण के आधार पर ‘ड़’ के लिए ‘आर’ और ‘ढ़’ के लिए ‘आरएच’ का प्रयोग किया. इस आधार पर ‘झाड़खंड’ को अंगरेजी में झारखंड बनाया गया और फिर हिंदी में भी उसे झारखंड कर दिया गया, जिसे हम ‘झाड़खंडियों’ ने स्वीकार भी कर लिया. जनपद रामगढ़ में एक गांव है काना, जिसके दो भाग हुए बड़काकाना और छोटकाकाना. पर बांग्ला उच्चरण का अंगरेजीकरण कर फिर उसे हिंदी में बरकाकाना बनाकर रूढ़ कर दिया गया. रामगढ़ को अंगरेजी में रामगरह लिखते हैं, जो बांग्ला उच्चरण के कारण हुआ है.

पश्चिम और दक्षिण भारत में ‘ढ़’ के लिए ‘डीएच’ लिखते हैं, अत: वे ‘गढ़’ को ‘गढ’ लिखते हैं. उधर ‘ड़’ के लिए ‘आरएच’ का भी प्रयोग करते हैं. ऐसे में अगर हम ‘चंदवा मोड़’ लिखेंगे, तो उसे अंगरेजी में हमें ‘एमओआरइ’ यानी ‘मोर’ लिखना होगा, जिसका मतलब होता है ज्यादा. दरअसल हिंदी एक क्लिष्ट भाषा है और अंगरेजी अपेक्षाकृत सरल. आप एक जगह कलम रख कर अंगरेजी का शब्द लिख सकते हैं, लेकिन हिंदी के साथ ऐसा नहीं है. हिंदी में हमारे जो मान्य शब्द हैं और हिंदी, खोरठा सहित झारखंडी भाषाओं में जिनका जिस प्रकार प्रयोग होता है, उन्हें अंगरेजी से रूपांतरित करके लिखना यथोचित नहीं है.
गोपाल आनंद बाबा, चितरपुर, रामगढ़

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