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फ्रांस से महंगा पड़ेगा ‘मेक इन इंडिया’

पुष्परंजन दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज यूरोपीय थिंक टैंक फ्रीद के एशिया कार्यक्रम प्रमुख गौरी खांडेकर के अनुसार, ‘यूरोप को वैसी प्राथमिकता नहीं मिल रही है, जो पिछली सरकारों ने दी थी. मोदी जब से सत्ता में आये हैं, उनका ध्यान इंडो-पैसेफिक कूटनीति पर ही केंद्रित रहा है.’ बस, जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल से मिलनेवाले चेहरे […]

पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज
यूरोपीय थिंक टैंक फ्रीद के एशिया कार्यक्रम प्रमुख गौरी खांडेकर के अनुसार, ‘यूरोप को वैसी प्राथमिकता नहीं मिल रही है, जो पिछली सरकारों ने दी थी. मोदी जब से सत्ता में आये हैं, उनका ध्यान इंडो-पैसेफिक कूटनीति पर ही केंद्रित रहा है.’
बस, जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल से मिलनेवाले चेहरे बदल गये हैं. मौका वही है, और दस्तूर भी वही. इस बार भी जर्मनी के हनोवर शहर में औद्योगिक मेले का उद्घाटन है, जिसका साझीदार देश भारत होगा. प्रधानमंत्री मोदी इसीलिए जर्मनी जा रहे हैं.
13 अप्रैल को हनोवर औद्योगिक मेले में ‘मेक इन इंडिया’ का नारा मोदी जी बुलंद करेंगे. नौ साल पहले अप्रैल का ही महीना था, जब उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चांसलर आंगेला मैर्केल हनोवर औद्योगिक मेले का मंच साझा कर रहे थे. 23 अप्रैल, 2006 के उस साझा प्रेस सम्मेलन को कई कारणों से मेरे जैसे पत्रकार के लिए विस्मृत करना मुश्किल लगता है. भारतीय पत्रकारों के दल में हमारे साथ ‘द हिंदू’ के संपादक एन राम भी थे, जिन्होंने मैर्केल से पूछा, ‘दो शासन प्रमुख, और दो अर्थशास्त्री मिल रहे हैं- क्या यह चुनौती है?’ चांसलर मैर्केल का जवाब था, ‘मैं भौतिक विज्ञानी हूं, अर्थशास्त्री नहीं!’
सवाल यह है कि जो अर्थशास्त्री होते हैं, क्या राजनीति में लंबे समय तक उनका टिके रहना मुश्किल होता है? यूरो जोन में आर्थिक भूचाल आया, और देखते-देखते राजनीति के अखाड़े से जाक शिराक, निकोलस सारकोजी, सिल्वियो बैलरुस्कोनी, टोनी ब्लेयर, गॉर्डन ब्राउन जैसे कई दिग्गज शासनाध्यक्ष बाहर हो गये, लेकिन भौतिक विज्ञानी मैर्केल ने तीसरी दफा भी अपनी कुर्सी बचाये रखने का कीर्तिमान स्थापित किया. मैर्केल ने शायद यह हुनर अपने राजनीतिक गुरु हेल्मुट कोल से सीखा था. ‘फोर्ब्स’ ने 2014 में मैर्केल को विश्व की सबसे शक्तिशाली महिला घोषित किया था. आज की तारीख में आंगेला मैर्केल सबसे लंबे समय तक अखंड सत्ता बनाये रखनेवाली यूरोपीय शासन प्रमुख हैं.
मनमोहन सिंह जब हनोवर आये थे, उस समय ‘मेडिसन स्क्वॉयर जैसा मेगा शो’ देख कर कई पत्रकारों को यह भ्रम हो गया था कि जर्मनी, भारत के सिविल न्यूक्लियर कार्यक्रम को समर्थन दे रहा है. लेकिन, जो लोग जर्मनी की घरेलू नीति को जान रहे थे, उन्हें पता था कि जिस तरह से अमेरिका ने भारतीय परमाणु कार्यक्रम के लिए बीच का रास्ता निकाला था, वह जर्मन राजनेताओं को रास नहीं आनेवाला.
मैर्केल ने आखिरी बार 30 मई, 2011 को अहद किया था कि 2022 तक जर्मनी के बाकी 17 परमाणु बिजली घर बंद कर दिये जायेंगे. मैर्केल की ख़ुद की पार्टी सीडीयू (क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन) व बावेरिया प्रांत में उसकी अनुषंगी इकाई सीएसयू (क्रिश्चियन सोशल यूनियन), और 2013 आम चुनाव के बाद महागंठबंधन में सहयोगी एसपीडी (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी) की लाइन बदली नहीं है. इसलिए जर्मनी, नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का सहयोगी नहीं हो सकता, इस सच को स्वीकार कर लेना चाहिए.
