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साइबर हमलों के खिलाफ तैयारी नाकाफी

।। राजीव चौबे ।। हैकिंग के जरिये कई देश दूसरों को बना रहे निशाना बदलती तकनीक के इस दौर सब कुछ हाइटेक हो गया है. ऐसे में अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए, दो देशों के बीच लड़ी जानेवाली लड़ाइयां कैसे पीछे रहें. आज लड़ाइयां गोला-बारूद और हथियारों के दम पर कम और साइबर स्पेस […]

।। राजीव चौबे ।।
हैकिंग के जरिये कई देश दूसरों को बना रहे निशाना
बदलती तकनीक के इस दौर सब कुछ हाइटेक हो गया है. ऐसे में अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए, दो देशों के बीच लड़ी जानेवाली लड़ाइयां कैसे पीछे रहें. आज लड़ाइयां गोला-बारूद और हथियारों के दम पर कम और साइबर स्पेस में ज्यादा लड़ी जा रही हैं. हाल के वर्षो में इंटरनेट हैकिंग की कई घटनाएं हुई हैं.
हैकर टेलीकम्युनिकेशंस लिंक को अक्षम बनाने के साथ ही सर्वर और कंप्यूटरों से गोपनीय जानकारियां, बैंकिंग पासवर्ड आदि चुरा लेते हैं. इनकी रोकथाम के लिए कितना सक्षम है भारत, आइए जानें –
कई देश अपने प्रतिद्वंद्वियों के सूचना तंत्र में सेंध लगाने के लिए हैकरों का समूह तैयार कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर पिछले कुछ वर्षो में साइबर स्पाइ नेटवर्क चीन में कई सर्वरों का इस्तेमाल कर दुनिया के सैकड़ों देशों की सरकारों और निजी संगठनों के गोपनीय कागजात में सेंध लगाने की कोशिश कर चुका है.
हालांकि समय-समय पर चीन ऐसी घटनाओं में अपना हाथ होने से इनकार करता रहा है और बीच-बीच में रूस और ब्राजील जैसे देशों के साइबर हैकर्स के भी ऐसी हरकतों में शामिल होने की खबरें आती रहती हैं, लेकिन सवाल यह है कि इन खतरों से निबटने के लिए भारत कितना तैयार है? भारत में केवल एक साल में हजारों वेबसाइटों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती हैं.
इस बारे में साइबर सुरक्षा प्रदान करनेवाली कंपनी मैकेफी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में साइबर सुरक्षा को लेकर कोई खास कदम नहीं उठाये गये हैं और जो भी हैं, वे अपर्याप्त हैं.
यही नहीं, आज जब दुनिया के सभी देश खुद को साइबर हमलों से सुरक्षित करने के प्रयास में जोर-शोर से लगे हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में भी साइबर हमलों से बचने के लिए भारत की तैयारियां नाकाफी हैं. विभिन्न शोध संगठनों की अध्ययन रिपोर्टो की मानें तो पिछले साल की तुलना में इस साल साइबर हमलों में 136} प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी.
पिछले दिनों इंडो-अमेरिकन चेंबर ऑफ कॉमर्स (आइएसीसी) द्वारा आयोजित 10वें भारत-अमेरिका आर्थिक सम्मेलन में हाइ-टेक्नोलॉजी, मार्केट इंटेलिजेंस और ऑपरेशनल रिस्क मैनेजमेंट सेवा प्रदाता कंपनी ऑरकैश के सीइओ आशीष सोनी का इस बारे में कहना है कि साइबर हमलों से सुरक्षा के लिए अपनाये जानेवाले तरीकों के अंतरराष्ट्रीय मानकों में भारत आज भी बहुत पीछे है.
इसके अलावा, बाजार की रिपोर्टे इस बात की तसदीक करती हैं कि भारत में वित्तीय सेवा प्रदान करनेवाले संगठनों पर साइबर हमले 126} तक बढ़े हैं. इस बारे में आइएसीसी के अध्यक्ष अशोक लाहा कहते हैं कि रैनसमवेयर और स्पीयरफिशिंग सरीखे जटिल किस्म के साइबर हमलों ने भारतीय कारोबारियों और कंपनियों को 2461 करोड़ रुपये का चूना लगाया है.
लाहा आगे बताते हैं, साइबर हमलों के अन्य हथियारों में मॉलवेयर और इंटरनेट हमले शामिल हैं, जिनसे हम भारतीय अक्सर दो-चार होते हैं. लाहा कहते हैं कि पिछले साल भारत में हुए साइबर हमलों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गयी. इन हमलों ने सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की परिसंपत्तियों को बराबर नुकसान पहुंचाया.
इस संदर्भ में ऑनलाइन सिक्यूरिटी एक्सपर्ट विजय मुखी कहते हैं कि भारत में अधिकतर बैंकों के आंकड़े ऑनलाइन हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत में इनकी सुरक्षा के कोई खास इंतजाम नहीं किये गये हैं. साइबर अपराध को इस तरह से अंजाम दिया जाता है कि मात्र 24 घंटे के भीतर किसी देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ी जा सकती है. लेकिन इन तमाम खतरों के बावजूद हम साइबर सुरक्षा को लेकर सजग नहीं हुए हैं.
इस बारे में आइटी क्षेत्र की दिग्गज हस्ती श्रीनिवास कृष्णन कहते हैं कि किसी भी तरह के साइबर अपराध से निबटने के लिए भारत को पूरी तरह तैयार रहना चाहिए. कृष्णन कहते हैं, अगर कोई अमेरिका के बैंकों और खुदरा क्षेत्र की कमर तोड़ना चाहे, तो भारत उनके लिए एक आसान लक्ष्य हो सकता है. भारत की सुरक्षा भी उच्चस्तरीय होनी चाहिए. हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि इन दिनों ज्यादातर आवेदन ऑनलाइन हो रहे हैं.
गौरतलब यह है कि साइबर खतरों के प्रति आगाह करने और साइबर संसार में यूजर को सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से फिलहाल भारत में चार एजेंसियां कार्यरत हैं. इनमें से एक है वर्ष 2004 में स्थापित, सीइआरटी-आइएन, जो कंप्यूटर सिक्यूरिटी सिस्टम्स पर काम करता है.
मुख्यतया इसका काम साइबर सक्यिूरिटी के मामलों का संग्रहण और विेषण कर सतर्कता जारी करना है. ऐसी ही एक अन्य संस्था है एनसीआइआइपीसी, जिसका काम साइबर आतंकवाद, युद्ध और अन्य खतरों से महत्वपूर्ण इंफॉर्मेशन इन्फ्रास्ट्रर की सुरक्षा करना होता है.
नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन एक तकनीकी खुफिया एजेंसी है जिसका कामकाज प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के जिम्मे आता है. इसके अलावा, नेशनल साइबर को-ऑर्डिनेशन सेंटर की जिम्मेवारी देश भर के समूचे साइबर ट्रैफिक पर निगरानी रख कर सरकारी संगठनों को हर मुमकिन साइबर खतरे और हमले के प्रति सचेत करने की है.
भारत और अमेरिका साइबर आतंकवाद से लड़ने के लिए मिल कर काम कर रहे हैं. इस दिशा में भारत अमेरिका साइबर सुरक्षा फोरम की स्थापना वर्ष 2001 में ही हो चुकी है. यही नहीं, एक-दूसरे को साइबर सुरक्षा मुहैया कराने और क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्ररल प्रोटेक्शन के उद्देश्य से वर्ष 2010 में भारत व अमेरिका ‘आतंक विरोधी आपसी सहयोग संधि’ पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं.

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