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नौकरी से शादी तक डिग्री प्राप्त करने की मजबूरी

पिछले दिनों बोर्ड परीक्षा में नकल के मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचा दिया. उससे जुड़ा हर सवाल और चिंता वाजिब है कि आखिर कैसा होगा हमारा भविष्य. मूल सवाल है कि आखिर चोरी करनी ही क्यों पड़ती है? कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में तो खामी नहीं है. इन्हीं सब बातों/ सवालों को हमने […]

पिछले दिनों बोर्ड परीक्षा में नकल के मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचा दिया. उससे जुड़ा हर सवाल और चिंता वाजिब है कि आखिर कैसा होगा हमारा भविष्य. मूल सवाल है कि आखिर चोरी करनी ही क्यों पड़ती है? कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में तो खामी नहीं है. इन्हीं सब बातों/ सवालों को हमने इस विशेष श्रृंखला नकल पर नकेल में समेटने का प्रयास किया है. इसी कड़ी में हमने राज्य के कुछ मनोवैज्ञानिकों से बात की.

इनका कहना है कि बच्चों को यह बताना होगा कि सिर्फ डिग्री भर लेने से नहीं होगा, प्रतियोगिता के इस दौर में गहराई से पढ़ने की आवश्यकता है. शिक्षा प्रणाली से लेकर परीक्षा प्रणाली में बदलाव लाने की आवश्यकता है. हरेक शिक्षक, अभिभावक, समाज, विद्यार्थी और पॉलिसी मेकर को इस पर ध्यान देना होगा, तभी यह समस्या दूर होगी.

सरल तरीका अपनाने की मानसिकता

समाज में नकल की मानसिकता का विकास हुआ है. यह चाहे परीक्षा हो या फिर सामान्य जीवन की ही बात क्यों न हो. लोगों की मानसिकता ही बन गयी है सरल तरीका अपनाने की. इसी कड़ी में परीक्षा में पास होने के लिए नकल कर रहे हैं विद्यार्थी. बच्चों को संस्कार मां-बाप से ही मिलता है. इसमें कमी रहने का असर भविष्य में दिखने लगता है. परीक्षा में बच्चों को अधिक से अधिक अंक मिले, यह हर अभिभावक चाहता है, जबकि मनोवैज्ञानिक रूप से बच्च पीछे ही रह जाता है.

एक पढ़ा-लिखा भी रिक्शा चला रहा है. सिर्फ डिग्री प्राप्त कर लेने से ही लोग शिक्षाविद नहीं हो जाते. कम अंक लाने पर भी जीवन यापन का रास्ता मिलता है. बच्चों को यह बताना होगा, नकल सही नहीं है. मेहनत करें, जो प्रतियोगिताओं में काम आयेगा. आज बच्चों को तकनीकी ज्ञान सहित कौशल विकास की आवश्यकता है.

डिग्री को ज्ञान से नहीं जोड़ना चाहिए. बच्चों को ज्ञान कैसे मिले, अधिक से अधिक गहराई से वे किसी विषय की पढ़ाई कर सकें, इसके लिए शिक्षक, अभिभावक, समाज और सिस्टम को भी मेहनत करनी होगी. शिक्षा प्रणाली से लेकर परीक्षा प्रणाली में बदलाव लाने की आवश्यकता है. बच्चों को अंक भी मिले, इसके लिए पार्ट वाइज अंक की व्यवस्था हो. अधिक अंक वाले प्रश्न छूट न जायें, इसके लिए बच्चों को नकल करने की आवश्यकता ही नहीं पड़े. प्रश्न पत्र ऐसा तैयार करें कि उन्हें नकल करने की गुंजाइश ही नहीं मिले. सिस्टम को मजबूत कर दें, ताकि नकल करने से पहले सोचना पड़े.

डॉ अमूल रंजन सिंह, निदेशक, रिनपास

पढ़ाई नहीं करने पर मजबूरी बन रही है नकल

नकल का कोई मनोवैज्ञानिक कारण नहीं है. साल भर विद्यार्थी नहीं पढ़ेंगे, तो उसे पास होने के लिए नकल का ही सहारा लेना पड़ेगा. परीक्षा पास हो जायेगा, तो उसे समाज में अच्छी नजरों से देखा जायेगा. शादी से लेकर नौकरी तक डिग्री प्राप्त करने के लिए इसी रास्ते को अपनाना ही एक मजबूरी बन जा रही है. कोई अभिभावक नहीं चाहता है कि उसके बच्चे नकल करके ही पास हो.

अभिभावक के पास मजबूरी तब हो जाती है, जब उसके बच्चे नालायक हो जाते हैं या फिर परीक्षा से उसे भय लगने लगता है. ऐसी परिस्थिति में अभिभावक भी नकल करा कर किसी तरह पास करा देने में अपने को शामिल कर लेते हैं. इसके लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने से भी नहीं हिचकते. किसी भी बच्चे का आधार अगर मजबूत नहीं होगा, तो उसे आगे परेशानी होगी. नकल रोकने के लिए लोगों के एप्रोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है.

