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शर्माजी! कुछ लोगों की अनदेखी भी करें

रजनीश आनंद प्रभात खबर.कॉम अपने परममित्र शर्माजी को अकस्मात अपने कार्यालय में देख मैं चौंक गयी. मैंने पूछा, ‘‘यहां कैसे?’’ उन्होंने जवाब दिया, ‘‘अरे कैसे मत पूछिए, आपका परममित्र पधारा है, स्वागत कीजिए.’’ मैंने उनसे कैंटीन चलने को कहा. वह बोले, ‘‘कैंटीन छोड़िए, आपको घर के लिए देर हो जायेगी. मेरे साथ थोड़ा पैदल चलिए. […]

रजनीश आनंद
प्रभात खबर.कॉम
अपने परममित्र शर्माजी को अकस्मात अपने कार्यालय में देख मैं चौंक गयी. मैंने पूछा, ‘‘यहां कैसे?’’ उन्होंने जवाब दिया, ‘‘अरे कैसे मत पूछिए, आपका परममित्र पधारा है, स्वागत कीजिए.’’
मैंने उनसे कैंटीन चलने को कहा. वह बोले, ‘‘कैंटीन छोड़िए, आपको घर के लिए देर हो जायेगी. मेरे साथ थोड़ा पैदल चलिए. रास्ता भी तय हो जायेगा और आपकी कुछ सेहत भी बन जायेगी.’’ रास्ते में मैंने बातचीत का आदर्श अंतरराष्ट्रीय विषय छेड़ा, मौसम. मैंने कहा, ‘‘बड़ी जानलेवा ठंड पड़ रही है.’’
शर्माजी तपाक से बोले, ‘‘अब ठंड कहां जानेलवा रही? उसके कई प्रतिद्वंद्वी पैदा हो चुके हैं, जो आदमी की जान लेने के साथ उसका चैन भी छीन रहे हैं.’’ ये बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी, पर मैं इतना जरूर समझ गयी कि वह किसी बात पर खिसियाये हुए हैं, सो मैंने उन्हें कुरेदा, ‘‘किनकी बात कर रहे हैं आप?’’
शर्माजी, बोले, ‘‘कमाल है मोहतरमा! आप हैं पत्रकार, मगर आपको कुछ खबर नहीं.. अच्छा आप ये बताइए कि आपके कितने बच्चे हैं?’’ मैंने कहा, ‘‘एक.’’ शर्माजी ने कहा, ‘‘क्यों? दो क्यों नहीं है? अरे दो छोड़िए, चार क्यों नहीं है?’’ अब तो मुङो पक्का यकीन हो गया कि शर्माजी सठिया गये हैं.
मैं बोली, ‘‘इस महंगाई में एक बच्च पालना मुश्किल है, चार की कौन हिम्मत करेगा? और फिर यह मेरा निजी मामला है कि मैं कितने बच्चे पैदा करूं.’’ इस पर शर्माजी तेवर में आ गये, ‘‘काहे का निजी! इस देश में हर चीज सार्वजनिक है और हर किसी को यह हक है कि वह उसमें दखल दे.
मसलन आप शादी करेंगी, तो किससे करेंगी. बच्चे पैदा करेंगी, तो कितने करेंगी वगैरह..वगैरह.’’ अब मुङो शर्माजी की खिसियाहट का राज समझ में आया. मैं गंभीर हो गयी, ‘‘इस तरह की जो राजनीति चल रही है वह खतरनाक है. लेकिन इस मीडिया-युग में तिल का ताड़ भी खूब बन रहा है. किसी छोटी सी घटना को इतना घिसा जाता है कि चिनगारी फूटने लगे.’’ शर्माजी ने सहमति जताते हुए कहा, ‘‘ये तथाकथित नेता हमारी स्वतंत्रता छीनने पर आमादा हैं. भाई, मैं जन्म से हिंदू हूं, तो क्या चर्च नहीं जा सकता? या फिर किसी मजार पर सजदा नहीं कर सकता?’’
शर्माजी का मिजाज कुछ ज्यादा ही तल्ख हो गया था. उसे ठीक करने के लिए मैंने मजाक किया, ‘‘आप क्यों चिंता में घुल रहे हैं? इस उम्र में आपसे बच्चे पैदा करने के लिए कोई नहीं कहेगा?’’ शर्माजी ने कहा, ‘‘इतना गंभीर मामला है और आपको मसखरी सूझ रही है.’’
मैंने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘आप बेवजह टेंशन ले रहे हैं. हर बात पर रिएक्ट करने के साथ अनेदखी करना.. इग्नोर करना भी सीखिए. दुनिया में भांति-भांति के लोग हैं, कहां तक भड़किएगा? कुछ लोग अनदेखी करने से ही ठीक रहते हैं.’’

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