अब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि देश की अर्थनीति में स्थिरता लाने, निवेश बढ़ाने और विकास को गति देने के लिए सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना जरूरी है. वे रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान के नेतृत्व में बने व्यय प्रबंधन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात भी कह रहे हैं.
ये सिफारिशें नीतिगत सुधार की जगह विकास दर बढ़ाने को प्राथमिक मान कर सरकारी व्यय के प्रबंधन के उद्देश्य से प्रेरित हैं. हाल में जालान ने फिर कहा है कि ‘जो लोग सामान और सेवाओं को खरीद पाने की स्थिति में हैं, उन्हें किसी भी सूरत में सब्सिडी नहीं दी जानी चाहिए.’ विकास दर बढ़ाने से जुड़ी सोच यह मान कर चलती है कि आहार, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि की योजनाओं का दायरा सीमित रखना चाहिए.
इस सरकारी सोच के विरोधी ध्यान दिलाते रहे हैं कि गरीबी-रेखा की गणना विवादित होने के कारण कल्याणकारी योजनाओं को सबके लिए उपलब्ध न कराना जरूरतमंदों के अधिकारों का हनन है. वित्त मंत्री के बयान से यह बात तय है कि केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही जन-कल्याणकारी योजनाओं का स्वरूप बुनियादी तौर पर बदलेगा, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि किसान, गृहिणी, बच्चे और वृद्ध की अधिकारिता पर असर डालनेवाली कटौती के बाद इन तबकों के सशक्तीकरण के लिए क्या किया जायेगा. खबरें यह भी हैं कि यूरिया पर से सरकारी नियंत्रण हटाते हुए उसकी कीमत का निर्धारण बाजार पर छोड़ दिया जायेगा. अगर ऐसा होता है, तो पहले से ही परेशान किसानों पर बोझ बढ़ जायेगा. सरकार कृषि-उत्पादों का लाभकारी मूल्य देने का वादा अभी पूरा नहीं कर सकी है. किसानों को आधी-अधूरी कीमत भी किस्तों में और देरी से मिलती है. ऐसे में नजरें इस बात पर रहेंगी कि सरकार बाजार आधारित उदार अर्थव्यवस्था का लाभ गरीबों, वंचितों और किसानों तक पहुंचाने के लिए बजट में किस तरह के प्रयास करेगी.