* सांसद निधि खर्च में सुस्ती
पिछले कुछ वर्षों से देश और ज्यादातर राज्यों के राजनीतिक नेतृत्व का दावा रहा है कि विकास उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है. लेकिन विकास का यह एजेंडा हमारे देश के सांसदों के लिए कितनी अहमियत रखता है, इसका अंदाजा सांसद विकास निधि को खर्च करने को लेकर हमारे माननीयों की उदासीनता से लगाया जा सकता है.
एक खबर के मुताबिक हमारे कई सांसद पांच करोड़ रुपये की सालाना राशि का पूरा इस्तेमाल कर पाने में भी नाकाम रहे हैं. आलम यह है कि सांसद विकास निधि से करीब 4,400 करोड़ रुपये किसी विकास कार्य में इस्तेमाल में होने की बाट जोह रहे हैं. यह कहना ज्यादा मुफीद होगा कि विभिन्न सांसदों के क्षेत्रों में छोटे-मोटे सैकड़ों विकास कार्य अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
हर सांसद या विधायक के क्षेत्र में ऐसे कई छोटे-मोटे काम होते हैं, जिन्हें इस निधि से कराया जाता है. मसलन, स्थानीय सड़कों, पुलिया, साफ-सफाई, सौंदर्यीकरण, स्कूल, पार्क, सार्वजनिक स्थलों का निर्माण आदि. ऐसे छोटे-छोटे विकास कार्यो से उस क्षेत्र के लोगों का जीवन बेहतर होता है. अपने धन का इस्तेमाल करने में पीछे रहनेवालों में उत्तर भारत के आठ राज्यों के सांसद अव्वल हैं.
सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही सांसद निधि का 405 करोड़ रुपया इस्तेमाल में नहीं लाया जा सका है. यहां चिंता की एक बड़ी बात यह है कि कई वरिष्ठ और नामचीन सांसद भी सांसद निधि खर्च नहीं कर पाने के मामले में आगे हैं. यह उदासीनता इसलिए हैरान करती है, क्योंकि भारत में विकास कार्यों के न होने के लिए अकसर धन और संसाधनों की कमी का रोना रोया जाता है.
पिछली लोकसभा में सांसदों ने इस विकास निधि की राशि काफी कम होने की शिकायत करते हुए जबरदस्त हंगामा किया था, जिसके बाद इसे दो करोड़ से बढ़ा कर पांच करोड़ रुपये करने का फैसला लिया गया था. सांसद विकास निधि 1993 में अपनी शुरुआत से ही विवादों के घेरे में रही है. इस निधि के दुरुपयोग, समय से परियोजनाओं का पूरा न होना और भ्रष्टाचार की शिकायतें आम हैं.
कुल मिला कर सांसद निधि कई विसंगतियों का शिकार रही है, जिनमें निधि का समुचित इस्तेमाल न कर पाना भी एक है. जाहिर है, इस निधि का इस्तेमाल नहीं हो पाने या इसमें भ्रष्टाचार और अनियमितता होने पर इस निधि का मकसद पूरा नहीं हो पाता है. इसलिए यह वक्त है, जब इस निधि का उपयोग करने के तौर-तरीकों पर पुनर्विचार किया जाये. कोई कारगर व्यवस्था की जाये ताकि सांसदों के क्षेत्र की जनता के हित में और उनकी मांगों के अनुसार इसका सही इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सके.