।। संजय कुमार ।।
(चुनाव विश्लेषक)
– यूपीए सरकार भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है. लेकिन यह कर्नाटक के लोगों के सोच पर ज्यादा हावी नहीं है. उन्होंने राज्य की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार को ज्यादा महसूस किया है. –
कर्नाटक विधानसभा के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए रविवार को वोट डाले जायेंगे. लेकिन, अभी से ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस एक आसान जीत की ओर बढ़ रही है और वह सत्ता में वापसी करेगी. इसकी वजह यह नहीं है कि राज्य में कांग्रेस अचानक मतदाताओं की पसंदीदा पार्टी बन गयी है. ऐसा भी नहीं है कि मतदाता कांग्रेस में एक भरोसे को देख रहे हैं, या फिर उन्हें ऐसी उम्मीद है कि कांग्रेस राज्य में एक नया बदलाव लायेगी.
दरअसल, कांग्रेस की ओर बहती इस हवा की वजह है सत्तारूढ़ भाजपा से लोगों की नाराजगी. हालांकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में कोई बहुत बढ़ोतरी नहीं होगी. ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि वह पिछले चुनाव में हासिल वोटों में एक-दो फीसदी का इजाफा कर ले. लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि कांग्रेस, बीजेपी और जनता दल(एस) के बीच त्रिकोणीय संघर्ष में भूतपूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की कर्नाटक जनतापक्ष पार्टी (केजेपी) भी चौथे कोण की तरह शामिल हो चुकी है. ऐसे में पिछले विधानसभा चुनाव में 80 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस के वोट शेयर में हल्की सी बढ़ोतरी भी उसकी सीटों में भारी इजाफा कर सकती है.
इसके उलट बीजेपी के वोट शेयर में आने वाली संभावित गिरावट के चलते उसे भारी संख्या में सीटें गवानी पड़ सकती हैं. यहीं शिमोगा, हावेरी, दावनगेरे, बीजापुर, गुलबर्ग, कोपपाल, चित्रदुर्गा और चमराजनगर जिलों में येदियुरप्पा की केजेपी की मौजूदगी बीजेपी की चिंताओं को और गहरा सकती है.
बेशक केजेपी कुछ ही सीटें जीत सकती है, लेकिन वह इन जिलों में बीजेपी को कई सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है. जनता दल (एस) के वोट शेयर में भी बहुत सुधार होने की संभावना नहीं दिखती. ऐसे में पिछले चुनाव की तुलना में उसकी सीटों में भी कोई बहुत बदलाव होने की उम्मीद कम ही है.
बेशक कांग्रेस के पास भी वोटरों को लुभाने के लिए कुछ खास नहीं है, लेकिन लोगों में सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति भारी नाराजगी दिख रही है. दिलचस्प है कि सर्वेक्षण में राज्य सरकार के कामकाज को लोगों ने औसत ठहराया है. सड़क, सार्वजनिक परिवहन और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर उन्हें कोई नकारात्मक रेटिंग नहीं दी. लेकिन राज्य में भारी भ्रष्टाचार के लिए वह भाजपा को माफ नहीं करना चाहते.
केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए सरकार भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है. लेकिन यह मुद्दा कर्नाटक के लोगों की सोच पर ज्यादा हावी होता नहीं दिख रहा. शायद उन्होंने राज्य की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार को ज्यादा शिद्दत और करीब से महसूस किया है. भाजपा सबसे ज्यादा भ्रष्ट, गुटों में बंटी हुई और परिवारवाद से ग्रस्त दिख रही है. ये कुछ ऐसे लक्षण हैं, जो सामान्यत: कांग्रेस पार्टी से ज्यादा जुड़े हैं. ये सब मुद्दे ठीक चुनाव के दिन कितने हावी रहेंगे, यह पूरे दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि बाकी राज्यों की तरह कर्नाटक में भी मतदाता आखिरी क्षणों में जातिगत आधार पर वोट डालता रहा है.
वोकालिंगा जनता दल(एस)के पक्ष में, तो लिंगायत कांग्रेस और केजेपी के हक में खड़े कहे जाते हैं. लेकिन एक बात तय है कि बीते पांच सालों में राज्य में भाजपा के लचर शासन के चलते मतदाताओं के जेहन में पार्टी की एक नकारात्मक छवि बन गयी है. मतदान के दिन निश्चित तौर पर इसका असर दिखना चाहिए.
