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‘स्वाइन फ्लू’ को बेकाबू होने से रोकें
देशभर में स्वाइन फ्लू से मरनेवालों की संख्या सात सौ के आंकड़े के आसपास पहुंच रही है और 10 हजार से अधिक लोग संक्रमित हैं. इस बीमारी के महामारी का रूप लेने की खबरें महीने भर से आ रही हैं, परंतु केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकारें इस पर काबू पाने के लिए तत्पर नहीं […]
देशभर में स्वाइन फ्लू से मरनेवालों की संख्या सात सौ के आंकड़े के आसपास पहुंच रही है और 10 हजार से अधिक लोग संक्रमित हैं. इस बीमारी के महामारी का रूप लेने की खबरें महीने भर से आ रही हैं, परंतु केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकारें इस पर काबू पाने के लिए तत्पर नहीं दिख रही हैं.
मंत्रियों और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के बयान जरूर संकेत कर रहे हैं कि सरकार को चिंता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बता रही है. देश की राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में भी दवाइयां और मुंह पर पहननेवाली पट्टी तक उपलब्ध नहीं है. बड़ी संख्या में मरीजों की शिकायत है कि सरकारी अस्पताल जांच में आनाकानी कर रहे हैं, जिसके चलते उन्हें महंगे निजी अस्पतालों में मजबूरन जाना पड़ रहा है. खबरों के मुताबिक निजी अस्पताल जांच के लिए हजारों रुपये वसूल रहे हैं तथा वहां दवाएं और मुंह की पट्टी मनमाने कीमत पर बेची जा रही हैं.
विडंबना यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य के लिए निर्धारित धन खर्च तक नहीं हुआ है. स्वास्थ्य के लिए बजट में आवंटित राशि में कुछ माह पहले करीब 20 फीसदी की कमी भी कर दी गयी है. स्वाइन फ्लू से सर्वाधिक ग्रस्त राज्यों- गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हालात और खराब हैं. जिस देश की अधिकतर आबादी भयावह गरीबी में जीने के लिए विवश हो, वहां अगर महामारी की स्थिति में उनसे ऐसा बर्ताव होता है, तो यह न सिर्फ आपराधिक है, बल्कि हमारी शासन-व्यवस्था पर गंभीर सवालिया निशान है. विकास के तमाम दावों के बावजूद लोग ऐसे रोगों से मर रहे हैं, जिनका आसान इलाज संभव है.
हमारी सरकारें छोटी-छोटी बातों पर बड़े-बड़े बैनरों से शहर पाट देते हैं तथा अखबारों, टीवी और रेडियो पर विज्ञापनों का अंबार लगा देते हैं, किंतु स्वाइन फ्लू के कहर पर प्रेस-विज्ञप्ति और कुछ मिनटों के बयान देकर अपने कर्तव्य की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं. इस महामारी से हुई मौतें न सिर्फ व्यापक लापरवाही का प्रमाण हैं, बल्कि हमारी सरकारों की बेमानी प्राथमिकताओं का भी संकेतक हैं. अब तक बहुत देर हो चुकी है और इस मामले में कोताही इस संक्रमण को विस्तार ही देगी. इसलिए सरकार को इसकी युद्ध-स्तर पर रोकथाम की अविलंब जुगत करनी चाहिए.
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