।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)
– नीतीश कुमार को शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और सेवा क्षेत्र को बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. इसमें यदि वे सफल होते हैं तो प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी और पुख्ता होगी. –
नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. यह स्वागत योग्य है, क्योंकि बिहार की छवि बदलने में उन्होंने कामयाबी हासिल की है. लेकिन एक बीमार आदमी को कुछ राहत तो एक कच्चा डॉक्टर भी दिला देता है, डॉक्टर की असली परीक्षा यह होती है कि वह मरीज को स्थायी रूप से ठीक करने में सफल होता है या नहीं. इस दृष्टि से देखना चाहिए कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के दूरगामी विकास के लिए कैसी पहल की है.
आर्थिक विकास के चार मुख्य स्नेत हैं– कृषि, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र, बाजार आधारित सेवाएं और सरकारी सेवाएं. बिहार कृषि प्रधान राज्य है. राज्य की आय में कृषि का हिस्सा 35 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह हिस्सा मात्र 18 प्रतिशत है. राज्य में पानी पर्याप्त मात्र में उपलब्ध है. अनेक नदियां भूमिगत जल का पुनर्भरण करती है. लेकिन राज्य का सिंचाई तंत्र जर्जर है.
जानकार बताते हैं कि 1990 में राज्य में सिंचित भूमि 21 लाख हेक्टेयर थी, जो 2005 में घट कर मात्र 12 लाख हेक्टेयर रह गयी थी. नहरों की मरम्मत तक नहीं की गयी. नीतीश कुमार के कार्यकाल में इसमें मामूली सुधार हुआ है. अनुमान है कि वर्तमान में सूबे में सिंचित भूमि करीब 13 लाख हेक्टेयर है. कृषि आधारित विकास के लिए सिंचाई व्यवस्था को दुरस्त करना जरूरी है. दूसरी गंभीर समस्या कृषि क्षेत्र के सिकुड़ते दायरे की है. विकास की प्रक्रिया में कृषि का हिस्सा सभी देशों में सिकुड़ता जा रहा है. अमेरिका में आज यह मात्र एक प्रतिशत है. माना जा रहा है कि सिर्फ कृषि के बूते विकास हासिल करना डूबती नैया के सहारे नदी पार करने जैसा है.
आर्थिक विकास का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है मैन्यूफैक्चरिंग. बिहार में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए कच्चा माल नहीं है. यहां चीनी और चमड़े के उद्योग ही चल रहे हैं. खनिज झारखंड में चले गये हैं. उद्योगों के लिए दूसरी जरूरत बिजली की है. बिहार के पास बिजली उत्पादन के लिए कोयला नहीं है.
राज्य की कुल बिजली उत्पादन क्षमता करीब 1900 मेगावाट ही है, जो गुजरात की 23,100 मेगावाट क्षमता के सामने बौनी है. जानकार बताते हैं कि इस 1900 मेगावाट में भी करीब 1300 मेगावाट के प्लांट बंद पड़े हैं. चालू उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जाये तो भी उद्योगों को बिजली देना कठिन होगा, क्योंकि राज्य की करीब 82 फीसदी जनता को काम लायक बिजली नहीं मिल रही है. इसलिए पहले जनता की मांग पूरी करनी होगी. तीसरी समस्या उद्योगों के लायक वातावरण की है.
गुजरात आदि राज्यों में उद्योगों को प्रोत्साहन देने की परंपरा रही है. वहां स्किल्ड श्रमिक, स्पेयर पार्ट्स, बेहतर यातायात सुविधाएं आदि उपलब्ध हैं. ऐसे में बिहार में उद्योग लगाना रेगिस्तान में अंगूर उगाने जैसा होगा. चौथी समस्या भूमि की उपलब्धता की है. बिहार जैसे घने बसे राज्य में उद्योगों के लिए भूमि का अधिग्रहण करना सिंगूर जैसे उत्पात को न्योता देना हो सकता है. ऐसे में विशेष दरजे के तहत टैक्स छूट मिल भी जाये तो औद्योगिकीकरण कितना हो पायेगा, कहना मुश्किल है.
आर्थिक विकास का तीसरा अहम क्षेत्र है बाजार–आधारित सेवाएं, जैसे– सॉफ्टवेयर, मेडिकल टूरिज्म, पर्यटन इत्यादि. मेरा आकलन है कि बिहार के लिए इस क्षेत्र का विकास सबसे सुगम होगा. देश में प्रतिभावान बिहारियों की बड़ी फौज उपलब्ध है, जिन्हें राज्य में वापस बुलाया जा सकता है. सेवा क्षेत्र के विकास के लिए राज्य के प्रमुख शहरों के पास विशेष क्षेत्र बनाये जा सकते हैं.