विकासशील समाज अध्ययन पीठ यानी सीएसडीएस के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में यह साफतौर पर उभर कर आया है कि वोट देते वक्त भ्रष्टाचार का मुद्दा मतदाताओं के जेहन पर सबसे ज्यादा हावी रहेगा. चुनाव से तीन हफ्ते पूर्व किये गये इस सर्वेक्षण में ज्यादातर मतदाता खुलकर यह बताने में तो असमर्थ रहे कि किस एक मुद्दे पर वो अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन जितने भी लोगों ने अपनी राय जाहिर की, उनमें से अधिकतर का मानना था कि राज्य में भ्रष्टाचार का मुद्दा वोट डालते हुए जरूर असर करेगा.
बीते पांच सालों में भाजपा का कामकाज कितना लचर रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोगों ने 1999 से 2006 के दरमियान सत्ता में रही कांग्रेस सरकार को सर्वश्रेष्ठ बताया. जबकि सच यह है कि वह हर बिंदू पर एक बेहद औसत सरकार थी.
इस सर्वेक्षण में एक दिलचस्प पहलू यह भी उभर कर आया कि किसी भी पार्टी के बड़े नेताओं को लेकर मतदाताओं में कोई उत्साह नहीं था. वे चाहे एचडी कुमारस्वामी हों, बीएस येदियुरप्पा या फिर सीतारमैया या एसएम कृष्णा, जगदीश शेट्टार, सदानंद गौड़ा, धर्मसिंह या मल्लिकार्जुन खर्गे. इनमें से किसी को मतदाताओं का भरोसा हासिल नहीं है.
यह सही है कि वोकालिंगा समुदाय में एचडी कुमारस्वामी जैसी लोकप्रियता किसी कांग्रेसी नेता के पास नहीं है. ठीक इसी तरह लिंगायत के बीच येदियुरप्पा सबसे लोकप्रिय हैं. लेकिन यही पहलू कांग्रेस के हक में जा सकता है, क्योंकि जाति के आधार पर बंटते वोट उसे फायदा पहुंचा सकते हैं. सर्वेक्षण में यह संकेत भी उभरे हैं कि मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा न करना कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है.
इसके चलते पार्टी चुनाव से पहले तथा चुनाव के दौरान अंदरूनी खींचतान और गुटबाजी से खुद को दूर रख सकती है. कोई भी पार्टी कितनी भी मजबूत हो लेकिन गुटबाजी और अंदरूनी उठापटक उसके नतीजों को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एसएम कृष्णा अपनी पार्टी से नाराज थे, लेकिन पार्टी के खिलाफ उनका गुस्सा अब कुछ ठंडा पड़ गया है.
पार्टी भी इस समस्या पर बहुत हद तक काबू पाती दिख रही है. सर्वेक्षण में जनता ने जनता दल(एस) के नेता एचडी कुमारस्वामी को राज्य के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी पहली पसंद बताया है. लेकिन जनता दल (एस) की मौजूदगी बहुत हद तक दक्षिण कर्नाटक में सिमटी है. साथ ही कुमारस्वामी अपनी निजी छवि के चलते पार्टी की सीटों में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं कर सकते.
कांग्रेस बहुमत हासिल करेगी या नहीं, इसे लेकर अभी बहुत अगर-मगर की स्थिति है. अटकलबाजियां जारी हैं. लेकिन एक बात तय है कि कांग्रेस इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरेगी. भाजपा और जनता दल (एस) दूसरे और तीसरे स्थान के लिए संघर्ष करेंगी.
अगर त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आती है, तो कांग्रेस और जनता दल (एस) के गंठबंधन की उम्मीद की जा सकती है. एक बात साफ है कि मतदाता अपने वोट के सहारे भाजपा की भ्रष्ट सरकार को बेदखल कर सकते हैं, लेकिन इसके बाद जो पार्टी सत्ता में आयेगी, उसकी छवि भी बहुत ईमानदार नहीं कही जा सकती.