* धान–चावल घोटाला
पिछले कुछ महीनों से धान–चावल के गबन का मामला भी बीच–बीच में सामने आ जा रहा है. आना भी चाहिए. बड़ा मामला है. सैकड़ों करोड़ रुपये का माल दावं पर है. सरकार ने आमलोगों के पैसे से धान खरीद कर राइस मिल मालिकों को चावल तैयार करने को दिया था. समस्या यह कि मिल मालिकों ने धान तो लिया, पर तैयार किया हुआ चावल वापस नहीं लौटाया.
घपले–घोटाले के कई अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी राज्य सरकार की ओर से पहल हुई है. राइस मिल मालिकों के खिलाफ सर्टिफिकेट केस व एफआइआर दर्ज कराये गये हैं. करीब ढाई सौ मिल मालिकों के खिलाफ. इस मामले में धान–चावल की कीमत के अतिरिक्त महत्वपूर्ण बात यह है कि चावल उद्योग के जिन लगभग एक हजार उद्यमियों को यह काम सौंपा गया, उनमें करीब 25 फीसदी पर गड़बड़ी करने का आरोप है.
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि किसी भी क्षेत्र में आज की तारीख में भी भ्रष्ट तरीके से गड़बड़ी करनेवालों की तादाद कम नहीं है. सामाजिक दृष्टि से यह समस्या आज भी विकराल दिख रही है. ऊपर से मुश्किल यह कि जो सरकारी अधिकारी–कर्मचारी किसी न किसी रूप में इस मामले से जुड़े थे, उनमें से भी कई के खिलाफ आरोप सामने आये हैं.
अच्छी बात है कि सरकार ने इनके खिलाफ कार्रवाई भी की है. लेकिन, इस घटना से स्पष्ट है कि केवल कुछ लोगों द्वारा धान–चावल का गबन किया नहीं गया, बल्कि कुछ दूसरे लोगों द्वारा गबन करवाया भी गया. गबन में मदद की गयी. जान बूझ कर ऐसी स्थिति पैदा की गयी. क्योंकि दावं पर पब्लिक का माल है. इस कड़ी में राइस मिल मालिकों की ओर से सरकारी कर्मचारियों के आचरण के बारे में जो बताया जा रहा है, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. इनके खिलाफ भी और बड़े पैमाने पर गंभीर कार्रवाई की जानी चाहिए.
सरकारी धान से तैयार चावल के उठाव के लिए अधिकारियों द्वारा कमीशन मांगे जाने के बाबत राइस मिल मालिकों के आरोपों की ठीक से जांच होनी चाहिए. जिन कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है, उनकी संख्या और बढ़ सकती है. कुल मिला कर धान–चावल के खेल में राइस मिल मालिकों के साथ ही सरकारी अधिकारी–कर्मचारियों की मिलीभगत की गहन छानबीन कर गड़बड़ी करनेवालों के खिलाफ प्रशासन को पूरी सख्ती से पेश आना चाहिए. यह सरकार की साख को जनता में बढ़ाने के लिए भी जरूरी है.