10 मई की सुबह जैसे ही मैंने फेसबुक खोला ‘मदर्स डे’ के ढेर सारे पोस्ट भरे पड़े थे. ये सारे पोस्ट उस महान भारत देश के लोगों ने डाले थे, जहां लाखों की संख्या में लोग वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं.
एक दिन मदर्स डे मनाना और दूसरे दिन ही अपनी मां की सुधि नहीं लेना. खुद के बच्चे और पत्नी के लिए हर महीने कपड़े खरीदना, लेकिन मां को धागा भी नसीब नहीं. कितने शर्म की बात है कि अब मां भी अपने बच्चों की मोहताज हो गयी. जिस मां ने नौ माह तक अपने पेट में रख कर बच्चे को जन्म दिया, वही बच्चे का बाप होने के बाद बेईमान हो गया.
सच कहूं, तो सुबह मां की डांट के साथ आंख खुलना, खाते समय हाथ में मोबाइल देख भगवान से उसे खराब होने की दुआ मांगना आदि कितना अच्छा लगता था. हम ग्रामीण हर दिन इस तरह के मदर्स डे मनाते हैं. हे मां! तुङो कोटि-कोटि नमन.
शुभ वर्मा, गिरिडीह