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खनिजों की उड़ती धूल बनी जानलेवा
झारखंड खनिज संपदाओं वाला प्रदेश है. इसकी कोख में रत्नों का भंडार कूट-कूट कर भरा है. इनमें मुख्यत: कोयला, लोहा, तांबा, अभ्रक, बॉक्साइट, यूरेनियम आदि हैं. इनमें तमाम तरह के खनन कार्य में लकने खनिजों के खदानों से उड़ती धूल घातक व जानलेवा साबितहो रही है. इस धूल से वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, […]
झारखंड खनिज संपदाओं वाला प्रदेश है. इसकी कोख में रत्नों का भंडार कूट-कूट कर भरा है. इनमें मुख्यत: कोयला, लोहा, तांबा, अभ्रक, बॉक्साइट, यूरेनियम आदि हैं. इनमें तमाम तरह के खनन कार्य में लकने खनिजों के खदानों से उड़ती धूल घातक व जानलेवा साबितहो रही है. इस धूल से वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, प्रभावित क्षेत्र के लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होकर असमय काल के गाल में समा जा रहे हैं.
इस राज्य में कोयला प्रचूर मात्र में पाया जाता है. नतीजतन कोलियरियों की संख्या भी ज्यादा है. कोयला खनन एवं परिवहन कार्य में लगे डंफरों से इतनी अधिक धूल उड़ती है कि आसपास के लोगों को जीना मुहाल हो जाता है, अपितु उड़ती धूल से केवल ग्रामीण ही नहीं प्रभावित होते, बल्कि उस क्षेत्र के पेड़-पौधे, नदी-नाले, कुंआ-तालाब व पशु-पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं.
इन्हीं परेशानियों से आजिज होकर प्रभावित लोगों द्वारा खनन प्रबंधन के विरोध में सड़क जाम या प्रदर्शन करने के बावजूद प्रबंधन उड़ती धूल पर काबू पाने से अक्षम साबित होता है.
कोई भी कंपनी पर्यावरण के प्रति सजग नहीं है. राज्य की कई कोलियरियों में घूमने से ऐसा प्रतीत होता है, मानो इनसान किसी मरघट से गुजर रहा हो. झारखंड प्रदूषण बोर्ड का भी इस पर कोई नियंत्रण नहीं है. उदाहरण के तौर पर रामगढ़ जिले में चरही एरिया के केदला व झारखंड में कई कोलियरियां खनन कार्य में लगी हैं.
इसी के बगल में बसंतपुर कोवाशरी भी है. इस क्षेत्र में कोयलायुक्त धूल इतनी अधिक उड़ती है कि लोग काफी परेशान हैं. जिम्मेदार लोग प्रभावितों के प्रति जिम्मेदारी नहीं उठा रही है. झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों से आग्रह है कि वे इस समस्या से निजात दिलाने का यथासंभव प्रयास करें.
बैजनाथ महतो, हुरलुंग, बोकारो
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