केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने राज्य सभा में एक प्रश्न के जवाब में गत 7 अगस्त को बताया कि केंद्र सरकार ने नक्सलवाद से प्रभावित चार राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं ओड़िशा में नक्सलवाद के सफाये के लिए 373 करोड़ रुपये की योजना मंजूरी की है.
यह राशि सुरक्षाकर्मियों के प्रशिक्षण, साजो-सामान तथा वाहनों पर खर्च की जायेगी. लेकिन, क्या इस तरीके से वामपंथी उग्रवाद का खात्मा हो जायेगा? जबकि, अभी तक का अनुभव है कि बलपूर्वक किसी क्रांतिकारी आंदोलन या जनसमूह को कुचलना हानिकारक ही सिद्ध होता है. इससे, जहां धन-जन की बर्बादी होती है, वहीं आंदोलन पुन: नये रूप में सामने आ जाता है.
उपरोक्त चार राज्यों में नक्सलवाद का इतिहास रक्तरंजित रहा है. फिर ऐसे में जब सरकारी तंत्र मानवीय हित की परवाह किये बगैर कोई कड़ा रुख अख्तियार करता है, तो नक्सलियों को भी अपने कृत्यों का औचित्य ठहराने का बहाना मिल जायेगा. नक्सलवाद का समाधान हथियार कभी नहीं हो सकते. इसके बजाय इन राज्यों के शिक्षित युवाओं को पूरे देश में नौकरियों में प्राथमिकता दी जाये, उद्योग लगाये जायें, मजदूरों को मुआवजा की जगह साल भर काम मुहैया कराया जाये, सभी सरकारी विभागों के रिक्त पदों को एकसाथ संयुक्त परीक्षा से तत्काल भरा जाये, पुलिस को जनता का सहयोगी बनाया जाये, गरीबों का उत्पीड़न करनेवालों को दंडित किया जाये.
इन उपायों को धरातल पर लाये बिना नक्सलवाद का समाधान असंभव है, क्योंकि बेरोजगारी और गरीबी युवाओं का वर्तमान राजनीतिक तंत्र से मोह भंग कर रही हैं. युवा नये युग के निर्माण की चाह में नये-नये रास्तों की तलाश कर रहे हैं. जरूरत है, इस युवा वर्ग के कौशल तथा उमंग का उपयोग राष्ट्र निर्माण में करने की.