‘मेरे पिया गये रंगून
किया है वहां से टेलीफून
तुम्हारी याद सताती है
जिया में आग लगाती है.’
म्यांमार के यांगोन हवाई अड्डे पर जब सोमवार की सुबह आठ बजे के करीब थाई एयरवेज का विमान उतरा, तो मेरे जहन में तुरंत शमशाद बेगम के गाये हुए इस गीत की शुरु आती पंक्तियां गूंज गयी. अब ना तो शमशाद बेगम इस दुनिया में हैं और न ही रंगून म्यांमार की राजधानी के तौर पर अपना आधिकारिक अस्तित्व बचा पाया है. हालांकि 1949 में जब राजिंदर कृष्ण के लिखे हुए इस गीत को शमशाद बेगम ने पतंगा फिल्म के लिए गाया था, तो उस वक्त म्यांमार बर्मा के तौर पर जाना जाता था और यांगोन रंगून के तौर पर.
वैसे तो यांगोन भी म्यांमार की राजधानी का गौरव अपने पास नहीं रख पाया है. म्यांमार के सैन्य शासन ने वर्ष 2005 में सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए यांगोन की जगह नेपीटो को राजधानी के तौर पर विकसित किया. तब से नेपीटो दुनिया के नक्शे में तेजी से अपना मुकाम बनाता जा रहा है. नेपीटो अंगरेजी में नेपीटा के तौर पर लिखा जाता है, लेकिन म्यांमार के लोग जहां इसे नेपीडो कहते हैं, वही बाकी दुनिया इसे नेपीटो के तौर पर पुकारती है.
नेपीटो यांगोन से करीब साढ़े तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर है, जिसमें शुरू के तीस किलोमीटर को छोड़ कर आप बाकी रास्ता उस एक्सप्रेस-वे से तय करते हैं, जो आठ लेन का है. यूं तो म्यांमार की छवि आर्थिक तौर पर गरीब देश की है, लेकिन यहां की सरकार ने मुख्य मार्गों को काफी अच्छी हालत में रखा है. इसी मुहिम के तहत म्यांमार के दो सबसे बड़े शहरों यांगोन और मांडले के बीच एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया गया, जिसके मध्य में है नेपीटो और अब ये म्यांमार का तीसरा सबसे बड़ा शहर बन चुका है.
नेपीटो में आने पर किसी को भी सुखद आश्चर्य हो सकता है. म्यांमार की तुलनात्मक तौर पर कमजोर आर्थिक सेहत के बिल्कुल उलट नेपीटो शानदार ढंग से बसा हुआ है. चौड़ी सड़कें, खूबसूरत सरकारी इमारतें, लंबे-चौड़े चौराहे और गोल चक्कर, चारों तरफ हरियाली, ये नेपीटो की पहचान है. दुनिया के सबसे साफ शहरों में से एक नेपीटो अलग-अलग जोन में बंटा हुआ है. मसलन एक जोन में तमाम सरकारी मंत्रलय और विभाग हैं, तो एक पूरा जोन होटलों के लिए आरक्षित है. सड़कों पर भीड़-भाड़ कम ही नजर आती है. सड़कों पर जो गाड़ियां चलती भी हैं, उनमें से ज्यादातर जापानी.
आसियान और पूर्वी एशिया सम्मेलन के मद्देनजर नेपीटो को जम कर सजाया गया है. जहां भी निगाहें जाती हैं, वहां आसियान के लिए आनेवाले प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए लंबी-लंबी होर्डिंग लगाये गये हैं. तमाम चौराहों और गोल चक्करों पर अठारह देशों के झंडे लगे नजर आते हैं, जो आसियान के अंदर आनेवाले दस देशों और पूर्वी एशिया सम्मेलन में आसियान देशों के अलावा हिस्सा लेनेवाले आठ और देशों के हैं, जिनमें भारत के अलावा चीन, रूस, जापान, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दक्षिण कोरिया हैं. जहां तक आसियान का सवाल है, इसके अंदर आनेवाले देश हैं – ब्रुनेई, शेष पेज..पर
लोकतंत्र का मंदिर..
कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलयेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम.
आसियान और पूर्वी एशिया सम्मेलन के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मंगलवार दोपहर नेपीटो पहुंच गये. आते ही मोदी ने म्यांमार के राष्ट्रपति यू थीन सीन से मुलाकात की. अगले दो दिनों में वो आसियान-भारत सम्मेलन में हिस्सा लेने के अलावा पूर्वी एशिया सम्मेलन में भी भाग लेंगे. इन्हीं दो दिनों में मोदी की मुलाकात मलयेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, चीन, और रूस के प्रधानमंत्रियों के अलावा दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से भी होगी. मोदी की कोशिश होगी आसियान देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव के सामने भारत की भूमिका मजबूत करने की. आखिर सत्ता संभालते ही मोदी ने ‘लुक ईस्ट पालिसी’ पर जोर दिया, ये कहते हुए कि इक्कीसवीं सदी एशिया की शताब्दी है और इसमें पूर्वी एशिया के देशों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
दरअसल दस पूर्वी एशियाई देशों का समूह आसियान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जनसंख्या समूह है, साथ में सबसे तेजी से आर्थिक विकास करता तीसरा समूह भी. वैसे भी मौजूदा हालात में आसियान दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी आर्थिक इकाई है. जाहिर है, भारत के अपने हितों के हिसाब से भी आसियान देशों के साथ आर्थिक-कूटनीतिक संबंध मजबूत करना महत्वपूर्ण है.
इसके अलावा भारत की प्राथमिकता का एक हिस्सा और भी है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दर्जा रखने वाले भारत के लिए अपने पड़ोसी देश म्यांमार में पूर्ण लोकतंत्र स्थापित करना हितकारी है. इसी सिलसिले में वो बुधवार की शाम आंग सांग सूची से भी मिल रहे हैं, जो म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए तीन दशक से भी अधिक समय से संघर्ष कर रही हैं. मोदी के अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का भी सूची से मिलने का कार्यक्र म है. आसियान के मौके पर जुटने वाले कई बड़े लोकतांत्रिक देशों के प्रतिनिधि म्यांमार में लोकतंत्र को पूरी तरह से लागू करने के लिए मौजूदा शासन पर दबाव भी बनायेंगे. ये दबाव इस मायने में महत्वपूर्ण होगा कि तय कार्यक्र म के मुताबिक अगले साल नवंबर में म्यांमार में चुनाव होनेवाले हैं. अगर म्यांमार का मौजूदा शासन लोकतांत्रिक सुधारों की राह में तेजी से आगे बढ़ता है, तो नेपीटो में बने संसद भवन की गरिमा और बढ़ जायेगी, जो फिलहाल अपनी खूबसूरती की वजह से लोगों का मन मोहती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)