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आपकी राय : अभी भी जिंदा हैं उम्मीदें
10-11 अक्तूबर, 2014 को प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश के लेख ‘चीन प्रेरणा भी! भय भी!’ पर आप पाठकों की ढेरों प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनमें से कुछ को हम प्रकाशित कर रहे हैं. कोई भारत के पीछे छूटने के लिए भ्रष्टाचार को जिम्मेदार मानता है, तो कोई द्वेषपूर्ण सामाजिक संरचना को. इनके अलावा कुछ पाठकों का […]
10-11 अक्तूबर, 2014 को प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश के लेख ‘चीन प्रेरणा भी! भय भी!’ पर आप पाठकों की ढेरों प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनमें से कुछ को हम प्रकाशित कर रहे हैं. कोई भारत के पीछे छूटने के लिए भ्रष्टाचार को जिम्मेदार मानता है, तो कोई द्वेषपूर्ण सामाजिक संरचना को. इनके अलावा कुछ पाठकों का मानना है कि हमारा भारत भी कुछ कम नहीं और उम्मीदें अभी जिंदा हैं.
नासूरों संग जीने की आदत
हरिवंश जी का यह लेख हमें यह दिखाता है कि वह भारत से कितना आगे है. चीन के परिप्रेक्ष्य में हमें आईना दिखाया जाना बहुत जरूरी है. हमें नासूरों के साथ जीने की आदत हो चुकी है, इन्हें कुरेदा जाना बहुत जरूरी है. चीन के विकास पर हमें सोचने-समझने की नहीं, कुछ करने की दिशा में सोचना चाहिए. आखिर हो क्या गया है हमें? क्या और किस ओर सोचते हैं हम? वास्तव में आंखें खोलनेवाला लेख है यह हमारे लिए.
प्रवीण मनोहर
अविश्वास पर टिका समाज
हरिवंश जी के आलेख के बारे में मेरा यही कहना है कि हमारी सामाजिक संरचना आपसी अविश्वास और घृणा पर आधारित हो चुकी है. हमारे यहां जातिवाद और प्रांतवाद हावी है, शायद ही कहीं और हो. एक भारतीय होते हुए भी बंगाली, बिहारी, झारखंडी, पंजाबी, मारवाड़ी, गुजराती, मराठी, मद्रासी के तौर पर हम बाहर पहचाने जाते हैं और एक -दूसरे से नफरत करते हैं. देश के बाहर भी वैसा ही है. चीन के लोग भारतीयों से नफरत करते हैं और हमारे लिए चीन तो सबसे बड़ा दुश्मन है ही!
महेंद्र कुमार
खुद की कमियों से जीतें
हरिवंश जी का आलेख पढ़ा. पढ़ कर अभिभूत हुआ. चीनी जनमानसिकता को आत्मसात करने योग्य पाया. खुद की कमियों पर विजय पाये बिना हम चीन का मुकाबला करने की बात सोच भी नहीं सकते. चीनी जन मानसिकता की श्रेष्ठता से हम भारतीयों की मानसिकता की तुलना भी नहीं की जा सकती है. भारतीय जन मानसिकता में राष्ट्रीय एकात्मकता का अभाव है. हम वोट बैंक के खेमों में बंट कर जीते हैं. हमारे अंदर देश और समाज के प्रति त्याग और समर्पण भाव से कुछ करने की इच्छा ही नहीं है. हमें सुख चाहिए, ऐश्वर्यपूर्ण जीवन चाहिए.
इसे प्राप्त करने के लिए नैतिक पतन की गहरी खाई में गिरते जाने का संस्कार हमने पाला है. पतित लोगों का जीवन हमारा आदर्श है. उनकी राह को हम अनुकरणीय मानते हैं. हमारे देश में पैसे की ताकत से पतित और अपराधी सजा से मुक्त हो जाते हैं. भारत में बस यही रह गया है कि श्रेष्ठता को पुरस्कार नहीं और पतितों का तिरस्कार नहीं. हम भारत के लोग अपना राष्ट्रीय दायित्व भूल कर सिर्फ सरकार की आलोचना करने में लगे रहते हैं. जबकि सच्चई यही है कि जब तक भारतीय जनमानस अपना राष्ट्रीय दायित्व निभाने के लिए तैयार नहीं होगा, तब तक सिर्फ सरकारी प्रयास से हम चीन का मुकाबला नहीं कर सकते हैं.
