खास पत्र
।। नवनीत कु सिंह ।।
दिल्ली में डील करने के बाद हाथ में धनुष थामे, लालटेन की रोशनी में ‘समझौता एक्सप्रेस’ पर सवार शिबू सोरेन के लाल यानी झारखंड के भावी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन छह जुलाई को जिस रफ्तार से दिल्ली से चले थे, दरअसल वह रफ्तार रांची पहुंचते–पहुंचते धीमी पड़ गयी और एक–एक करके सवारियां उतरने की धमकी देने लगीं. फिर लॉलीपॉप नियम के तहत ऑटो–अपग्रेडेशन कर उन सवारियों को आगे जाकर स्लीपर से एसी कोच में जगह देने का वादा किया गया.
इसके बाद धीमी पड़ी रेलगाड़ी ने एक बार फिर गति पकड़ ली और आखिरकार 43 सवारियों के साथ दिल्ली से चली यह समझौता एक्सप्रेस नौ जुलाई दिन मंगलवार शाम साढ़े पांच बजे राजभवन पहुंच गयी. वहां सारी सवारियों ने राज्यपाल के समक्ष अगले 18 माह तक अपने मन के मुताबिक इस समझौता एक्सप्रेस को चलाने का प्रस्ताव रखा, जिस पर राज्यपाल ने भी हामी भर दी. पर दुख होता है इस राज्य के हालात को देख कर कि अपने शुरुआती दौर से ही हमेशा ‘समझौता एक्सप्रेस’ के ही सहारे यह अपने सफर को पूरा करने का दंभ भरता रहा है. पर अफसोस ऐसी सवारियों पर जो अपने गंतव्य स्थान से पहले ही उतर जाती हैं.
बैसाखी के सहारे सूबे में नयी सरकार चलाने को आतुर झामुमो के युवराज हेमंत सोरेन भले ही अपने सिर पर मुख्यमंत्री का सेहरा बांधने को लालायित हों, पर समझौता और शर्तो के बल पर चलनेवाली यह सरकार हेमंत सोरेन के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी. क्योंकि इस सरकार की बुनियाद ही स्वार्थ पर टिकी है, जहां राष्ट्रीय पार्टी से लेकर निर्दलीय विधायक अपनी मंशा पूरी करने के लिए झामुमो को समर्थन दे सरकार में जय–जयकारा लगा रहे हैं.