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नारी पर आरी मत चलाएं

‘नारी खुद खो रही अपना सम्मान’ शीर्षक से 14 मार्च के ‘पाठक मत’ में प्रकाशित पत्र को पढ़ कर अफसोस हुआ. कुछ स्त्रियों के दुराचरण के आधार पर हम ऐसे उदाहरणों का सामान्यीकरण नहीं कर सकते हैं. सीता-हरण के लिए लेखिका ने सीता द्वारा लक्ष्मण रेखा पार करना रूपी ‘मर्यादा उल्लंघन’ को दोषी ठहराया है. […]

‘नारी खुद खो रही अपना सम्मान’ शीर्षक से 14 मार्च के ‘पाठक मत’ में प्रकाशित पत्र को पढ़ कर अफसोस हुआ. कुछ स्त्रियों के दुराचरण के आधार पर हम ऐसे उदाहरणों का सामान्यीकरण नहीं कर सकते हैं. सीता-हरण के लिए लेखिका ने सीता द्वारा लक्ष्मण रेखा पार करना रूपी ‘मर्यादा उल्लंघन’ को दोषी ठहराया है. मेरे विचार से सीता-हरण के लिए लक्ष्मण रेखा का पार करना तो एक बहाना भर था. इसका मूल कारण तो था लक्ष्मण द्वारा रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट लेना. शूर्पणखा के प्रणय निवेदन को शालीनता से भी तो ठुकराया जा सकता था.

‘निर्णय का अधिकार’ स्त्री सशक्तीकरण का सबसे बड़ा मानदंड है. ऐसे में सीता तो इस मानदंड पर खरी उतरीं. आज जहां बुद्धिजीवी महिलाएं प्राय: पुराने अखबार बेचने से पहले भी पति की इजाजत लेती हैं कि कैसे किलो बेचें, वहां सीता ने इतना बड़ा निर्णय लिया तो सही. 10 में से पांच निर्णय हमारे भी गलत हो जाते हैं, पर स्त्री अपने बलबूते निर्णय ले, यह बड़ी बात है.

ऐसी सशक्त महिला को अग्निपरीक्षा के लिए मजबूर करना क्या मर्यादा का उल्लंघन नहीं था? उक्त पत्र में महाभारत के लिए द्रौपदी के अमर्यादित बोल को दोषी ठहराया गया है, परंतु क्या आपको नहीं लगता है कि महाभारत द्रौपदी के कटुवचन के कारण नहीं, उसके पांच ‘जुआरी’ पतियों के अमर्यादित आचरण के कारण हुआ. यह थेथरदलीली है कि जुआ खेलना उस समय का धर्म था. क्या पत्नी को दावं पर लगाना भी उस समय का धर्म था? ‘निर्भया’ और उस जैसी बच्चियों ने कौन सा मर्यादा का उल्लंघन किया था? आखिर नैतिकता के ठेकेदार कब तक स्त्रियों की निगहबानी करते रहेंगे. धर्म के नाम कब तक उसे खूंटों से बांधे रहेंगे?

डॉ उषा किरण, रांची

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