महेंद्र कुमार विकल
‘मोदी मौसम’ में ऐसा आलेख अच्छा
चीन के बारे में इतनी सटीक जानकारियों वाला आलेख लिखने के लिए हरिवंश जी बधाई के पात्र हैं. यह इसलिए भी जरूरी है कि मोदी जी के मौसम में आज-कल जहां देश के सारे मीडिया घराने उन्हीं पर बने-बसे कार्यक्रम खबरों की चाशनी में डूबो कर परोस रहे हैं, ऐसे में चीन के बारे में ऐसी रिपोर्ट लिखने का साहस करनेवाले शख्स को मेरा सलाम है.
इस लेख को पढ़ कर मुङो भारत की स्थिति पर अफसोस होता है. हमारे राजनेता आज भी रोटी, कपड़ा और मकान की ही राजनीति में लगे हैं. सरकारी खर्चे पर ऐशो-आराम की ऐसी आजादी और कहां! और बेचारे मतदाता बड़ी आस लगाये अपना वोट डालते हैं और फिर पांच साल तक अपनी किस्मत का रोना यूं ही रोते हैं. बहरहाल, आशा है कि हरिवंश जी की लेखनी हमारी आंखें ऐसे ही खोलती रहेगी.
ज्योति यादव
आंखें खोलनेवाला आलेख
आपने भारत और चीन की तुलना कर हम भारतीयों की आंखें खोलने का काम किया है. आपने मेरे और मुझ जैसे युवाओं की सोच को एक नयी दिशा देकर अपने देश के प्रति प्रेम की भावना को जगाया है. आपने चीन के बारे में कई तथ्यों को हम पाठकों के सामने लाने की कोशिश की है. चीन को इस मुकाम पर पहुंचाने के लिए वहां की जनता बधाई की पात्र है. विकास किसको कहते हैं, यह सही मायने में हमें इस आलेख से पता चलता है. हम भारतीयों को भी चीन से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.
मृगांक कुमार अस्थाना
भारत में समस्याएं कई
मैंने चीन और भारत के बारे में पढ़ा. पढ़ कर ऐसा लगा कि भारत चीन के मुकाबले सौ गुणा पीछे है. यहां समस्याएं अनंत हैं. पहली, लचर कानून व्यवस्था. दूसरी, किसी काम को ठेके पर देना और समय पर उसका पूरा न होना, पूरा होने पर उसकी गुणवत्ता बद से बदतर होना. तीसरी समस्या है, सड़क पर गाहे-बगाहे मोरचा निकाल देना. चौथी समस्या, नेताओं का स्वार्थी और भ्रष्टाचारी होना. पांचवीं, भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता भी जमानत पर छूट जाता है. ऐसे में किसी के मन में कानून के प्रति सम्मान कहां से होगा? ऐसी कई समस्याएं हैं, जिनसे हमें पार पाना है.
मुकेश कुमार निषाद
लोकप्रिय सरकार कितनी लोकप्रिय?
चीन के बारे में आपका लिखा आलेख पढ़ा. पढ़कर अच्छा लगा और कुछ सीखने को भी मिला. चीन आज जहां कहीं भी है, वह उसके नेतृत्व के दृढ़ संकल्प की वजह से ही संभव हुआ. यह हमारे यहां 67 सालों में भी संभव नहीं हो सका. वजह साफ है, हमारे नेता अपनी सरकार को येन-केन-प्रकारेण चलाने में ही लगे रहे.
चुनाव के समय लोक-लुभावना नारे देने और दंगे कराने में तो हमारे नेता बड़े आगे रहते हैं, लेकिन जब बात आती है देश के लिए कुछ करने की तो वे व्यवस्था का रोना रोते हैं. हमारे यहां 45 प्रतिशत वोटिंग में बूथ लूटने की तकनीक के साथ 35 प्रतिशत वोट (यानी 100 में लगभग 16) के समर्थन से एक लोकप्रिय सरकार चलाने का प्रचलन रहा है. भला हो टीएन शेषन साहब का, जिनके प्रयासों की वजह से इस समय चुनाव आयोग सरकार की सबसे विश्वसनीय संस्था है और उन्हीं के प्रयासों से लोक समर्थित सरकारें बननी शुरू हुईं.
