रुसवा साहब गुलाबी सर्दी में नयी शेरवानी झाड़ पप्पू पनवाड़ी की दुकान पर पहुंचे, तो सबकी आंखों में सवाल तैरने लगे. असली अखबारनवीस वो है जो जनता के सवाल हाकिम के कानों तक पहुंचाये (वैसे ‘असली’ शब्द अब सिर्फ घी के साथ अच्छा लगता है). लेकिन आजकल हो ये रहा है कि वो हाकिम का भाषण जनता तक पहुंचा रहे हैं.
अब सही जगह सवाल पहुंचाने की औकात रही नहीं, तो रुसवा साहब पर ही सवाल दाग मैंने अपना पत्रकार-धर्म पूरा किया, ‘‘तीन महीने से बगैर आलू के सब्जी खा रहे हैं, कहते हैं कि 30 रुपये किलो है कहां से खायें, और नयी शेरवानी खरीद ली. कहां से पैसा आया भाई?’’ यकायक रुसवा साहब के भीतर आजम खान की रूह घुस आयी. उन्होंने जवाब दिया, ‘‘तालिबान ने पैसा भिजवाया है, दाऊद मेरा मौसेरा भाई है उसने पैसा भिजवाया है..’’ मुन्ना बजरंगी भड़क उठे, ‘‘हिंदुस्तान है न, हियां सबको आजादी है, बोल लीजिए, जो मन कहे बोल लीजिए.. लेकिन अब आप लोग वाला सरकार नहीं है, समय बदल गया है, जरा देख-संभल कर बोला कीजिए.. पप्पू! चचा को पान खिलाओ, जबान काबू में रहेगी.’’ जैसे बड़े लोग घर के फाटक पर ‘कुत्ते से सावधान’ की तख्ती टांगे रखते हैं, वैसे ही मैंने मन में ‘भक्तों से सावधान’ की तख्ती टांगी हुई है.
इसीलिए बात का बतंगड़ बनते देख, मैं मुन्ना से न लगते हुए रुसवा साहब से मुखातिब हुआ. चेहरे पर खिसियायी हंसी चिपका, मैंने कहा, ‘‘आप तो बुरा मान गये.’’ रुसवा साहब बोले, ‘‘बुरा मानने की बात ही है! बेगम साहिबा चार साल से घर के खर्च में कतर-ब्योंत कर रही हैं, तब जाकर नयी शेरवानी सिल पायी है और आप..’’ वह अभी खरी-खरी और सुनाते, लेकिन भला हो केलेवाले का, जो बगल से गुजरा और रुसवा साहब ने भाव-ताव करना शुरू कर दिया. भाव कुछ ज्यादा लगा, तो उन्होंने उससे कहा, ‘‘ई आस्ट्रेलिया की टेक्नॉलजी वाला केला है का, जिसके बारे में नरेंदर मोदी बता रहे थे कि इसमें लोहा ज्यादा रहेगा और इसे खानेवाली औरतों को बाल-बच्च मजबूत पैदा होगा?’’ केलेवाले को लगा कि यह कोई खिसका हुआ आदमी है, इसलिए वह वहां से खिसक लिया (लगता है, बेचारे से मोदीजी का डाल्टनगंज वाला भाषण छूट गया).
लेकिन मुन्ना बजरंगी ने इस बातचीत में कुछ और ही सूंघ लिया. पारसी थियेटर वाली शैली में भुनभुनाये, ‘‘लगता है चच्चा का आबादी बढ़ाने का प्रोग्राम है. मियां लोग मानेंगे नहीं.’’ इसे रुसवा साहब को छोड़ सबने सुना. तभी हिंदू रक्षा दल के नेता रहे वैद्यजी पोते-पोती के साथ दिखायी पड़े. मैंने पूछा, ‘‘कहां?’’ जवाब मिला, ‘‘बच्चों को मंदिर ले जा रहे हैं. इम्तिहान के लिए आशीर्वाद दिलाने.’’ नेहरू के वैज्ञानिक मिजाज के मंत्र की पुंगी बजते देख दुख हुआ, लेकिन जब शिक्षा मंत्री खुद हाथ दिखा कर भविष्य विचरवा रही हैं, तो दूसरों को क्या कहें.
सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
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