एशियन गेम्स कोई छोटी प्रतियोगिता नहीं होती. इसमें इतना तो ख्याल रखना ही चाहिए कि पक्षपात न हो. अगर मुकाबला कांटे का होता, तो समझ में आता कि रेफरी से गलती हो गयी, लेकिन जहां एकतरफा मुकाबला हो, वहां गलती नहीं हो सकती.
एशियन गेम्स (इंचियोन) में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने साबित कर दिया कि अगर उन्हें मौका मिले, तो वे दुनिया में तिरंगा लहरा सकती हैं. मैरी कॉम हों, सीमा पुनिया हों, सानिया मिर्जा हों, टिंटू लूका हों, अन्नू रानी हों, सरिता देवी हों या फिर हॉकी टीम, कबड्डी टीम और रिले रेस की लड़कियां, सभी ने अपनी ताकत दिखा दी है. कोई स्वर्ण जीता, कोई रजत तो कोई कांस्य. इन्होंने देश को पदक दिलाने के लिए जान लगा दी. मुक्केबाजी में पक्षपात हुआ, वरना भारतीय महिलाएं एक और स्वर्ण जीत सकती थीं. अगर सरिता देवी को पदक मिलता, तो भारत पदक तालिका में आठवें से छठवें पायदान पर आ जाता.
1986 में सियोल में हुए एशियन गेम्स को अगर किसी के लिए याद किया जाता है तो वह हैं पीटी उषा. जो भारतीय टीम आज एथलेटिक्स में एक-एक पदक के लिए तरसती है, उसी एथलेटिक्स में पीटी उषा ने कमाल दिखाया था. एक-दो नहीं, बल्कि अकेले चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीता था. 200 मीटर, 400 मीटर, 400 मीटर बाधा दौड़ और रिले दौड़ में पीटी उषा को स्वर्ण और 100 मीटर में रजत पदक मिला था. सुनने में यह सपना लगता है कि क्या कोई ऐसी भी महिला धावक हो सकती है, जिसने 100 मीटर से लेकर 400 मीटर तक में पदक जीता हो.
दो वर्ष पहले ही यानी 1984 लांस एंजेल्स ओलिंपिक में पीटी उषा सेकेंड के सौंवे भाग से कांस्य पदक जीतने से वंचित रह गयी थीं, लेकिन सारी कसर उन्होंने 1985 के जकार्ता में एशियन ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में पूरी कर दी थी- अकेले पांच स्वर्ण जीत कर. अभी तक रिकॉर्ड है. वह दौर ही पीटी उषा का दौर था. दुनिया में उनकी तूती बोलती थी. काश! आज अगर भारत के पास एक पीटी उषा होती, तो पदक तालिका में भारत का स्थान ऊपर होता.
फिर भी चिंता की बात नहीं. अन्य क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी धाक जमायी है. मैरी कॉम ने मुक्केबाजी में देश को स्वर्ण दिलाया. जिस समय भारतीय टीम जा रही थी, उसी समय तय हो गया था कि एक पदक पक्का है. वह पदक था मैरी कॉम का. वह मुक्केबाजी में वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी हैं, लेकिन एशियन गेम्स में उनका पहला स्वर्ण पदक था. सानिया मिर्जा ने साकेत के साथ मिल कर टेनिस में स्वर्ण जीता. सीमा अंतिल पुनिया से पहले से ही डिस्कस थ्रो में स्वर्ण की उम्मीद की जा रही थी. उन्होंने निराश नहीं किया. 800 मीटर दौड़ में अंतिम क्षणों में अगर टिंटू लूका थोड़ी पिछड़ी न होती तो रजत की जगह वह स्वर्ण जीत सकती थी. अन्नू रानी ने जेवलिन थ्रो में कांस्य दिलाया. भारत को अगर निराशा मिली तो वह थी तीरंदाजी में. निशानेबाजी में शगुन चौधरी, श्रेयसी सिंह और वर्षा वर्मन ने कांस्य पदक दिला कर राहत दिलायी. हॉकी टीम की भी तारीफ होनी चाहिए. महिलाओं ने जापान को हरा कर कांस्य जीता.
भारतीय महिला खिलाड़ियों ने जो भी प्रदर्शन किया, वह सराहनीय है. लेकिन वहीं मणिपुर की 32 वर्षीया मुक्केबाज सरिता देवी के साथ एशियन गेम्स में अन्याय हुआ. सेमीफाइनल में जबरन हरवाया गया. यह एशियन गेम्स हो रहा है कोरिया में और सरिता का मुकाबला कोरिया की पार्क जीना के साथ था. सरिता पार्क को जोरदार पंच मार रही थीं. मुकाबला एकतरफा लग रहा था, लेकिन रेफरी ने बेईमानी की और सरिता की जगह पार्क जीना को विजेता घोषित कर दिया. सरिता अवाक रह गयी. रिंग में खड़ी रोती रही. भारत ने विरोध दर्ज कराया, लेकिन कुछ लाभ नहीं हुआ. हां, सरिता का विरोध जारी रहा. उसने कांस्य पदक स्वीकार नहीं किया और पार्क जीना को अपना पदक भी पहना दिया.
मणिपुर की सरिता ही असली विजेता थी. अगर सेमीफाइनल में रेफरी सही निर्णय देता, तो वह फाइनल भी जीत लेती. सरिता नेशनल चैंपियन है. कॉमनवेल्थ गेम्स (2014) में उसने रजत पदक जीता था. 2005 में वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी है. विपक्षी कोच भी मान रहे थे कि सरिता ही जीतेगी. जब पार्क को विजेता घोषित कर दिया गया, तो विपक्षी कोच ने सॉरी कहा. भारत ने एक स्वर्ण तो खोया ही, वर्षो की सरिता की मेहनत पर रेफरी ने पानी फेर दिया.
एशियन गेम्स कोई छोटी प्रतियोगिता नहीं होती. इसमें इतना तो ख्याल रखना ही चाहिए कि पक्षपात न हो. अगर मुकाबला कांटे का होता, तो समझ में आता कि रेफरी से गलती हो गयी, लेकिन जहां एकतरफा मुकाबला हो रहा हो, सरिता पंच पर पंच मारती जा रही हो, वहां गलती नहीं हो सकती. आज तो तकनीक इतनी उन्नत है कि संशय होने पर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे रेफरी पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए, कार्रवाई होनी चाहिए, वरना लोगों का विश्वास उठ जायेगा. भले ही रेफरी ने सरिता को हरा दिया, लेकिन मैरी कॉम ने अपना स्वर्ण पदक उसे समर्पित कर यह संकेत दे दिया कि सरिता हारी नहीं है. देश को सरिता और अन्य महिला खिलाड़ियों पर गर्व है.
अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
anuj.sinha@prabhatkhabar.in