इंदिरा गांधी के बाद तीस सालों तक की कमजोर सरकारों की वजह से आपको दो अंकों में आलेख छापना पड़ा. लेकिन अब नरेंद्र मोदी की सरकार से इस देश को कई उम्मीदें हैं. देखना यह है कि उनका कड़क व्यक्तित्व देश को चीन की तुलना में कितनी बुलंदी प्रदान करता है.
महेंद्र सिंह
भारत भी कम नहीं
यह सही है कि चीन और भारत का कोई मुकाबला नहीं. लेकिन किसी चीज के केवल एक ही पक्ष को रेखांकित करने से सारी बातें उसी अनुसार ढलती जाती हैं. इस लेख में चीन के सकारात्मक और भारत के नकारात्मक पक्ष को ही अधिकांश तौर पर चिह्न्ति किया गया है. जबकि सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हर चीज के होते हैं. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारा भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. यहां हर व्यक्ति को पूरी आजादी मिली हुई है.
हमारे देश के आइटी पेशेवर दुनियाभर में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं. भारत ने शुरू से ही हर किसी को कुछ दिया ही है, कभी किसी से कुछ छीना नहीं है. दोनों के रास्ते अलग हैं. भारत अपनी राह चलता है और चीन अपनी राह.
आशुतोष राज
बेहतर है चीन
पिछले साल जनवरी महीने में मैं चीन में था. इस दौरान मुङो सड़क मार्ग से शंघाई से यांगझू जाने का मौका मिला. इस क्रम में मुङो चीन के औद्योगिक जगत से रूबरू होने का अवसर मिला. भारतीय उद्योग जगत में विभिन्न स्तरों पर वर्षो तक काम करने के अनुभव के साथ मैं मन ही मन दोनों देशों के औद्योगिक प्रदर्शन की स्थिति की तुलना करने लगा. लेकिन चीन मुङो हर मायने में बेहतर लगा.
रास्ते भर मैं यह सोचता रहा कि आखिर क्या कमी है हम में? वहां के कुछ लोगों से बात कर के यह समझ में आया कि चीनी लोगों की सोच से लेकर उनके काम करने के रवैया तक हम भारतीयों से काफी अलग है. भारत में हम हर बात का दोष यहां की राजनीति और राजनेताओं पर मढ़ देते हैं, लेकिन उन्हें चुना भी तो हमने ही है. अंत में प्रभात खबर को यही कहना चाहूंगा कि आंखें खोलने वाले आलेख के लिए धन्यवाद.
बृजेंद्र पांडेय
भ्रष्टाचार जिम्मेवार
मैंने पूरा आलेख पढ़ा. मैं लेखक को इस बात का धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने चीन के बारे में इतनी खास बातें बतायीं, जिन्हें हम अब तक नहीं जानते थे. यह आलेख हमें यह बताता है कि चीन से हम किन मायनों में पीछे हैं और अपनी कमियां हमें किस तरह से दूर करनी हैं. हमारे भारत में लोग किसी स्कूल में नर्सरी में दाखिला लेने के समय, यानी बचपन से ही भ्रष्टाचार को जानने और समझने लगते हैं. यही हमारी सबसे बड़ी विडंबना है. भ्रष्ट मानसिकता की सोच से देश की जनता को उबारने के लिए हमें ऐसी रणनीति अपनाने की जरूरत है, जिससे लोगों की सोच बदले और उनमें देशभक्ति की भावना जागे. तभी जाकर हमारा देश आर्थिक और सामाजिक रूप से विकसित हो सकता है.
