यौन अपराधों व स्त्रियों के खिलाफ हिंसा से सर्वत्र असुरक्षा एवं भय का वातावरण निर्मित हो गया है. देश की दुर्दशा हो रही है तथा समाज दिशाहीन हो गया है. वास्तव में इस समस्या के समाधान के लिए सबको गंभीरतापूर्वक चिंतन कर सजग होना होगा.
मात्र सतही प्रतिक्रिया व्यक्त कर हम अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते हैं. संबंधित दोषी को नपुंसकता, फांसी, गोली मारने आदि की सजा की बात करना तात्कालिक आवेश के नतीजे हैं. इसमें समस्या के समाधान की संभावना बहुत कम है.
हालांकि ऐसा करके थोड़ी-सी संतुष्टि पायी जा सकती है. वास्तव में मानव जाति पापों के कारण परेशान है. हम भले ही सभ्य होने का ढोंग कर लें, पर हमें अपनी पशुता पर पूर्ण नियंत्रण करना सीखना होगा. आखिर क्यों आज 70 वर्ष का आदमी सात वर्ष की बच्ची को भी नहीं बख्श रहा?
मनोज कुमार, चैथी, चौपारण