जर्मनी अक्षय ऊर्जा, ऑटोमोबाइल्स और भारी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अग्रणी देश है. जर्मनी, पूरे यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साङोदार है. कोई एक हजार जर्मन कंपनियां 16.1 अरब डॉलर का सालाना कारोबार भारत से कर रही हैं. जर्मनी जितनी मशीनरी दुनिया भर में निर्यात करता है, उसका 33 प्रतिशत भारत भेजता है. क्या इन जर्मन कंपनियों को मोदी जी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की ओर मुखातिब कर पायेंगे?
जर्मनी की दिलचस्पी भारत में हाइ स्पीड रेल, इंश्योरेंस सेक्टर से मुद्रा उगाही, इंडस्ट्रियल कॉरीडोर और स्मार्ट सिटी बनाने में है. लेकिन, जर्मनी का सरोकार भारत में ईसाइयों की सुरक्षा से भी है. यूरोपीय संघ के कई सारे थिंक टैंक हिंदूवादी नेताओं के बयानों, और चर्च पर हमले को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं.
उनकी धारणा है कि समाज बांटनेवाले वक्तव्यों से भारत में औद्योगिक माहौल नहीं बननेवाला. हनोवर मेले में इस बार 300 भारतीय कंपनियां शिरकत कर रही हैं. गौर से देखिये, तो 2006 में 350 भारतीय प्रदर्शक हनोवर मेले में आये थे. यानी नौ साल में भारतीय कंपनियों की भागीदारी बढ़ने की बजाय घटी है. क्या भारतीय उद्योग जगत का भरोसा यूपीए-1 की सरकार पर अधिक था? दुनिया में जो उद्यमी भारत में निवेश करने में दिलचस्पी ले रहे हैं, उनकी नजर भूमि अधिग्रहण कानून की हो रही छीछालेदर पर भी है.
फ्रांस, एटमी बिजली के मामले में जर्मनी से ठीक उलट है. फ्रांस में 75 प्रतिशत ऊर्जा की पूर्ति एटमी प्लांट से होती है. मनमोहन सिंह के समय ही महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु बिजलीघर लगाने का ठेका फ्रांस की कंपनी ‘एवेरा’ को दिया गया था. जर्मनी जाने से पहले शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से हो रही है, जिसमें 126 अदद ‘देसाल्ट राफेल जेट’ भारत को बेचने की घोषणा होगी.
इस अत्याधुनिक युद्धक विमान का सौदा 12 अरब डॉलर में हुआ था. अब चूंकि मोदी जी इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड बेंगलुरू में असेंबल कराकर ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो इसके लिए फ्रांस, 12 के बदले 20 अरब डॉलर की रकम मांग रहा है. मतलब ‘मेक इन इंडिया’ हमें आठ अरब डॉलर महंगा पड़ रहा है.
इससे पहले फ्रांस 18 देसाल्ट राफेल जेट भारत में भेज चुका होगा, बाकी के कलपुज्रे बेंगलुरू में जोड़े जायेंगे. इसके अलावा फ्रांस से उपग्रह द्वारा संचालित इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सिस्टम (इएलआइएनटी) को हासिल करने संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर होंगे. भारत-फ्रांस अंतरिक्ष, रेलवे और परमाणु सहयोग के क्षेत्र को और कितना विस्तार देंगे, वह समझौते के बाद समझ में आ जायेगा.प्रधानमंत्री मोदी को यूरोप दौरे में ब्रसेल्स भी जाना था, लेकिन ऐन वक्त, इसे स्थगित कर दिया गया.
28 देशों का समूह, यूरोपीय संघ से भारत का 73 अरब यूरो का व्यापार है, मगर यूरोपीय संघ से मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) कई वर्षो से टल रहा है. मोदी संभवत: इस वजह से ब्रसेल्स जाना टाल गये कि कहीं ‘एफटीए’ पर बात नहीं बनी, तो जगहंसाई होगी. यूरोपीय थिंक टैंक ‘फ्रीद’ के एशिया कार्यक्रम प्रमुख गौरी खांडेकर के अनुसार, ‘यूरोप को वैसी प्राथमिकता नहीं मिल रही है, जो पिछली सरकारों ने दी थी. मोदी जब से सत्ता में आये, उनके ‘ट्रेवल एजेंडे’ में यूरोप नहीं रहा है, उनका ज्यादा ध्यान ‘इंडो-पैसेफिक’ कूटनीति पर केंद्रित रहा है.’
यह बात बहुत हद तक सही है. ऐसा ही पेच कनाडा के साथ फंसा हुआ है. कनाडा से आर्थिक सहयोग समझौते (सीइपीए) के वास्ते 19-20 मार्च, 2015 को बैठक हुई थी, लेकिन इसमें ‘मेक इन इंडिया’ की जगह कितनी है, यह भी बंद मुठ्ठी की तरह है. कनाडा से मुक्त व्यापार समझौता एक अधूरे सपने जैसा है. मोदी इसे किस हद तक पूरा कर पाते हैं, उसका पता 14 से 16 अप्रैल को चल जायेगा, जब वे ओटावा, टोरंटो और बेंकुवर के दौरे पर होंगे!

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