रणवीर कुमार
भारत में आजादी ज्यादा
हरिवंश जी के इस आलेख को पढ़ने से ऐसा लगता है कि भारत कुछ भी कर ले, लेकिन चीन की बराबरी नहीं कर पायेगा. चीन का जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा कानून तारीफ के काबिल नहीं. यहां सवाल यह खड़ा होता है कि अगर भारत में भी इसी तरह का कानून बनाया जाये तो क्या उसका यहां स्वागत होगा? अपने देश के तमाम बुद्धिजीवी पानी पी-पी कर उस कानून को धर्म और संविधान के खिलाफ करार देंगे. चीन में किसी योजना के क्रियान्वयन में न जमीन मुआवजे के लिए कोई अड़ंगेबाजी होती है और न पर्यावरण का बखेड़ा खड़ा होता है. औद्योगिक क्षेत्र हो या कृषि क्षेत्र, कहीं भी न्यूनतम मजदूरी जैसी कोई बात नहीं है. चीन में हायर एंड फायर के कानून से हम सभी वाकिफ हैं.
जरूरत के हिसाब से मजदूर रखने और निकालने संबंधी इस कानून का मालिक धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं. मजदूर अगर अगले दो महीने में नयी नौकरी तलाश नहीं पाता है, तो उसे वह इलाका छोड़ना पड़ता है. इस डर से कोई मजदूर बगावत नहीं कर सकता है. ऐसे कानून का फायदा चीन में उद्योगपति उठाते हैं. क्या भारत में ऐसे कानून चल सकते हैं?
पायल बजाज
भारत का इंडिया में बदलना
इस आलेख को पढ़ कर ज्यादातर लोग चीन से डरने लगेंगे. इस लेख में केवल भारतीयों की कमियों को ही उजागर किया गया है. इन कमियों का जिम्मेवार कौन है और उन्हें दूर कैसे किया जाये, हमें यह भी जानने की कोशिश करनी चाहिए. कभी हमारा भारत भी सोने की चिड़िया और विश्वगुरु कहलाता था, लेकिन आज हकीकत कुछ और है. आज हमने अपनी सनातन व्यवस्था को पीछे छोड़ दिया है और पैसे कमाने की अंधी दौड़ में शामिल हो चुके हैं. भारत इंडिया बन चुका है, जिस पर राजनेताओं और उद्योगपतियों का गिरफ्त है. किसी देश की तरक्की से तुलना करने की बजाय हमें एक बार फिर से अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को टटोलना होगा.
श्याम नारायण चतुर्वेदी
ऐसे कैसे होगा मुकाबला?
विगत 10 अक्तूबर को प्रभात खबर में प्रकाशित ‘भारत को तो मुकाबले में भी नहीं गिनता चीन’ तथा ‘हम भारतीय चीन का मानस नहीं समझते’ पढ़ा. हरिवंश जी का प्रयास इस मामले में निस्संदेह प्रशंसनीय है. देश की जनता और नेताओं को इस पर अमल करने की जरूरत है. भारत के भ्रष्ट नेताओं के बल पर क्या चीन के समकक्ष भी हम पहुंच पायेंगे? यहां तो सबको अपनी-अपनी चिंता है यहां देश को कौन पूछे! चीनियों को देश का गौरव बढ़ाने की ललक है तो भारतीयों को एक -दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने और कैसे भी कर के आगे निकलने की होड़ है.
भारत में राजनीतिज्ञ जनता को वोट पाने के लिए अपना चारा बनाते रहते हैं, तो चीनी राजनेता अपने देश को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए जनता के साथ दिन-रात लगे रहते हैं. भारत के महनतकश सरकारी अनुदान पर ज्यादा भरोसा करते हैं, बजाय ईमानदारी से काम करने के. हमारी व्यवस्था स्वावलंबी बनने की शिक्षा न देकर लोगों को पराश्रयी बनाने के नये-नये तरीके अपनाती रहती है. ऐसे में भारत चीन से मुकाबला कैसे कर पायेगा?
बासुकी नाथ सिंह
चीन-भारत : कुछ खरी-खरी बातें
हरिवंश जी का चीन और भारत के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित लेख पढ़ा. पहली बार लगा कि हिंदी पत्रकारिता में चीन की अंदरूनी सामाजिक, प्रशासनिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की सकारात्मक और प्रेरणादायी सच्चाई को भारतीयों के सामने उजागर किया गया है. कम से कम मैं तो चीन के बारे में इतनी सारी अच्छी बातें नहीं जानता था.
इसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं और आभार प्रकट करता हूं. यह निबंध भारत को इतनी लंबी अवधि तक के आलस्य की जकड़न से मुक्त करने के लिए एक शंखनाद हो सकता है. लेकिन ऐसा संभव नहीं है क्योंकि चीन और भारत के लक्ष्य की दिशा विपरीत है. एक अग्रगामी है तो दूसरा प्रतिगामी. दोनों में तुलना हो ही नहीं सकती. हां, आप यह माप कर सकते हैं कि दोनों के बीच की दूरी कितनी बढ़ी है. एक समय के साथ चलता है तो दूसरा पीछे की ओर चलकर अतीत में ठहरना चाहता है. चीन में प्रगति पथ पर मील के नये-नये पत्थर गाड़े जाते हैं तो भारत में अधिकांश शक्ति और संसाधन का उपयोग पूर्वजों के स्मारक और मंदिर बनाने में किया जाता है.
यहां वैज्ञानिक संस्कृति को जनमानस में स्थापित नहीं कर धर्म और संस्कृति की रक्षा के बहाने आम जनता को अंधविश्वास में जकड़े रखने के लिए सरकार और राजनीतिक पार्टी द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम चलाये जाते हैं. चीन में भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा और मृत्युदंड तक मिलता है तो यहां दंड देने की प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि वह एक ढोंग में बदल जाती है. भारत में भ्रष्टाचार को चिरस्थाई रूप में चलते रहने का कारण यह है कि भ्रष्टाचार इनके द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुरूप ही प्रमुख गुप्त कार्यकम है. राष्ट्र के विकास और गरीबों के उत्थान के लिए सरकारी खजाने का जो धन निकलता है वह अगर सचमुच यथास्थान पहुंच गया तो धीरे-धीरे सभी लोग सशक्त हो जायेंगे. फिर उन्हें अतीत में लौटाना संभव नहीं होगा. यहां के शासक वर्ग अपने उद्देश्य में वे पूर्णत: सफल हैं. अत: इस दृष्टि से तो उन्हें योग्य ही माना जायेगा. लेकिन अगर वे सबके लिए समृद्घि और खुशहाली का उद्देश्य लेकर चले थे तो उन्हें बिलकुल अयोग्य माना जायेगा.
बजरंगी मंडल
नयी सरकार से बंधी हैं उम्मीदें
प्रभात खबर में हरिवंश जी का लिखा ‘चीन : प्रेरणा भी, भय भी’ से संबंधित लेख पढ़ा. काफी अच्छा विश्लेषण किया गया है लेकिन पूरा लेख पढ़ने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक अपने पूरे लेख में चीन की तरफदारी कर रहे हैं. चीनी में फैले भ्रष्टाचार को भी वे इस प्रकार पेश किये हैं कि भ्रष्टाचार बुरा नहीं बल्कि अच्छा है. यानी कि आप आगे बढ़ने के लिए भ्रष्टाचार कर सकते हैं. चीन की उपलब्धियों का जो उल्लेख लेखक द्वारा किया गया है, वो सही भी है.
लेकिन भारत व्याप्त प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद भी इतना प्रगति कर रहा है, इसको कम नहीं माना जा सकता है. चीन भारत से संसाधनों में अधिक है, फिर भी भारत विभिन्न प्रतिकूल स्थितियों से सामना करते हुए काफी आगे निकल रहा है. चीन की चाइल्ड पॉलिसी किसी से छिपी नहीं है. वहां ग्रामीण क्षेत्रों में एक ही बच्चा पैदा करने की अनुमति है. शहरी क्षेत्रों में कुछ शर्तो के साथ दो बच्चे पैदा किये जा सकते हैं. लेकिन हमारे भारत में यदि ऐसे कानून की स्वीकृति दी जाती है तो लोगों से ज्यादा हमारे तथाकथित विद्वान, नेता और धर्मगुरुओं की मीडिया में ‘बड़ी बहस लाइव’ शुरू हो जायेगी. कोई इसे धर्म से जोड़ेगा तो कोई इसे कुछ और से जोड़कर वोट बैंक की राजनीति करना शुरू कर देगा.