स्कूल-कॉलेज में पढ़ने-पढ़ाने के माहौल में कमी आने, शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा अन्य कार्य में लगा देने आदि से भी इसका सीधा असर बच्चों पर पड़ता है. सिस्टम को दुरुस्त करना होगा. सिस्टम को बिगाड़ने में सबों का हाथ है. समाज भी इसके लिए जिम्मेदार है. समाज चाहे, तो इस पर अंकुश लगा सकता है. यूपी में 1990 में नकल को अपराध मानते हुए अध्यादेश तक लाया गया, रोक लगी, लेकिन बाद में फिर दूसरी सरकार ने फिर इसे वापस ले लिया. यानी एक शिक्षक, अभिभावक, समाज, विद्यार्थी और पॉलिसी मेकर को इस पर ध्यान देना होगा, तभी यह समस्या दूर हो सकेगी.

डॉ केएस सेंगर, मनोवैज्ञानिक

बच्चों में सही-गलत की पहचान जरूरी

यह तो सही है कि आरंभ से पढ़ाई नहीं की और परीक्षा देने चले गये. ऐसे में विद्यार्थी पास होने के लिए नकल का सहारा लेते हैं. बच्चे पढ़ाई को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं. शिक्षा के महत्व को जब तक बच्चे नहीं समङोंगे, वे गलत रास्ता ही अख्तियार करेंगे. बच्चों की मानसिकता को बदलनी होगी. उनका मानसिक विकास करना होगा. उन्हें यह बताना होगा कि सिर्फ डिग्री भर लेने से नहीं होगा, प्रतियोगिता के इस दौर में गहराई से पढ़ने की आवश्यकता है.

मां-बाप का रोल अहम हो जाता है. अपने बच्चों को आरंभ में ही बतायें कि सही या गलत क्या है. घर से लेकर स्कूल-कॉलेज में एक माहौल तैयार करना होगा. पढ़ाई की कीमत समझाने की आवश्यकता है. उन्हें वेल्यू नहीं सिखाया गया है, जिससे बच्चे भटक जा रहे हैं. बच्चों के दोस्तों के समूह पर ध्यान देने की आवश्यकता है. पढ़ाई नहीं करने और अंतिम समय में परीक्षा में बैठने पर बच्चे फेल होने के डर से दोस्तों के साथ मिल कर नकल करने या कराने की योजना बना लेते हैं.

युवा रहने के कारण रिस्क उठा लेते हैं. अभिभावक भी सोचते हैं कि नकल कर लेने से कम से कम बच्चों का एक साल बच जायेगा या फिर पास हो जायेगा, तो आगे का रास्ता खुल जायेगा. इसलिए इस रिस्क में बच्चों के साथ-साथ अभिभावक भी शामिल हो जाते हैं. अभिभावकों को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. सिस्टम में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है. बच्चों को ज्ञान देकर उसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है.

डॉ मनीषा किरण, मनोवैज्ञानिक

समाज में मूल्यों का महत्व कम हो गया है

बच्चों को यह जानना जरूरी है कि अब सिर्फ डिग्री से कुछ नहीं होनेवाला है. स्किल जरूरी है, यह समझना होगा. बच्चों को सीखने पर ध्यान देने की जरूरत है. समाज ने जिस प्रकार से आगे बढ़ने के लिए अंक और मेरिट को आधार बना दिया है, इसे पूरा करने के लिए बच्चे नकल कर किसी तरह अधिक से अधिक अंक हासिल करना चाह रहे हैं.

समाज में भी मूल्य की कमी हो गयी है. सिर्फ डिग्री चाहिए, चाहे वह कैसे भी हासिल हो जाये. सीखेंगे नहीं, तो आगे जहां भी जायेंगे, वहां डिग्री नहीं आपके अंदर काम करने की क्षमता ही आगे बढ़ायेगी. इसे समझाने में घर से ही अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. अधिक अंक लाने के लिए बच्चे भी वैसे संस्थान और दोस्तों का चयन करते हैं, जो इस तरह के कार्य करते हैं. अभिभावक भी चाहते हैं कि बच्चे को अधिक अंक मिल जायेगा, तो उसे भविष्य में काम देगा. फलस्वरूप इस तरह के कार्य में वे भी शामिल हो जाते हैं.

अगर बच्च हाइस्कूल में नकल कर पास करता है, तो आगे इंटरमीडिएट में तो कोर्स और भारी होगा. ऐसी स्थिति में जब आधार कमजोर रहेगा, तो बच्च एक बार फिर इंटर में भी नकल कर आगे बढ़ने का प्रयास करेगा. अंतत: बच्चों में नकल करने की आदत सी हो जायेगी. इसे रोकने के लिए अभिभावक, शिक्षक व समाज को आगे आना होगा. बच्चों को बताना होगा कि यह गलत है. नकल के भरोसे रहने से बच्चे विषय को भी भलीभांति नहीं समझ सकते हैं. घर से ही बच्चों में संस्कार डालने होंगे. उन्हें सीखने के लिए प्रोत्साहित करना होगा.

डॉ मशरूर जहां, मनोवैज्ञानिक

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