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‘नीति’ भारत के कायापलट की

राजीव चौबे प्रभात खबर, रांची लीजिए, अब योजना आयोग का भी ‘मोडीफिकेशन’ हो गया. वैसे यह संकेत तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले के भाषण में ही दे दिया था. 15 मार्च 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के जरिये बने योजना आयोग को मोदी सरकार ने ‘नीति’ आयोग बना दिया […]

राजीव चौबे
प्रभात खबर, रांची
लीजिए, अब योजना आयोग का भी ‘मोडीफिकेशन’ हो गया. वैसे यह संकेत तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले के भाषण में ही दे दिया था. 15 मार्च 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के जरिये बने योजना आयोग को मोदी सरकार ने ‘नीति’ आयोग बना दिया है.
लेकिन यह ‘नीति’ अंगरेजी के ‘पॉलिसी’ का हिंदी रूपांतर नहीं, बल्कि अंगरेजी के ही ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिग इंडिया’ का संक्षिप्त रूप है. वैसे कुछ चीजें जिस भाषा में होती हैं, उसी भाषा में अच्छी लगती हैं. जैसे अंगरेजी का ‘कॉरपोरेटाइजेशन’ हिंदी में ‘कॉरपोरेटीकरण’ हो जाता है और हिंदी का ‘अघ्र्य’ अंगरेजी में ‘अर्घा’ हो जाता है, लेकिन अपनी बात को सरल-सामान्य भाषा में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए हम जैसे पत्रकारों को अक्सर यह काम भी करना पड़ता है. वैसे तो हमने बचपन से यही पढ़ा और जाना है कि किसी नाम का भाषांतरण नहीं किया जाता, चाहे उसका विकल्प उस भाषा में मौजूद हो या नहीं.
जैसे किसी लड़के का नाम अगर हिंदी में ‘पल्लव’ है तो उसे अंगरेजी में ‘ट्विग’ या ‘स्प्रिंग’ नहीं कह सकते. लेकिन जैसा कि ऊपर बताया गया है, हिंदी पत्रकारिता में यह सब चलता है, खासकर व्यवस्था से जुड़े काम-काज में. ऐसे में अगर ‘नीति’ आयोग के पूर्ण रूप ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिग इंडिया’ का हिंदी रूपांतरण की कोशिश की जाये, तो आनेवाले दिनों में कुछ हिंदी अखबारों में इसे ‘भारत के कायापलट का राष्ट्रीय संस्थान’ के रूप में भी पढ़ा जा सकता है. यानी, अच्छे दिन लाने के वादे के साथ देश के सबसे बड़े सेवक बन चुके नरेंद्रभाई मोदी, अपने वादे को निभाने में कितने कामयाब हो पाये हैं यह तो वे ही जानें, लेकिन अब वह देश की काया पलटने की तैयारी में हैं. अब यह काया ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से पलटेगी या ‘मेक इन इंडिया’ से या ‘घर वापसी’ से, यह तो समय बतायेगा. वैसे उनके सत्ता संभालने के बाद से एक चीज जो सबसे अच्छी हुई नजर आती है, वह है पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी. लेकिन इसका श्रेय उन्हें नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्थितियों को जाता है.
वैसे पेट्रोल-डीजल के दाम भी उतने कम नहीं हुए हैं जितने होने चाहिए थे. जून 2014 से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल से गिर कर 53 रुपये प्रति बैरल पर आ पहुंची है. लेकिन अपने देश में पेट्रोल की कीमत 73 रुपये से 61 रुपये तक ही पहुंची है, जबकि इसे कायदे से 35 रुपये लीटर के आस-पास हो जाना चाहिए था. लेकिन सरकार अपना खजाना भरने के लिए जनता को 35 का पेट्रोल 61 रुपये में बेच रही है. खैर, मोदी जी की यह ‘नीति’ कितनी कारगर होती है, इसका अंदाजा लगाने के लिए कई बुद्धिजीवी पहले से तैयार बैठे हैं, लेकिन जनता तो यही उम्मीद करती है कि उसे चैन की छांव में दो वक्त की रोटी मिलती रहे.

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