पूरे राज्य के बुनियादी ढांचे को सुधारने में समय लगेगा, लेकिन चुनिंदा शहरों में इसे शीध्र किया जा सकता है. सेवा क्षेत्र के लिए प्रमुख जरूरत सक्षम श्रमिकों की है जो बिहार में उपलब्ध है. इस दिशा में सरकारी शिक्षा के विस्तार के स्थान पर मेधावी छात्रों को वाउचर देना चाहिए. वर्तमान में सरकार प्रत्येक छात्र पर औसतम करीब 400 रुपये प्रतिमाह खर्च कर रही है, परंतु सरकारी स्कूलों की पढ़ाई घटिया है. इसलिए इस रकम को छात्रों को वाउचर के माध्यम से दे देना चाहिए, ताकि वे अपने पसंदीदा स्कूल से शिक्षा खरीद सकें.
देखा गया है कि आर्थिक विकास के क्रम में पहले चरण में देश की आय में कृषि का योगदान घटता है. अपने देश में 1951 में कृषि का योगदान 53 प्रतिशत था, जो आज 20 फीसदी से कम रह गया है. कारण यह है कि कृषि में आय की संभावना सीमित होती है. एक खेत में एक ट्रैक्टर और एक ट्यूबवेल में निवेश करने के बाद और निवेश करना संभव नहीं होता है. फलस्वरूप किसान की आय भी सीमित होती है.
इसकी तुलना में सॉफ्टवेयर कंपनी एक एकड़ भूमि पर करोड़ों रुपये का निवेश कर सकती है. कोई योजनाबद्ध तरीके से जितनी अधिक पूंजी का निवेश करता है, उतनी ही उसकी आय अधिक होती है. जैसे कोई किसान फावड़े से खेत बनाता है तो वह थोड़ी भूमि पर ही खेती कर पाता है. उसकी आय कम होती है. दूसरा किसान यदि ट्रैक्टर से खेती करता है तो वह ज्यादा भूमि जोत पाता है और उसकी आय अधिक होती है. लेकिन कृषि में ट्रैक्टर के उपयोग के बाद और पूंजी का उपयोग कठिन होता है. इसलिए देश की आय में कृषि का हिस्सा घटता जाता है.
मैन्यूफैक्चरिंग में भी आय की संभावना ज्यादा होती है. फैक्टरी में उद्यमी करोड़ों की मशीन चला सकता है. इससे आय बढ़ती है, पर इसकी भी एक सीमा है. मैन्यूफैक्चरिंग का पलायन गरीब देशों की ओर होता है. जैसे गार्मेट्स की मैन्यूफैक्चरिंग भारत के स्थान पर बांग्लादेश में हो रही है. इससे इस क्षेत्र में श्रमिकों की आय में वृद्धि की संभावना कम होती है.
तुलनात्मक रूप से सेवा क्षेत्र में अपार संभावनाएं होती हैं. आय बढ़ने के साथ–साथ ग्राहक सेवाओं की खपत अधिक करता है. सेवाओं में वेतन श्रमिक के हुनर पर निर्भर करता है. जैसे अच्छे अनुवादकों को ऊंचा वेतन मिलता है. अत: नीतीश कुमार को सेवा क्षेत्र के विकास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
इस समय नीतीश कुमार का अधिक ध्यान राज्य को विशेष दरजा दिलाने पर है. अभी कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम और सात पूर्वोत्तर राज्यों को विशेष दरजा प्राप्त है. इन राज्यों में लगनेवाले उद्योगों को आयकर एवं एक्साइज ड्यूटी में भारी छूट मिलती है. विशेष दरजा मिलने से मुख्यत: मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा. इसमें बाधा दूसरे समतुल्य राज्यों की भी है. अब तक जिन राज्यों को विशेष दरजा मिला है, वे खास भौगोलिक परिस्थितियों से पीड़ित थे. इसमें बाढ़ के आधार पर बिहार का दावा बनता है, पर यूपी, बंगाल और उड़ीसा की स्थिति भी कमोबेस ऐसी ही है.
अत: नीतीश कुमार को विशेष दरजे के लिए जोर लगाने से ज्यादा शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और सेवा क्षेत्र को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए. बेशक इसमें उन्हें ज्यादा बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि इस प्रयास वे सफल होते हैं तो प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी निश्चित रूप से और पुख्ता होगी.