संयुक्त बिहार के समय ही स्थानीयता को पूर्ण रूप से परिभाषित एवं स्पष्ट कर दिया गया है. बिहार सरकार, श्रम एवं नियोजन विभाग के पत्र संख्या – 3 /स्था0 नि0-5014/81-806, दिनांक 3 मार्च 1982 के आलोक में स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा का आधार जिला को ही माना गया है. जिले में पिछले सर्वे रिकॉर्ड में जिन लोगों की अपनी या अपने पूर्वजों के नाम की जमीन, वासगीत आदि का उल्लेख हो, उन्हें ही जिले के दायरे में स्थानीय माना गया है. इस आदेश के आधार पर ही संयुक्त बिहार में स्थानीयता को परिभाषित किया गया था. आज भी वर्तमान बिहार में इसी आधार पर स्थानीयता परिभाषित है.
संयुक्त बिहार एवं वर्तमान बिहार में स्थानीयता की यह परिभाषा सर्वमान्य है, संविधानसम्मत है, तो स्थानीयता की वही परिभाषा बिहार से अलग हुए झारखंड के लिए सर्वमान्य क्यों नहीं है, संविधान-सम्मत क्यों नहीं है? इसका विरोध सिर्फ वे लोग कर रहे हैं जो लोग अन्य प्रदेशों के जिलों के स्थानीयता से आच्छादित हैं तथा स्थानीयता का दोहरा-तिहरा लाभ लेना चाहते हैं. शैक्षणिक संस्थाओं में नामांकन में तथा राज्य सरकार की विभिन्न रिक्तियों एवं पदों में इस तरह का उदाहरण सामने आ चुका है.
हाल में, झारखंड कीदारोगा नियुक्ति के कुछ आरक्षित वर्ग में नियुक्त दरोगाओं का भी बिहार के 53वीं, 54वीं, 55वीं संयुक्त बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में आरक्षित वर्ग में चयन हो चुका है. अर्थात् नियम के विरुद्ध लोग दो अलग-अलग राज्य में आरक्षण एवं स्थानीयता का लाभ ले रहे हैं. इस पर अंकुश लगाना आवश्यक है. झारखंड सरकार के कार्मिक विभाग के नियमों का कठोरता से अनुपालन नहीं होने से झारखंड के लोगों का व्यापक हित प्रभावित हो रहा है.