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विवादों का समाधान बातचीत से ही संभव

गैरजिम्मेवाराना बयानों की श्रृंखला में एक और कड़ी जोड़ते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने भारत सरकार से कश्मीर के अलगाववादियों को पाकिस्तान भेजने की मांग की है. कश्मीर में मौजूदा हालात तनावपूर्ण हैं और राज्य की गंठबंधन सरकार ने कुछ समय पहले ही सत्ता की बागडोर संभाली है. ऐसे में […]

गैरजिम्मेवाराना बयानों की श्रृंखला में एक और कड़ी जोड़ते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने भारत सरकार से कश्मीर के अलगाववादियों को पाकिस्तान भेजने की मांग की है.
कश्मीर में मौजूदा हालात तनावपूर्ण हैं और राज्य की गंठबंधन सरकार ने कुछ समय पहले ही सत्ता की बागडोर संभाली है. ऐसे में इस तरह के बयान माहौल को खराब कर सकते हैं. इस बयान से यह सवाल भी खड़ा होता है कि आखिर भाजपा और संघ परिवार से जुड़े लोग बात-बात पर उनसे असहमत या उनके विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की धमकी क्यों देते हैं.
लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेता गिरिराज सिंह, जो अब मोदी सरकार में मंत्री हैं, ने कहा था कि नरेंद्र मोदी के विरोधियों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए. प्रसिद्ध कन्नड़ साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति द्वारा मोदी-विरोधी टिप्पणी के बाद उन्हें फोन कर पाकिस्तान जाने की बात कह कर परेशान किया गया था और ऐसी खबरें भी आयी थीं कि उन्हें पाकिस्तान का टिकट भी भेजा गया था. कुछ महीने पहले भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजम खान और दिल्ली स्थित जामा मसजिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी को भी पाकिस्तान भेजने की बात कही थी. ऐसे अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं.
दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे बयान देनेवाले नेताओं के खिलाफ भाजपा या संघ ने न तो कभी कार्रवाई की है और न ही उन्हें रोकने की कोशिश की है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक विरोधियों के साथ बातचीत कर मसलों के निपटारे की परंपरा रही है. नागालैंड, असम, मणिपुर, मिजोरम, पंजाब आदि राज्यों में अलगाववादी संगठनों से सरकारों ने वार्ताएं कर उन्हें मुख्यधारा में लाने की सफल कोशिशें की हैं. मौजूदा सरकार ने भी बार-बार यह कहा है कि हिंसा का रास्ता छोड़ कर समझौते के आकांक्षी समूहों से बातचीत करने से उसे कोई परहेज नहीं है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीमापार से भारत में अशांति फैलानेवाले तत्वों को सहयोग मिलता रहा है, पर इस पर लगाम लगाने के राजनीतिक और कूटनीतिक रास्ते उपलब्ध हैं. दक्षिणपंथी तत्वों को अपने फासीवादी रुझानों पर नियंत्रण करते हुए समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान में सहयोग करना चाहिए.

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