वास्तव में यहां पर देश के लिए सोचने वाले एक मजबूत नेता की जरूरत है. उसमें भी यदि देश की छवि चमकाने वाला नेता मिल गया तो उसका देश में विदेशों के हिमायती नेतागण और तथाकथित विद्वानजन उस देशभक्त नेता की आलोचना तरह-तरह के कुतर्को के माध्यम से करना शुरू कर देंगे. अभी हाल में देश के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी जी को चंद महीने ही हुए हैं लेकिन इतने कम समय में ही उन्होंने अपने कूटनीतिक प्रयासों और वाकपटुता से जिस कदर भारत का कद बढ़ाया है, वह काबिलेतारीफ है. संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में कश्मीर मुद्दे पर जिस कदर उन्होंने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया, उसके लिए वह प्रशंसा के पात्र हैं.
वह अपनी नीतियों का इस तरीके से प्रयोग कर रहे हैं कि कट्टर दुश्मन माना जाने वाला पाकिस्तान अलग-थलग पड़ने लगा है. सीजफायर का उल्लंघन करने वाले पाकिस्तान को पहली बार करारा जवाब मिलने की जानकारी मिल रही है. दरअसल इससे पूर्व किसी सरकार के शासनकाल में ऐसी बातें सुनने को नहीं मिलती थीं.
चीन को भी हम टक्कर दे सकते हैं जब देश में मजबूत नेता उभरेंगे. देश के लिए सोचेंगे न कि क्षेत्रवाद के नाम पर केंद्र सरकार की नाक में दम करते रहेंगे. चीन में ऐसी बातें शायद ही देखने को मिलती हों. यहां पर मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है, जो ‘राष्ट्रं प्रथम’ के सिद्धांत पर काम करे. इतने पर भी हमारा देश चीन की तुलना में काफी सुंदर है, अच्छा है. आजादी सिर्फ नाम की है वहां पर. वास्तव में वहां पर नागरिकों को सरकार के खिलाफ बोलने की इजाजत नहीं है.
सरकार कुछ भी करे, नागरिकों को उसमें सुर में सुर मिलाना ही है. यदि किसी ने दुस्साहस किया भी तो उस पर देशद्रोह जैसे मुकदमे चलाने में वो थोड़ी सी भी देर नहीं होती. हाल ही में कई खबरें आयीं हैं, जिसमें लोकतंत्र समर्थकों पर हिंसक कार्रवाई की गयी थी. तिब्बत की घटना किसी से छिपी हुई नहीं है. चीन उस पर किस तरह जोर जबरदस्ती पर तुला है! चीन में हर रोज लोकतंत्र की हत्या की जा रही है. वास्तव में चीन की यह चकाचौंध एक बंद गुब्बारे की तरह है, जो धीरे-धीरे फूलते हुए एक दिन अवश्य फूटती है. हमारे देश में ऐसा कुछ भी नहीं है. हमारे देश में सबको पूरी स्वतंत्रता है. हम सरकार का विरोध खुलेआम कर सकते हैं, उस पर कई आरोप लगा सकते हैं.
लेकिन चीन में ऐसा कुछ भी नहीं है. गर्व है हमें अपने देश पर, जहां सभी को पूरी स्वतंत्रता है और फिर भी हमारा देश किसी से कम नहीं है. हम पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाले दुनिया के पहले देश बन चुके हैं. बस जरूरत है मजबूत नेतओं की, जो देश में छिपी प्रतिभाओं को पहचान सकें और उसको निखारने के लिए जरूरी माहौल तैयार कर सकें. वर्तमान में एक मजबूत नेता के प्रधानमंत्री बनने से उम्मीद की किरण झलक रही है. वर्तमान सरकार की नीतियों से ऐसा लग रहा है कि अब ‘मेड इन चाइना’ काफी पीछे छूट जायेगा और ‘मेड इन इंडिया’ की धूम मचने वाली है.
कार्तिक कुमार झा
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