चंद दिनों पहले ही मैंने अपना जन्मदिन मनाया. जन्मदिन को लेकर बचपन से ही उत्साही रही हूं. लेकिन इस बार जन्मदिन पर मुझे कुछ खास अनुभव हुआ, जिसे मैं आपके साथ साझा कर रही हूं. मध्यरात्रि को जैसे ही घड़ी ने बारह बजाये, मेरा फोन बज उठा. उनींदी अवस्था में कई आशंकाओं के साथ फोन उठाया.
फोन कान तक पहुंचने से पहले ही "हैप्पी बर्थडे दी"की चीख सुनायी पड़ी. मैंने खुद को संभाला और धन्यवाद का राग अलापा. फोन पर दूसरी ओर, हॉस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही मेरी छोटी बहन थी. चूंकि वह घर से दूर रहती है, इसलिए उससे बात करते हुए मैंने साढ़े बारह बजा दिये.
फोन अभी रखा ही था कि मेरे एक सहकर्मी का फोन आ गया. उनसे बात करके जब मैंने फोन रखा, तब तक नींद गायब हो चुकी थी. करवट बदलते–बदलते भोर में जाकर आंख लगी. तभी अचानक फोन के दोबारा घनघनाने पर मैंने घड़ी की ओर नजर फेरी, देखा सुबह के पांच बज रहे हैं.
मैंने फोन उठाया. इस बार बधाई देनेवाले सर्वप्रिय जीजाजी थे. इसलिए खीज का सवाल नहीं था. उस पर जब बधाई के साथ–साथ यह सूचना मिली कि तोहफे के लिए हजार रुपये मेरे खाते में आ गये हैं, तो एक अलग ऊर्जा का संचार पूरे शरीर में हो गया. सोने पर सुहागा तब महसूस हुआ, जब माताजी ने पैर छूने पर सौ रुपये और नयी ड्रेस थमा दी. नयी ड्रेस का महिलाओं के बीच कैसा क्रेज होता है, यह कोई पुरुष नहीं समझ सकता. घर से ऑफिस के लिए निकली, तो मेरे परम मित्र शर्मा जी मिल गये.
उन्होंने जन्मदिन की बधाई देते हुए पूछा, तो मोहतरमा आप कितने साल की हो गयीं. मेरे जवाब देने से पहले ही वे ठहाका लगा कर हंस पड़े और कहा, अरे भाई मैं तो मजाक कर रहा था, मुझे पता है कि उम्र बताने के मामले में महिलाएं कंजूस होती हैं.
उनकी यह बात मुझे कॉलेज के दिनों में ले गयी, जब 21 पूरी करने पर मेरी एक सहेली ने कहा था, तुम अपनी सही उम्र क्यों बताती हो, मैं तो आराम से 4-5 साल छुपा लेती हूं. तब मैंने उससे सवाल किया था, इससे क्या फायदा है? उसने मेरी जिज्ञासा शांत करते हुए बताया था कि अगर तुम 21 की हो और उतनी ही उम्र बताओगी, तो लोग उसमें चार–पांच साल जोड़ कर तुम्हारी उम्र आंकेंगे.
तभी शर्मा जी की बातों से मेरी तंद्रा टूटी. नाराज हो गयीं क्या मैडम मैंने तो यूं ही उम्र पूछ ली. खैर, भले ही अब आप षोडशी न रही गयी हों, लेकिन लगती ‘टंच माल’ हैं. शर्मा जी की बातें सुन कर मुझे समझ में नहीं आया कि वह मेरी तारीफ कर रहे हैं या फिर बेइज्जती.
अब मुझे दिग्गी राजा पर गुस्सा आने लगा. अजीबोगरीब बयान देकर लोगों की भाषा भ्रष्ट कर रहे हैं. और कोई सवाल उठाये, तो जौहरी–सुनारी की भाषा में टंच माल का मतलब समझाने लगते हैं.